1857 की क्रान्ति-अजीमुल्ला खाँ

Ajimullah Khan

अजीमुल्ला खाँ

अजीमुल्ला खाँ 1857 की क्रांति के आधार स्तंभो में से थे। उन्होंने नाना साहब द्युद्यूपंत के साथ मिलकर क्रांति की योजना तैयार की थी नाना साहब ने इनके साथ भारत के कई तीर्थ स्थलों की यात्रा भी की व क्रांति का संदेश भी फैलाया।

अजीमुल्ला खां का जन्म साधारण परिवार में हुआ था। इनके माता पिता बहुत गरीब थे। बहुत ही मुश्किल से कानपुर के एक स्कूल में इनको दाखिला मिला लेकिन ये पढ़ने में मेधावी थे, इसलिये इनकी फ़ीस माफ़ की गई व छात्रवृति भी दी ग़ई। बाद में बड़े होने पर वे इसी स्कूल में शिक्षक बन गये।

अजीमुल्ला खां की योग्यता व ईमानदारी की कहानी नाना साहब के कानों तक पहुँची तो उन्होंने अजीमुल्ला खां को अपना मंत्री बना लिया। नाना साहब के यहाँ आने से पहले अजीमुल्ला खां एक ब्रितानी पदाधिकारी के यहां बावर्ची का काम करते थे। इसके सम्पर्क में आकर अजीमुल्ला खाँ ने अंग्रेजी व फ़्रांसीसी दोनों भाषाओं व ब्रितानियों के रीति-रिवाजों को सीखा। 26 जनवरी 1851 में जब बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हो गई तो उनके दत्तक पुत्र घ्नाना साहब को पेशवा की उपाधि व व्यक्तिगत सुविधाओं से वंचित रखा गया।

1854 में नाना साहब ने अजीमुल्ला खां को अपना राजनैतिक दूत बनाकर इंग्लैंड भेजा। अजीमुल्ला खां ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों से मिलकर नाना साहब के लिये वकालत की। लेकिन उन्हे निराशा ही हाथ लगी। गवर्नर जनरल ने निर्णय सुनाया की बाजीराव के दत्तक पुत्र ( नाना साहब) को अपने पिता की पेंशन नहीं दी जाएगी।

अजीमुल्ला खां निराश नहीं हुए। उन्होंने कुछ समय लंदन में ही रहना उचित समझा। वहाँ इनकी मुलाकात रंगो बापू जी से हुई जो सतारा के उत्तराधिकारी को उनके अधिकार दिलाने के लिये उनके प्रतिनिधि बन कर आये थे। लेकिन उनको भी सफ़लता नहीं मिली। धीरे-धीरे अजीमुल्ला खां व रंगों बापू दोनो का ह्रदय प्रतिशोध के लिये तड़प उठा। दोनो ने मिलकर कंपनी सरकार का विरोध करने की योजना बनाई। ये दोनो क्रांति की योजना बनाने लगे। रंगों बापू तो भारत लौट आये परन्तु अजीमुल्ला खाँ ने अन्य देशों की यात्राएँ की जिसका उद्देश्य भारत की राजनैतिक स्थिति से विदेशियों को परिचित कराना था। भारत लौटने पर क्रांति की योजनाएँ बनाई जाने लगी। अजीमुल्ला खां 1857 की क्रांति के प्रमुख विचारक थे, जिन्होंने भले ही मैदान में युद्ध न किया हो पर युद्ध करने वालो के लिये कई नीतियां बनाई।

अजीमुल्ला खां की डायरी से पता चलता है कि उन्होंने इलाहाबाद, गया जनकपुर, पारसनाथ, जगन्नाथपुरी, पंचवटी, रामेश्वरम, द्वारिका, नासिक, आबू, आदि स्थानों की यात्रा की। 4 जून को कानपुर में क्रांति हो गई जिसका नेतृत्व नाना साहब ने किया। इस युद्ध में अजीमुल्ला खां का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 17 जुलाई को क्रांति पुन: कानपुर में फ़ैल गई। अंत में क्रांतिकारी पराजित हो ग़ये क्योंकि उन लोगों के पास साधनों का अभाव था। क्रांति के विफ़ल होने पर अजीमुल्ला खां नेपाल की तराई की ओर चले गये। नेपाल का राजा राणा जंग बहादुर ब्रितानियों के हितैषी थे। ये क्रांतिकारियों को क्षति पहुँचाना चाहते थे।

यहां अजीमुल्ला खां को कई कष्ट उठाने पड़े, लेकिन उन्होंने ब्रितानियों के सामने घुटने नहीं टेके। अजीमुल्ला खां का देहांत अक्टूबर के महीने में भुखलड़ में हुआ था। हम उनके बलिदान को हमेशा याद रखेंग़े।


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