महाराज रणजीत सिंह के कई पुत्र थे, अतः: उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्रों में गद्दी के लिए संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष में कई राजकुमार मारे गए। प्रत्येक राजकुमार सिक्ख सेना को अपने साथ मिलना चाहता था। अतः: सिक्ख सेना राजकीय नियंत्रण से मुक्त हो गई। सिक्ख सेना ने महारानी जिन्दाँ के भाई प्रधानमंत्री जवाहर सिंह की हत्या कर दी एवं रानी जिन्दाँ का अपमान किया। रानी जिन्दाँ ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए ब्रितानियों से सांठ-गांठ की तथा उन्हें लाहौर पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। ब्रितानी अवसर की तलाश में थे। जब ब्रितानी फिरोजपुर में लाहौर पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे, तोरानी जिन्दाँ ने सिक्ख सेना को सतलज के पुल के पार ब्रिटिश सेना की गतिविधियों को देखने के लिए प्रोत्साहित किया। सिक्ख सेना रानी के षड्यंत्र से अनभिज्ञ थी एवं सेना का प्रधान तेजसिंह रानी का विश्वासपात्र था। दिसम्बर, 1845 ई. में सिक्ख सेना सतलज नहीं को पार कर फिरोजपुर के समीप पहुँच गई। गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग ने 13 दिसम्बर, 1845 ई. को सिक्खों के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। सर्वप्रथम फिरोजपुर के समीप मुदकी नामक स्थान पर 18 दिसम्बर, 1845 ई. को ब्रितानियों एवं सिक्खों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रितानियों का सेनापति ह्यूज गफ था। युद्ध के आरम्भ में सिक्खों का पलड़ा भारी रहा, किन्तु बाद में लालसिंह के विश्वासघात के कारण सिक्ख परास्त हुए। इस युद्ध में ब्रितानियों तथा सिक्खों दोनों को ही भारी हानि हुई तथा ब्रितानी समझ गए कि सिक्खों को परास्त करना आसान कार्य नहीं है। तत्पश्चात् 21 दिसम्बर, 1845 ई. में फिरोजपुर में सिक्खों एवं ब्रितानियों में पुन: संघर्ष हुआ। इसमें सिक्ख सेना बड़ी बहादुरी से लड़ी, किन्तु तेजसिंह की गद्दारी के कारण उन्हें परास्त होना पड़ा। 28 जनवरी, 1846 ई. को अलीवाल में पुन: सिक्खों व ब्रितानियों में कड़ा संघर्ष हुआ। अन्त में सबराऊ के युद्ध में ब्रितानियों ने सिक्खों को निर्णायक रूप से परास्त किया। इस युद्ध में सरदार श्यामसिंह अटारी वाल ने अद्भूत वीरता दिखाई। 20 फरवरी, 1846 ई. को ब्रितानियों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया।