1857 की क्रान्ति-तिलका माँझी

Tilka manjhi

तिलका माँझी

बिहार के पर्वतीय प्रदेश में संथाल जाति और ब्रितानी सेना के बीच भयंकर लड़ाई चल रही थी। संथाल लोग अपनी भूमि को ब्रितानियों से मुक्त कराने के लिए लड़ रहे थे और ब्रितानी लोग संथाली विद्रोहियों को कुचलकर पर्वतीय प्रदेश को अपने अधिकार में लेने के लिए लड़ रहे थे संथाली विद्रोहियों के नेता थे तिलका माँझी और ब्रितानी सेना का संचालन कर रहा था ब्रितानी मजिस्ट्रेट क्लीवलैण्ड।

ब्रितानी सेना कितनी दूर है, यह देखने के लिए वह बहुत ऊँचे ताड़ के वृक्ष पर चढ गया। उस समय ब्रितानी सेना पास ही झाड़ियों में छिपी हुई थी। क्लीवलैंड ने तिलका माँझी को ताड़ के वृक्ष पर चढ़ा हुआ देख लिया। स्थिति का लाभ उठाने के लिए वे घोड़े पर चढकर ताड़ के वृक्ष की ओर लपक पड़े। उनका इरादा था कि विद्रोही तिलका को या तो जीवित गिरफ़्तार कर लिया जाए या उन्हें मार दिया जाए। उन्होंने अपनी टुकड़ी को भी पीछे आने के लिए कहा। ताड़ वृक्ष के नीचे पहुँचकर क्लीवलैंड ने ललकार कर कहा- तिलका तुम अपना धनुष-बाण दो और वृक्ष से नीचे उतरकर हमारे सामने समर्पण कर दो।

वीर तिलका ने अपनी जाँघों में ताड़ वृक्ष को दबाकर अपने दोनों हाथ मुक्त कर लिए और कंधे पर टँगा धनुष उतारकर एक तीर क्लीवलैंड को निशाना बनाकर छोड़ दिया। तिलका का तीर क्लीवलैंड की छाती में गहरा घुस गया। वह घोड़े से गिरकर छटपटाने लगे। इस बीच तिलका फुर्ती के साथ उतरे और ब्रितानी सेना के आने के पहले जंगल में विलीन हो गए।

ब्रितानी सेना जब घटनास्थल पर पहुँची तो उसे अपने अफ़सर का शव ही हाथ लगा। तिलका माँझी छापामार युद्ध का सहारा लेकर ब्रितानी सेना के साथ युद्ध करते हुए मुंगेर, भागलपुर और परगना की चप्पा-चप्पा भूमि को रौंद रहे थे।

ब्रितानी सेना ने सर आर्थर कूट के नेतृत्व में तिलका को फँसाने के लिए अपनी चालाकी का जाल बिछाया। सेना ने कुछ दिन के लिए विद्रोहियों का पीछा करना बंद कर दिया। तिलका और उनके साथियों ने सोचा कि ब्रितानी सेना निराश होकर पलायन कर गई है। विद्रोही संथाल विजयोत्सव मनाने में लीन हो गए। रात्रि को खीब नृत्य गान हुआ। जिस समय संथाल विजयोत्सव मनाने में लीन हो गए। रात्रि को छिपी हुई ब्रितानी फ़ौज ने उन लोगों पर ज़ोरदार आक्रमण कर दिया। बहुत से संथाली वीर या तो मारे गए या बंदी बना लिए गए। बड़ी मुश्किल से उनके नेता तिलका माँझी और उनके कुछ साथी निकलने में सफल हो गए। वह पर्वत श्रृंखला में छिप-छिप कर युद्ध करने लगे।

निरंतर पीछा होने के कारण तिलका के साथियों की संख्या कम होती जा रही थी। उन्हें खाद्य सामग्री भी नहीं मिल रही थी। तिलका और उनके बचे हुए साथी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भूख से मरने के स्थान पर तो आमने-सामने युद्ध में मरना अच्छा रहेगा।

दृढ़ संकल्पी तिलका और उनके साथी एक दिन ब्रितानी सेना पर टूट पड़े। भयंकर युद्ध हुआ। संथाल विद्रोहियों ने बहुत से ब्रितानी सैनिकों को मार गिराया। जनहानि उठाकर भी ब्रितानी लोग तिलका को गिरफ़्तार करने में सफल हो गए। अपनी हानि और पराजयों का बदला लेने के लिए ब्रितानी सेना ने वीर तिलका को एक वट वृक्ष से लटकाकर फाँसी दे दी। अपने प्रदेश की आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए वीर तिलका माँझी स्वाधीनता संग्राम का पहला शहीद माने जाएँगे। उसके कार्यकाल के नब्बे वर्ष पश्चात सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम छिड़ा।

तिलका माँझी का जन्म बिहार के आदिवासी परिवार में तिलकपुर में हुआ था। बचपन से ही तीर चलाने, जंगली का शिकार करने, नदियों को पार करने और ऊँचे-ऊँचे वृक्षों पर चढ़ने में कुशल हो गए थे। वह ब्रितानियों चरा अपनी जाति का शोषण सहन नहीं कर पाते थे। उन्होंने संकल्प कर लिया था कि वह ब्रितानियों के साथ युद्ध करेंगे। वीर तिलका ने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए आज़ादी की बलिवेदी पर अपने प्राणों की भेंट चढ़ा दी।


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