इंग्लैण्ड, फ्रांस एवं हालैण्ड के व्यापारियों का भारत आगमन
16वीं सदी में भारत अपनी समृद्धि के चरम पर पहुँच चुका था। उसके वैभव की दूर-दूर तक चर्चा होती थी। फ्राँसीसी पर्यटक बर्नियर ने लिखा है, उस समय का भारत एक ऐसा गहरा कुआँ था, जिसमें चारों ओर से संसार भर का सोना-चाँदी आ-आकर एकत्रित हो जाता था, पर जिसमें से बाहर जाने का कोई रास्ता भी नहीं था। 1591 ई. में रेल्फिच भारत आया तथा उसने इंग्लैण्ड लौटकर भारत की समृद्धि का गुणगान किया। इससे ब्रितानियों को भारत से व्यापार करने की प्रेरणा मिली। 22 दिसम्बर, 1599 ई. में लार्ड मेयर ने भारत से व्यापार के लिए ब्रितानी व्यापारियों की एक संस्था स्थापित की, जिसे 31 दिसम्बर, 1600 ई. को ब्रिटिश साम्राज्ञी एलिजाबेथ प्रथम ने भारत से व्यापार करने का अधिकार दे दिया। इस संस्था का नाम आरम्भ में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी रखा गया, किन्तु बाद में यह मात्र ईस्ट इण्डिया कम्पनी रह गया। 1602 ई. में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना के बाद हालैण्ड के व्यापारी भी भारत से व्यापार करने लगे। 1664 ई. में फ्रैंज ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना के बाद फ्राँसीसियों ने भी भारत के साथ व्यापार करना शुरू कर दिया। उन्होंने 1667 ई. में सूरत में कोठियाँ स्थापित की। उन्होंने पांडिचेरी, माही, यनाम तथा कलकत्ता में अपनी कोठियाँ स्थापित की तथा कुछ उपनिवेशों की भी स्थापना की। 1600 ई. से 1756 ई. तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी इसी औपनिवेशिक स्थिति में रही।