आधुनिक भारत का इतिहास-पश्चिमी भारत में विद्रोह Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 से पहले का इतिहास (1600-1858 ई.तक) >>> पश्चिमी भारत में विद्रोह

पश्चिमी भारत में विद्रोह
(1) भीलों का विद्रोह : भीलों की आदिम जाति पश्चिमी तट के खानदेश ज़िले में रहती थी। 1812-19 तक इन लोगों ने ब्रिटिश सरकारें के विरूद्ध हथियार उठा लिए। कंपनी के अधिकारियों का मानना था कि पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा उसके प्रतिनिधि त्रिम्बकजी दांगलिया के उकसाने के कारण ही यह विद्रोह हुआ था। वास्तव में कृषि संबंधी कष्ट एवं नवीन सरकार से भय ही इस विद्रोह का प्रमुख कारण था। ब्रिटिश सेना ने इस विद्रोह का दमन का प्रयास किया, तो भीलों में उत्तेजना और भी बढ़ गई, विशेषतया उस समय, जब उन्हें बरमा में ब्रिटिश सरकारें की असफलता की सूचना मिली। उन्होंने 1825 ई. में पुन: विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह का नेतृत्व सेवरम ने किया। 1831 एवं 1846 में पुन: उपद्रव उठ खड़े हुए। इससे पता चलता है कि इसने ब्रिटिश विरोधी लोकप्रिय आंदोलन का रूप धारण कर लिया था।

(2) कोल विद्रोह : कोल भीलों के पड़ौसी थे। ब्रिटिश सरकारें ने उनके दुर्ग नष्ट कर दिए थे, अतः: वे उनसे अप्रसन्न थे। उसके अतिरिक्त ब्रिटिश शासन के दौरान उनमें बेरोज़गारी बढ़ गई। कोलों ने ब्रिटिश सरकारें के विरुद्ध 1829, 1839 तथा पुन: 1844 से 1848 ई. तक विद्रोह किए। कंपनी की सेना ने इन सब विद्रोहों का दमन कर दिया।

(3) कच्छ का विद्रोह : कच्छ तथा काठियावाड़ में भी ब्रिटिश सरकारें के विरुद्ध असंतोष विद्यमान था। संघर्ष का प्रमुख कारण कच्छ के राजा भारमल और झरेजा के समर्थक सरदारों में व्याप्त रोष था। 1819 ई. में ब्रिटिश सरकारें ने भारमल को पराजित कर दिया और उसके स्थान पर उसके अल्प-वयस्क पुत्र को शासक बना दिया। इस प्रदेश के शासन का संचालन करने हेतु एक प्रति शासक परिषद् (Council of Regency) की स्थापना की गई, जो एक ब्रिटिश रेज़िडेंट के निर्देशन में कार्य करती थी। इस परिषद् द्वारा किए गए परिवर्तनों तथा भूमि कर में अत्यधिक वृद्धि के कारण लोगों में बहुत रोष था। बरमा युद्ध में ब्रितानियों की पराजय का समाचार मिलते ही इन लोगों ने विद्रोह कर दिया और भारमल को पुन: शासन बनाने की माँग की। ब्रिटिश सरकारें ने इस विद्रोह का दमन करने के लिए चंबे समय तक सैनिक कार्यवाही की। 1831 ईं. में पुन: विद्रोह हो गया तथा अंत में कंपनी ने अनुरंजन की नीति अपनाई।

(4) बघेरों का विद्रोह : ओखा मंडल के बघेरों में आरंभ से ही ब्रिटिश सरकारें के विरुद्ध रोष विद्यमान था। जब बड़ौदा के गायकवाड़ ने कंपनी की सेना के सहयोग में इन लोगों से अधिक कर वसूल करने का प्रयत्न किया, तो बघेरों ने अपने सरकार के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकारें के विरुद्ध हथियार उठा लिए। यहीं नहीं, उन्होंने 1818-19 ई. के बीच कंपनी अधिकृत प्रदेश पर हमला भी कर दिया। अंत में 1820 ई. में यहाँ शांति स्थापित हो गई।

(5) सूरत का नमक आंदोलन : ब्रिटिश सरकारें ने 1844 ई. में नमक पर 1/2 रूपया प्रति मन से बढ़ाकर एक रुपया प्रति मन कर दिया, जिसके कारण सूरत के लोगों में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध रोष फैल गया। अतः: यहाँ के लोगों ने हथियार उठा लिए। उन्होंने कुछ यूरोपीय लोगों पर प्रहार भी किए। ब्रिटिश सरकारें ने सशक्त विरोध को देखकर अतिरिक्त कर हटा दिए। इसी प्रकार, 1848 में सरकार ने एक मानक (Standard) नाप और तौल लागू करने का प्रयत्न किया, तो यहाँ के लोगों ने इसका बहिष्कार किया और इसके विरूद्ध सत्याग्रह भी किया। अतः: सरकार ने इसे भी वापस ले लिया।

(6) रमोसियों का विद्रोह : रमोसी एक आदिम जाती थी, जो पश्चिमी घाट में निवास करती थी। इस जाति के लोगों में ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध असंतोष विद्यमान था। 1822 ई. में रमोसियों ने अपने सरदार चित्तरसिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस-पास के प्रदेश में लूटमार की। 1825-26 में पुन: उपद्रव हुए। यह क्षेत्र 1829 ई. तक उपद्रवग्रस्त बना रहा।
इसी प्रकार सितम्बर, 1839 में सतारा के राजा राजप्रतापसिंह को सिंहासन के हटाकर देश से निष्कासित कर दिया गया, जिसके कारण समस्त प्रदेश में रोष फैल गया। परिणामस्वरूप 1840-41 ई. में विस्तृत दंगे हुए। विद्रोहियों का नेतृत्व नरसिंह दत्तात्रेय पेतकर ने किया। उन्होंने बहुत से सैनिक एकत्रित कर लिए तथा बादामी के दुर्ग पर अधिकार करके सतारा के राजा का ध्वज लहरा दिया। ब्रितानियों के विस्तृत सैन्य अभियान के पश्चात ही यहाँ शान्ति स्थापित हो सकी।

(7) कोल्हापुर एवं सावन्तवाड़ी में विद्रोह : कंपनी की सरकार ने 1844 के पश्चात कोल्हापुर राज्य में प्रशासनिक पुनर्गठन किया, जिसके विरूद्ध वहाँ के लोगों में भयंकर असंतोष उत्पन्न हो गया। गाडकारी एक वंशानुगत सैनिक जाति थी, जो मराठों के दुर्गों में सैनिकों के रूप में काम करती थी। कंपनी की सरकार ने उनकी छँटनी कर दी, जिसके कारण गाडकारी जाति के लोग बेरोजगार हो गए। अतः विवश होकर उन्होंने ब्रितानियों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। गाडकारियों ने समनगढ़ एवं भूदरगढ़ के दुर्गो पर अधिकार कर लिया। इसी प्रकार सावन्तवाड़ी में भी विद्रोह हुआ। विस्तृत सैन्य कार्यवाही के पश्चात ही ब्रितानियों को विद्रोहों का दमन करने में सफलता प्राप्त हुई।



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