आधुनिक भारत का इतिहास-द्वैध शासन के लाभ Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 से पहले का इतिहास (1600-1858 ई.तक) >>> द्वैध शासन के लाभ

द्वैध शासन के लाभ 
क्लाइव की द्वैध शासन की व्यवस्था उसकी बुद्धिमत्ता और राजनीतिज्ञता का प्रमाण थी। यह प्रणाली उस समय कम्पनी के हितों के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम थी। दोहरे शासन से कम्पनी को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए-
(1) कम्पनी के पास ऐसे अंग्रेज कर्मचारियों की कमी थी, जो भारतीय भाषाओं तथा रीति-रिवाजों से अच्छी प्रकार परिचित हों और जिन्हें शासन चलाने अथवा मालगुजारी वसूल करने का पर्याप्त अनुभव हो। उस समय यह आशा करना कि कम्पनी के कर्मचारी रातों-रात योग्य प्रशासक बन जाएंगे, निरर्थक था। यदि कम्पनी अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करती, तो शासन में अव्यवस्था फैल जाति। ऐसी स्थिति में कम्पनी के शासन का समस्त उत्तरदायित्व भारतीयों पर डाल दिया। ऐसा करके उसे बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। भारतीयों को प्रशासनिक अनुभव पर्याप्त मात्र में था, जिसके कारण शासन सुव्यवस्थित ढंग से चलने लगा।
(2) इंग्लैण्ड में कम्पनी को अभी भी मूलत: एक व्यापारिक कम्पनी समझा जाता था। इसलिए क्लाइव ने ब्रिटिश जनता तथा कम्पनी के संचालकों को धोखा देने के लिए बड़ी चालाकी से काम किया था। यदि इस समय वह बंगाल का शासन प्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले लेता तो ब्रिटिश संसद कम्पनी के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती थी। इसके अतिरिक्त इससे कई प्रकार की अड़चने भी पैदा हो सकती थी।
(3) यदि कम्पनी बंगाल के नवाब को गद्दी से हटाकर प्रांतीय शासन प्रबन्ध प्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले लेती, तो उसे निश्चित रूप से अन्य यूरोपियन शक्तियों, पुर्तगालियों एवं फ्रांसीसियों आदि के साथ संघर्ष करना पड़ता। ये लोग उस समय भारत के साथ व्यापार करते थे और इष्ट इण्डिया कम्पनी के कट्टर विरोधी थी। क्लाइव ने बड़ी चतुराई से काम लेते हुए इन विदेशियों की आँखों में धूल झोंक दी। रॉबर्ट्स ने लिखा है, ब्रितानियों द्वारा खुलेआम बंगाल के शासन की बागड़ोर सम्भाल लेने का अर्थ होता, दूसरी यूरोपीय शक्तियों के साथ झगडा मोल लेना। लेकिन दोहरा शासन अत्यन्त जटिल होने से वे यूरोपियन प्रतिस्पर्द्धियों के ईर्ष्या-जन्य संघर्ष से बच गए। प्रो. एस.आर. शर्माने लिखा है, क्लाइव ने यह धोखा इसलिए बनाए रखा, जिससे कि ब्रिटिश जनता को, यूरोपीयन शक्तियों को था भारतीय देशी शासकों को वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल सके।
(4) कम्पनी द्वारा शासन को प्रत्यक्ष रूप से हाथ में लेने से मराठे भी भड़क सकते थे। मराठों की संयुक्त शक्ति का सामना करना कम्पनी के बस की बात नहीं थी।
(5) पिछले सात वर्षों में कम्पनी तथा बंगाल के नवाब के बीच कई बार झगड़े हुए थे, जिसके कारण बंगाल में तीन राजनीतिक क्रांतियाँ हुई। परिणामस्वरूप तीन महत्वपूर्ण शासकीय परिवर्तन हुए। क्लाइव इस प्रकार के परिवर्तनों के विरूद्ध था और उन्हें रोकना चाहता था। द्वैध शासन की स्थापना से कम्पनी और नवाबों के बीच चलने वाला संघर्ष हमेशा के लिए समाप्त हो गया और बंगाल में राजनीतिक क्रांतियों का भय नहीं रहा। विशेषत: इसलिए कि नवाब को केवल 53 लाख रूपए प्रतिवर्ष पेन्शन के रूप में दिए जाते थे। यह धनराशि शासन कार्य चलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए वह एक विशाल सेना का आयोजन करके कम्पनी से टक्कर नहीं ले सकता था।
(6) यद्यपि 1765 ई. तक बंगाल पर ब्रितानियों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया, परन्तु क्लाइव ने बंगाल की जनता को अंधेरे में रखने के लिए नवाब को प्रांतीय शासन प्रबन्ध का मुखिया बनाए रखा और वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में रहने दी। इस प्रकार, क्लाइव ने 1765 की क्रांति को सफलतापूर्वक छिपा लिया और भारतीयों तथा देशी राजाओं के मन में किसी प्रकार का संदेह उत्पन्न नहीं होने दिया।



सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
भारत का संवैधानिक विकास ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना
यूरोपियन का भारत में आगमन
पुर्तगालियों का भारत आगमन
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का कठोरतम मुकाबला
इंग्लैण्ड फ्रांस एवं हालैण्ड के व्यापारियों का भारत आगमन
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नीति में परिवर्तन
यूरोपियन व्यापारियों का आपसी संघर्ष
प्लासी तथा बक्सर के युद्ध के प्रभाव
बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना
द्वैध शासन के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट के पारित होने के कारण
वारेन हेस्टिंग्स द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण
ब्रिटिश साम्राज्य का प्रसार
लार्ड वेलेजली की सहायक संधि की नीति
आंग्ल-मैसूर संघर्ष
आंग्ला-मराठा संघर्ष
मराठों की पराजय के प्रभाव
आंग्ल-सिक्ख संघर्ष
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध
लाहौर की सन्धि
द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध 1849 ई.
पूर्वी भारत तथा बंगाल में विद्रोह
पश्चिमी भारत में विद्रोह
दक्षिणी भारत में विद्रोह
वहाबी आन्दोलन
1857 का सैनिक विद्रोह
बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था
द्वैध शासन या दोहरा शासन व्यवस्था का विकास
द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली
द्वैध शासन के लाभ
द्वैध शासन व्यवस्था के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट (1773 ई.)
रेग्यूलेटिंग एक्ट की मुख्य धाराएं उपबन्ध
रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट का महत्व
बंगाल न्यायालय एक्ट
डुण्डास का इण्डियन बिल (अप्रैल 1783)
फॉक्स का इण्डिया बिल (नवम्बर, 1783)
पिट्स इंडिया एक्ट (1784 ई.)
पिट्स इण्डिया एक्ट के पास होने के कारण
पिट्स इण्डिया एक्ट की प्रमुख धाराएं अथवा उपबन्ध
पिट्स इण्डिया एक्ट का महत्व
द्वैध शासन व्यवस्था की समीक्षा
1793 से 1854 ई. तक के चार्टर एक्ट्स
1793 का चार्टर एक्ट
1813 का चार्टर एक्ट
1833 का चार्टर एक्ट
1853 का चार्टर एक्ट

Dvaidh Shashan Ke Labh Clive Ki Vyavastha Uski Buddhimata Aur Rajneetigyata Ka Pramaan Thi Yah Pranali Us Samay Company Hiton Drishtikonn Se Sarvottam Dohre Ko NimnLikhit Prapt Hue - 1 Paas Aise Angrej Karmchariyon Kami Jo Indian Bhashaaon Tatha Reeti Riwajon Achhi Prakar Parichit Ho Jinhe Chalane Athvaa malgujari Vasool Karne Paryapt Anubhav Aasha Karna Karmchari Raton Raat Yogya Prashasak Ban Jayenge Nirarthak Tha Yadi Apne Adh


Labels,,,