आधुनिक भारत का इतिहास-वहाबी आन्दोलन Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 से पहले का इतिहास (1600-1858 ई.तक) >>> वहाबी आन्दोलन

वहाबी आन्दोलन
वहाबी आंदोलन उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे दशक के सातवें वर्ष तक चला। इसने सुनियोजित रूप से ब्रिटिश प्रभुसत्ता को सबसे गम्भीर चुनौती दी। इस आंदोलन के प्रवर्तक सैयद अहमद (1786-1831) थे, जो रायबरेली के निवासी थे। वह दिल्ली के एक सन्त शाह वली उल्ला (1702-62) से बहुत अधिक प्रभावित हुए। सैयद अहमद इस्लाम में परिवर्तनों और सुधारों के विरूद्ध थे। वह रूढ़िवादी होने के कारण मुहम्मद के समय के इस्लाम धर्म को पुन: स्थापित करना चाहते थे। वस्तुतः: यह पुनरूत्थान आंदोलन था।

सैयद अहमद ने वहाबी आंदोलन का नेतृत्व किया और अपनी सहायता के लिए चार खलीफे नियुक्त किए, ताकि देशव्यापी आंदोलन चलाया जा सके। उन्होंने इस आंदोलन का केन्द्र उतर पश्चिमी कबाइली प्रदेश में सिथाना बनाया। भारत में इसका मुख्य केन्द्र पटना और इसकी शाखाएँ हैदराबाद, मद्रास, बंगाल, यू. पी. एवं बम्बई में स्थापित की गईं।

सैयद अहमद काफिरों के देश (दार-उल हर्ब) को मुसलमानों के देश (दारूल इस्लाम) में बदलना चाहते थे। अतः: उन्होंने पंजाब में सिक्खों के राज्य के विरूद्ध जिहाद की घोषणा की। उन्होंने 1830 ई. में पेशावर पर विजय प्राप्त की, परन्तु शीघ्र ही वह उनके हाथ से निकल गया और सैयद अहमद युद्ध में लड़ते हुए मारे गए। 1849 ईं. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सिक्ख राज्य को समाप्त कर पंजाब को ब्रिटिश राज्य में सम्मिलित कर लिया, तो भारत के समस्त ब्रिटिश प्रदेशों के वहाबियों ने अपना दुश्मन मान लिया।

1857 ई. के विद्रोह के समय वहाबियों ने ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का प्रसार किया, परन्तु ब्रिटिश विरोधी सैनिक गतिविधि में उन्होंने कोई भाग नहीं लिया।

ब्रितानियों को भय था कि वहाबियों को अफगानिस्तान अथवा रूस से सहायता प्राप्त न हो जाए। 1860 ई. के बाद ब्रिटिश सरकार ने वहाबियों का दमन करने के लिए एक विशाल पैमाने पर सैनिक अभियान आरम्भ किया तथा सिथाना पर चारों ओर से सैनिक दबाव डाला गया। इसके अतिरिक्त भारत में वहाबियों पर देश द्रोह का आरोप लगाया गया और उनके विरूद्ध न्यायालयों में अभियोग चलाए गए। वहाबी आंदोलन बहुत समय तक चलता रहा और उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम 20 वर्षों तक उन्होंने पहाड़ी सीमावर्ती कबीलों की सहायता की, परन्तु इसके बाद यह आंदोलन धीमा होता चला गया।

यह आंदोलन मुसलमानों का, मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के लिए ही चलाया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य भारत को मुसलमानों के देश में परिवर्तित करना था। यह आंदोलन रूढ़िवादी विचारधारा के कारण कभी भी राष्ट्रीय आंदोलन का रूप धारण नहीं कर सका, अपितु इसने देश के मुसलमानों में पृथकवाद की भावना जागृत की।



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