1857 की क्रान्ति-गरबड़दास मगनदास वाणिया जेठा माधव बापू गायकवाड़ निहालचंद जवेरी तोरदान खान Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
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गरबड़दास मगनदास वाणिया जेठा माधव बापू गायकवाड़ निहालचंद जवेरी तोरदान खान

20. गरबड़दास
21. मगनदास वाणिया
22. जेठा माधव
23. बापू गायकवाड़
24. निहालचंद जवेरी
25. तोरदान खान
उत्तर भारत में क्रान्ति कि ज्वाला जल रही थी उसे व्यक्तिगत रुप से आणंद के गरबड़दास आर जीवाभाई ठाकोर ने, पाट्ण के मगनदास वाणिया ने, विजापुर के जेठा माधव ने, बड़ौदा के बापू गायकवाड़ और निहालचंद जवेरी ने, दाहोद के तोरदान खान, चुन्नीलाल, द्वारिकादास ने गुजरात में प्रजा के पास जाकर क्रान्ति प्रज्ज्वलित करने का प्रयास किया था। इन लोगों ने अंग्रेजों के विरोध में गाँव- गाँव में इकटठा होकर क्रान्ति की मशाल को प्रज्ज्वलित रखा, इससे कुपित होकर अंग्रेजों ने गुजरात के तकरीबन एक सौ गाँवों में आग लगाकर उन्हें नष्ट कर दिया था। 10 हजार से अधिक लोग इन संग्रामो में मारे गए थे। गुजरात के सामान्य किसानों ने, कारीगरों ने इन छोटी-छोटी पर महत्वपूर्ण लड़ाईयों में अंग्रेजों के राज के प्रति अपनी घृणा, तिरस्कृति और व्यापक रोष को मुखरित किया। इस क्रान्ति की पहली ज्वाला में आदिवासी, किसान, सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी हुई जातियों से लेकर समाज के उच्चतम वर्गों का सहयोग मिला था और क्रान्ति की पहली ज्वाला 1847 से 1865 तक चली थी। गुजरात में भी क्रान्ति की मशाल प्रज्ज्वलित हो उठी थी। विशेषतया आदिवासी गाँवों के उन किसानों, मजदूरों और कारीगरों को मारने में अंग्रेजों ने कोई कसर नहीं रखी, जिन्होनें अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध आवाज उठाई थी।इन वनवासी आदिवासी विस्तारों में पालचितरिया और मानगढ़ की निर्दोष महिलाओं को उनके बालकों के साथ अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर जान से मार डाला। इन निहत्थों पर यह असह्य अत्याचार था। भारत के इतिहास में इनके बलिदानों की याद में स्मारकों की रचना होनी चाहिए। ताजापुर में भी ऐसा ही बलिदान, समर्पण की गाथा का स्मारक बनाया गया है।



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