1857 की क्रान्ति-नरपति सिंह

Narpati Singh

नरपति सिंह

रूइया नाम के एक छोटे से किले के रक्षक-एक छोटे से जमींदार नरपतिसिंह ने जब सुना कि वालपोल जैसे इतिहास प्रसिद्ध सेनापति के नेतृत्व में विशाल और सुसज्जित ब्रितानी सेना उनके किले को तहस-नहस करने पहुँच रही है, तो वह भी राजपूती शान से प्रतिज्ञा कर बैठा- अपनी मुठी-भर सेना के बल पर यदि एक बार ब्रितानियों की विशाल सेना और उसके सेनापति वालपोल के दाँत खट्टे करके खदेड़ न दिया तो मैं क्षत्रिय ही क्या।

प्रतिज्ञा सचमुच ही बहुत कड़ी और असम्भव थी। उधर जब वालपोल ने नरपतिसिंह की प्रतिज्ञा सुनी तो वह भी कह बैठा- उस छिछोरे जमींदार की इतनी हिम्मत जो मुझे नीचा दिखाने के लिए प्रतिज्ञा करे। मैं उसे पीसकर ही दम लूँगा ।

तीखी-नोक दोनों ओर से बढ गई। नरपतिसिंह ने अपनी बात वालपोल तक पहुंचाने के लिए एक युक्ति से काम लिया। कुछ गोरे सैनिक उनके किले में कैद थे उनमें से उन्होंने एक गोरे कैदी को कैद से मुक्त कर दिया और उसे समझा दिया कि वह जनरल वालपोल से कह दे कि नरपतिसिंह ने क्या प्रतिज्ञा की है। उस गोरे सैनिक ने जनरल को सबकुछ बता दिया। क्रांतिकारी सेना के संबंध में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि नरपतिसिंह के पास कुल मिलाकर ढाई सौ सैनिकों से अधिक नहीं है। जनरल वालपोल के नेतृत्व में तो कई हजार सैनिक थे और उसके पास विशाल तोपखाना भी था। उन्होंने सोचा कि उस छोटे से जमींदार और उसके ढाई सौ सैनिकों को पीसकर रख दूँगा।

क्रोध और आवेश में आकर जनरल वालपोल ने अपनी सेना से कहा नरपतिसिंह के पास दो हजार सैनिक हैं। क्या तुम उनसे निबटने की क्षमता रखते हो ? सेना की गवोंक्ति थी -दो हजार हों तो भी हम उनको पीसकर रख देंगे। वालपोल ने सोचा -जब ये लोग चार हजार सैनिकों को पीसकर रख देने का दम भरते हैं तो केवल ढाई सौ सैनिकों को तो ये पलक झपकते ही समाप्त कर देंगे। उन्होंने यहाँ तक सोचा कि जब तक मेरी सेना रुइया किले तक पहुँचेगी, तब तक तो नरपतिसिंह पीठ दिखाकर भाग चुकेगा।

वालपोल की सेना रुइया किले तक पहुँच गई। उन्होंने किले को चारों ओर से घेर लिया। किले की दीवार के ठीक नीचे तक ब्रितानी सेना पहुँच गई। किले की खाई के पास ब्रितानी सेना का जमाव अधिक था। गोलियों का आदान-प्रदान प्रारंभ हो गया। नरपतिसिंह के सैनिकों ने शत्रु सेना के जमाव के स्थान पर ही भयंकर गोलीवर्षा की। देखते-ही-देखते छियालीस गोरे सैनिक मारे गए। गोलियों की इस तीखी मार से घबराकर ब्रितानी तोपों ने गोले दागने का काम प्रांरभ कर दिया। वे गोले किले की दीवारों से टकराकर ब्रितानी सैनिकों पर ही गिरने लगे, जो दीवार के नीचे तक पहुँच गए थे। अब जनरल होपग्रंट भी जनरल वालपोल की सहायता के लिए अपनी सेना सहित पहुँच गया। नरपतिसिंह और अधिक भयानक युद्ध करने लगे। उनकी क्रोध की अग्नि में जनरल होपग्रंट भस्म हो गया। ब्रितानी सैनिक होलों की तरफ भूजे जा रहे थे। उन्हें पटापट-पटापट गिरते देखकर ब्रितानी सेना के सामने पीछे हटने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था। पराजित होकर ब्रितानी सेना पीठ दिखा गई।

नरपतिसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दिखाई। ब्रितानी सेना के पलायन के पश्चात अपने वीर सैनिकों को साथ लेकर वह स्वयं किला छोड़कर चले गये। 1857 की रक्तिम क्रांति में उन्होंने अपनी वीरता और आन-बान का एक अध्याय जोड़ दिया।


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