आंग्ल-सिक्ख संघर्ष
महाराज रणजीत सिंह ने जुलाई, 1799 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया। उन्होंने 1805 ई. में अमृतसर पर अधिकार कर लिया। रणजीत सिंह ने 1806 तथा 1807 ई. में दो बार पटियाला, नाभा एवं जीद पर आक्रमण किया। ये राज्य ब्रिटिश संरक्षण में चले गए। 1809 ई. में अमृतसर में ब्रितानियों तथा रणजीत सिंह के मध्य एक सन्धि हो गए। इसके अनुसार रणजीत सिंह ने सतलज एवं यमुना के बीच की सिक्ख रियासतों पर ब्रितानियों का प्रभाव मानते हुए उन पर आक्रमण करना स्वीकार किया। वहीं ब्रितानियों ने सतलज तथा सिन्धु नदी के बीच के प्रदेश पर रणजीतसिंह का प्रभाव मानते हुए उनमें हस्तक्षेप न करना स्वीकार कर लिया।
रणजीत सिंह ने झेलम से सिन्धु नदी के मध्य अनेक सिक्ख राज्यों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने कसूर, झंग, कांगड़ा, अटक, मुल्तान, कश्मीर, पेशावर तथा लद्दाख आदि राज्यों पर विजय प्राप्त की। उन्होंने 1820 में डेरा गाजी खाँ को तथा 1822 ई. में डेरा इस्माइल खाँ को परास्त किया।
27 जून, 1839 ई. को रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु के समय वह एक विशाल साम्राज्य छोड़कर गए थे, जो उत्तर में लद्दाख व इस्कार्टु तक, उत्तर-पश्चिम में सुलेमान पहाड़ियों तक, दक्षिण-पूर्व में सतलज नदी तक एवं दक्षिण पश्चिम में शिकारपुर-सिंध तक विस्तृत था। रणजीत सिंह ने ब्रितानियों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखे। नाभा, पटियाला व जींद के मामले में तथा तत्पश्चात् सिन्ध के मामले (1831-31) एवं शिकारपुर के मामले (1836) में उन्होंने धैर्य से काम लेकर अनावश्यक संघर्ष को टाला। लार्ड आकलैण्ड ने दिसम्बर, 1838 ई. में पंजाब की यात्रा की तथा रणजीत सिंह से मुलाकात की। उन्होंने दरबार में जाकर ब्रितानियों तथा सिक्खों की स्थायी मित्रता की प्रार्थना की। इसके बाद लाहौर में रणजीत सिंह से एक सन्धि की गई, जिसके द्वारा ब्रितानियों ने अफगानिस्तान के मामले में रणजीत सिंह का सहयोग प्राप्त कर लिया। इस समय ब्रितानियों का पंजाब एवं सिन्ध को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर अधिकार था एवं वे बहुत शक्तिशाली थे। रणजीत सिंह जानते थे कि अगर ब्रितानियों से संघर्ष किया गया, तो उसका राज्य नष्ट हो जाएगा। अतः: उन्होंने ब्रितानियों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखे। वस्तुतः: ब्रितानियों के नियंत्रण से मुक्त एक स्वतंत्र सिक्ख राज्य की स्थापना करना रणजीत सिंह की एक महान सफलता थी।
रणजीत सिंह ने धार्मिक भेद-भावों के बिना सभी जातियों के व्यक्तियों को योग्यतानुसार उच्च पदों पर नियुक्त किया। उनके प्रधानमंत्री डोगरा राजपूत राजा ध्यान सिंह एवं विदेश मंत्री फकीर अजीजुद्दीन थे। वस्तुतः: रणजीत सिंह एक महान् एवं दूरदर्शी शासक थे, जिनकी सहिष्णुता की भावना की सभी इतिहासकारों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी अयोग्य एवं निर्बल थे, अतः: उनकी मृत्यु के 10 वर्षों बाद ही उनके साम्राज्य पर ब्रितानियों का अधिकार हो गया।