द्वैध शासन के दोष
वस्तुतः द्वैध शासन प्रणाली दोषपूर्ण थी, जिसके प्रमुख दुष्परिणाम इस प्रकार थे ब्रितानियों ने राजस्व के समस्त साधनों र अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। वे नवाब को शासन चलाने के लिए बहुत कम धन देते थे, जिससे शासन का संचालन संभव नहीं था। अतः बंगाल में अराजकता तथा अव्यवस्था फैलने लगी।
जब नवाब के पास धन का अभाव हो गया, तो उन्होंने जनता से धन वसूलने के लिए उसका शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। अतः जनता का जीवन कष्टमय हो गया।
कम्पनी के कर्मचारी भी जनता का बहुत शोषण कर रहे थे।
ब्रितानियों द्वारा कर वसूलने के लिए नियुक्त किए गए भारतीय बड़े भ्रष्ट थे। अतः वल्सर्ट (1767-69) एवं कार्टियर (1770-72) के समय बंगाल में भीषण दुर्भिक्ष पडा। प्रोफेसर कीथ ने लिखा है, बंगाल की लगभग 1/3 जनता इस अकाल से पीड़ित हो गई। इस आपत्तिकाल में भी ब्रितानियों ने अपने मन-माने कर जनता से वसूल करने तथा उनका शोषण जारी रखा।
डॉ. चटर्जी ने लिखा है, क्लाइव द्वारा स्थापित दोहरी शासन प्रणाली एक दूषित शासकीय यन्त्र था। इसके कारण बंगाल में पहले से भी अधिक गड़बड़ फैल गई और जनता पर ऐसे अत्याचार ढाएँ गये, जिसका उदाहरण बंगाल के इतिहास में नहीं मिलता। रिचर्ड बेचर ने लिखा है, ब्रितानियों को जानकर यह दुःख होगा कि जब से कम्पनी के पास दीवानी के अधिकार आए हैं, बंगाल के लोगों की दशा पहले की अपेक्षा अधिक खराब हो गई है। सर ल्यूइस भी इस बात को स्वीकार करते हुए लिखते हैं 1765 से लेकर 1772 ई. तक ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन इतना दूषित तथा भ्रष्ट रहा कि संसार की सभ्य सरकारों ने उसका कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
द्वैध शासन प्रणाली से नवाब के सामने कई कठिनाइयाँ आ गईं। ब्रितानियों ने कम्पनी के लाभ की अपेक्षा अपनी निजी लाभ पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैकाल ने लिखा है, जिस तरह से इन कर्मचारियों ने धन कमाया और खर्च किया, उसको देखकर मानव चित्त आतंकित हो उठता है। अतः कम्पनी को आर्थिक क्षति हुई। द्वैध शासन के फलस्वरूप बंगाल में छोटे-छोटे उद्योगों को धक्का पहुँचा। कम्पनी के कर्मचारी खुलेआम नवाब के अधिकारियों की उपेक्षा करने लगे। इन दोषों को इंग्लैण्ड की सरकार ने 1773 ई. में रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा दूर कर दिया।
रेग्यूलेटिंग एक्ट के अनुसार 1773 से 1784 तक शासन हुआ, किन्तु इसमें भी कई कठिनाईयाँ थीं, अतः इसके दोष दूर करते हेतु 1784 ई. में पिट्स इण्डिया एक्ट पारित किया गया।
बंगाल में 1765 ई. से लेकर 1772 ई. तक द्वैध शासन चला। मिस्टर डे सेन्डरसन ने लिखा है, ब्रिटिश साम्राज्यवाद का रूप स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ, जब वह विजित प्रदेशों में राजस्व संग्रह के लिए लगा। आओ, बंगाल के ब्रिटिश साम्राज्यवाद के रूप में देखें। बंगाल का प्रान्त ब्रितानियों के आगमन तक बड़ा समृद्ध था। बंगाल की समृद्धि का इसी तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि, इतिहास के अनुसार वहाँ कभी अकाल नहीं पड़ा। गत एक हजार वर्षों से बंगाल अपनी निरन्तर समृद्धि के लिए प्रसिद्ध रहा है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद को केवल 13 वर्ष इस समृद्ध प्रान्त में बर्बादी, मृत्यु और अकाल लाने में लगे। के. एम. पन्निकर ने लिखा है, भारतीय इतिहास के किसी काल में भी, यहाँ तक कि तोरमाण और मुहम्मद तुगलक के समय में भी, भारतीयों को ऐसी विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ा, जो कि बंगाल के निवासियों को इस द्वैध शासन काल में झेलनी पड़ी।