आधुनिक भारत का इतिहास-द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 से पहले का इतिहास (1600-1858 ई.तक) >>> द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली

द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली 
कम्पनी को दीवानी तथा निजामत के अधिकार मिल गए थे, परन्तु कम्पनी के कर्मचारियों को मालगुजारी वसूल करने तथा शासन चलाने का अनुभव नहीं था। क्लाइव शासन का प्रत्यक्ष उत्तरदायित्व कम्पनी के हाथों में नहीं लेना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अधिकारों का विभाजन किया। उन्होंने भारतीय अधिकारियों के माध्यम से दीवानी का काम चलाने का निश्चय किया। इस कारण उसने दो नायब दीवान की नियुक्ति की। एक बंगाल के लिए एवं दूसरा बिहार के लिए। बंगाल में मुहम्मद रजा खाँ तथा बिहार में सिताबराय को दीवान के पद पर नियुक्त किया गया। रजा खाँ का केन्द्र मुर्शिदाबाद और सिताबराय का केन्द्र पटना में रखा गया। इस प्रकार कम्पनी ने अपना उत्तरदायित्व दो भारतीय अधिकारियों पर डाल दिया। उसका उद्देश्य तो अधिक से अधिक धन प्राप्त करना था। अधिक आय को जुटाना ही इन दो नायब दीवानों कार्य था।

निजामत के अधिकार भी कम्पनी ने बंगाल के नवाब से प्राप्त कर लिए थे। इसके बदले में वह नवाब को 53 लाख रूपये प्रतिवर्ष बंगाल का शासन कार्य चलाने के लिए देती थी। यद्यपि शासन के समस्त कार्य नवाब के नाम से किए जाते थे, तथापि वह नाममात्र का शासक था और शासन की वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथ में थी। नवाब आन्तरिक और बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा के लिए कम्पनी पर निर्भर था। दूसरे शब्दों में, निजामत की सर्वोच्च शक्ति कम्पनी के पास थी, परन्तु उत्तरदायित्व नवाब का था। चूँकि इस समय बंगाल का नवाब अल्पायु था, इस कारण कम्पनी ने नवाब की ओर से उसके कार्यों की देखभाल करने के लिए नायब निजाम की नियुक्ति की थी और इस पद पर मुहम्मद रजा खाँ की नियुक्ति की गई, जो कम्पनी की ओर से बंगाल का नायब दीवान था। वह कम्पनी के हाथ की कठपुतली था। अतः प्रशासकों की सभी शक्तियाँ कम्पनी के हाथों में केन्द्रीत हो गईं।

क्लाइव की इस शासन व्यवस्था को दोहरा शासन इसलिए कहते हैं कि सिद्धांत में शासन का भार कम्पनी और नवाब में विभाजित किया गया था, परन्तु कम्पनी ने व्यावहारिक रूप में उन सूबों की जिम्मेवारी अपने ऊपर नहीं ली। वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में थी, परन्तु शासन भारतीयों के हाथों था और भारतीय, कम्पनी के हाथ की कठपुतली बने हुए थे। इस प्रकार, वास्तविक सत्ता प्राप्त होते हुए भी कम्पनी ने दूर रहकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया। इस प्रकार सूबों में दो सत्ताओं (एक भारतीय और दूसरी विदेशी सत्ता) की स्थापना हुई। विदेशी सत्ता वास्तविक थी, जबकि भारतीय सत्ता उसकी परछाई मात्र थी।

द्वैध शासन की व्यवस्था बंगाल, बिहार और उड़ीसा में 1765 में से 1772 ई. तक कायम रही। इसके अतिरिक्त शासन की जिम्मेवारी बंगाल के नवाब के सिर पर थी, परन्तु वह नाममात्र शासक थे। दूसरे शब्दों में, नवाब कम्पनी के हाथ का कठपुतला बन हुआ था। सम्पूर्ण प्रशासकीय शक्ति कम्पनी के हाथ में थी, परन्तु प्रत्यक्ष रूप से वह इन सूबों की शासन व्यवस्था के लिए उत्तरदायी थी।



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