1857 की क्रान्ति- फ़कीरचंद जैन

Fakirchand Jain

फ़कीरचंद जैन

भारत के स्वातंत्रय समर में हजारों निरपराध मारे गये, और यदि सच कहा जाये तो सारे निरपराध ही मारे गये, आखिर अपनी आजादी की मांग करना कोई अपराध तो नहीं है। ऐसे ही निरपराधियों में थे, 13 वर्षीय अमर शहीद फ़कीरचंद जैन। फ़कीरचंद जी लाला हुकुमचंद जी जैन के भतीजे थे। हुकुमचंद जैन ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

हुकुमचंद जैन हांसी के कानूनगो थे, बहादुरशाह जफ़र से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, उनके दरबार में श्री जैन सात साल रहे फ़िर हांसी (हरियाणा) के कानूनगो होकर ये गृहनगर हांसी लौट आये। इन्होंने मिर्जा मुनीर बेग के साथ एक पत्र बहादुरशाह जफ़र को लिखा, जिसमें ब्रितानियों के प्रति घृणा और उनके प्रति संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास बहादुरशाह जफ़र को दिलाया था। जब दिल्ली पर ब्रितानियों ने अधिकार कर लिया तब बहादुरशाह जफ़र की फाइलों में यह पत्र ब्रितानियों के हाथ लग गया। तत्काल हुकुमचंद जी को गिरफ़्तार कर लिया गया, साथ में उनके भतीजे फ़कीरचंद को भी गिरफ़्तार कर लिया गया था। 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फ़ांसी की सजा सुना दी। फ़कीरचंद जी को मुक्त कर दिया गया।

19 जनवरी 1858 को हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को हांसी में लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फ़ांसी दे दी गई। 13 वर्षीय फ़कीरचंद इस दृश्य को भारी जनता के साथ ही खड़े-खड़े देख रहे थे, पर अचानक गोराशाही ने बिना किसी अपराध के, बिना किसी वारंट के उन्हे पकड़ा और वहीं फ़ांसी पर लटका दिया। इस तरह आजादी के दीवाने फ़कीरचंद जी शहीद हो गये।




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