लाहौर की सन्धि
9 मार्च, 1846 ई. को ब्रितानियों ने सिक्खों को लाहौर की अपमानजनक सन्धि करने के लिए विवश किया, उसकी शर्तें इस प्रकार थीं--
सिक्ख सेना को घटाकर 25 पैदल बटालियन एवं 12,000 घुड़सवार सैनिक को रखा गया।
सिक्खों ने ब्रितानियों से छीनी उनकी 34 तोपें लौटा दीं।
ब्रितानियों ने सतलज व व्यास नदी के बीच का प्रदेश तथा कांगड़ा का प्रदेश सिक्खों से छीन लिया।
युद्ध क्षतिपूर्ति डेढ़ करोड़ रूपया निश्चित की गई। चूँकि सिक्खों के पास इतना धन नहीं था, अतः उन्होंने अपने जम्मू तथा कश्मीर के प्रान्त को एक करोड़ रूपये में महाराजा गुलाब सिंह को बेचकर वह धन ब्रितानियों को सौंप दिया।
दिसम्बर, 1846 ई. में सिक्खों की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए सर हेनरी लारेन्स, जान लारेन्स एवं एक अन्य ब्रितानी को मिलाकर एक बोर्ड की स्थापना की गई।
अवयस्क दिलीप सिंह को रानी जिन्दाँ के संरक्षण में गद्दी पर बैठाया गया।
लाल सिंह को प्रधानमंत्री रहने दिया गया।