यूरोपियनों का भारत में आगमन
संविधान और इतिहास में बहुत गहरा सम्बन्ध होता है। वस्तुतः किसी भी देश का संविधान उस देश के इतिहास की नींव पर ही खड़ा होता है। अतः भारत के संवैधानिक अध्ययन के लिए उसका ऐतिहासिक विश्लेषण करना भी आवश्यक है। ब्रितानी व्यापारी के रूप में भारत में आए तथा उन्होंने परिस्थितियों का लाभ उठाकर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। भारतीयों ने ब्रितानियों के विरूद्ध संघर्ष छेड़ दिया। अतः ब्रितानियों ने भारतीयों को सन्तुष्ट करने हेतु समय-समय पर अनेक अधिनियम पारित किए, जिसमें 1909, 1919 तथा 1935 के अधिनियम प्रमुख हैं। इसमें भारतीय संतुष्ट न हो सके। अन्त में ब्रितानियों ने 1947 में स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया। इसके द्वारा भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। तत्पश्चात् भारतीयों ने अपना संविधान बनाया, जो 1935 के अधिनियम से प्रभावित था। अतः सर्वप्रथम हमें भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना होगा।
प्राचीन काल से ही भारत का रोम के साथ व्यापार होता था। भारत का सामान रोम के द्वारा यूरोप में पहुँचाया जाता था। आठवीं शताब्दी में रोम का स्थान अरबों ने लिया तथा वे भारत के पाश्चात्य देशों के साथ व्यापार के माध्यम बन गए। इस समय भारत के यूरोपियन देशों से व्यापार के तीन मार्ग थे। पहला मार्ग, भारत से ओक्सस, कैस्पियन एवं काला सागर होते हुए यूरोप त था। दूसरा मार्ग, सीरिया होते हुए भूमध्य सागर तक था। तीसरा मार्ग समुद्री था, जो भारत के मिश्र तथा मिश्र की नील नदी से यूरोप तक था। भारत का माल पहले वेनिस एवं जेनेवा नगर में जाता था एवं वहाँ से विभिन्न यूरोपियन देशों में भेजा जाता था, अतः ये नगर समृद्ध हो गये।