भारत सरकार की योजनाएं-जिला और राज्य सिंचाई योजनाएं

Zila Aur Rajya Sinchai Yojnayein

जिला और राज्य सिंचाई योजनाएं
जिला सिंचाई योजनाएं पीएमकेएसवाई की योजना बनाने और क्रियान्वयन के लिए के दौरान अन्य जारी योजनाओं (राज्य और केन्द्रीय दोनों) जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंदी योजना (मनरेगा), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ), सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीएलएडी) योजना, विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास (एमएलएएलएडी) योजना, स्थानीय निकाय निधियों आदि के रू-बरू राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए पहले से तैयार जिला कृषि योजना (डीएपी) पर विचार करने के पश्चात डीआईपी सिंचाई अवसंरचना में कमी (गैप्स) को चिन्हित करेगा ।
रणनीतिगत अनुसंधान और विस्तार योजना (एसआरईजीपी) के तहत चिन्हित कमियां (गैप्स) का उपयोग डीआईपी तैयार करने में होगा।
दीर्घावधि विकास योजनाओं के तीन घटकों यथा जल स्रोत, वितरण नेटवर्क और जल उपयोग प्रणालियों को पेयजल और घरेलू उपयोग, सिंचाई तथा उद्योग के सभी उपयोगों को शामिल करके डी.आई.पी जिले के समग्र सिंचाई विकास परिदृश्य को प्रस्तुत करेगा । डीआईपी जिले में सभी मौजूदा और प्रस्तावित जल संसाधन नेटवर्क प्रणालियों का सारांश तैयार करेगा ।
डीआईपी को दो स्तर, ब्लॉक और जिला पर तैयार किया जायेगा। मानचित्र तैयारी और डाटा एकत्रीकरण की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कार्य को प्राथमिक रूप से ब्लॉक स्तर पर किया जाना है । ब्लॉक स्तरीय सिंचाई योजना को सामाजिक-आर्थिक और स्थान विशेष आवश्यकता पर आधारित कार्यकलापों को प्राथमिकता देते हुए कृषि क्षेत्र के लिए उपलब्ध और संभावित जल संसाधन तथा जल आवश्यकता के आधार पर तैयार किया जाना है। यदि योजना को बेसिन/उप-बेसिन स्तर के आधार पर किया जाना हो तो व्यापक सिंचाई योजना में एक से जयादा जिलों को कवर किया जा सकता है। बेसिन/उप-बेसिन योजना में चिन्हित कार्यकलापों को जिला/ब्लॉक स्तरीय कार्य योजना में अलग किया जा सकता है। शुरू में कम से कम पायलट आधार पर सिंचाई योजनाओं के विकास के लिए सैटलाइट इमेजरी, टोपोशीट और उपलब्ध डाटाबेस के उपयोग को उचित रूप से उपयोग किया जा सकता है और तदनुसार उसको सभी परियोजनाओं के लिए जा सकता है। डी.आई.पी तैयार करते समय पनधारा परियोजनाओं की डीपीआर को भी ध्यान में रखना चाहिए। इन आयोजनों (प्लान्स) को पंचायत राज संस्थाओं को शामिल करते हुए गहन पारस्परिक मशविरा प्रक्रिया से तैयार करने की आवश्यकता है। राज्य कृषि विश्वविद्यालय भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और जिला स्तरीय योजनाओं के निष्पादन और क्रियान्वयन में गहरे रूप से जुडे होने चाहिएं। ग्रामीण विकास, शहरी विकास विभाग, पेयजल, पर्यावरण तथा वन, विज्ञान एवं प्रोदयोगिक, औदयोगिक नीति आदि के साथ इस क्षेत्र के लिए उपलब्ध तकनीकी, वितीय और मानव संसाधन को जल क्षेत्र के व्यापक विकास के लिए लगाया जाना है। तदोपरान्त डीआईपी को राज्य सिंचाई योजना (एसआईपी) में शामिल किया जाना है।
प्रत्येक फार्म को या तो निश्चित या संरक्षी जल स्रोत की उपलब्धता के लिए ब्लॉक के भूमि जल विज्ञान और कृषि पारिस्थितकी परिदृश्य पर ध्यान देते हुए फसल जल आवश्यकता का मांग और आपूर्ति आकलन, प्रभावी वर्षा एवं उपलब्ध और नये जल स्त्रोतों के क्षमतापूर्ण स्रोत की आवश्यकता होगी। मास्टर प्लान में उपलब्ध जल, वितरण नेटवर्क निष्क्रिय जल निकायों, सतही और उप-सतही प्रणालियों सहित नई क्षमतात्मक जल स्त्रोतों, अनुप्रयोग तथा परिवहन प्रावधान, उपलब्ध/अभिकल्पित जल की मात्रा और स्थनीय कृषि पारिस्थितकी के उचित के लिए एकीकृत फसल और फसलन प्रणाली के सभी स्त्रोतों पर सूचना शामिल की जायेगी। जल संचयन, सतही/उप-सतही स्त्रोतों से जल की वृद्धि , जल निकायों की मरम्मत और पुर्नधार सहित जल अनुप्रयोग और वितरण, मुख्य मध्य और लघ सिंचाई कार्य, कंमाड क्षेत्र विकास आदि से संभावित सभी कार्यकलापों को इस मास्टर प्लान के भीतर किया जाना है। प्रभावी वितरण और अनुप्रयोग तंत्र के जरिये जल स्रोत की पहुंच/कवरेज को बढ़ाना, कंमाड क्षेत्र विकास और सूक्ष्म सिंचाई पर ज्यादा ध्यान देने के जरिये निर्मित क्षमता और उपयोग के बीच अंतर को कम करना जैसे लो हैंगिंग फूट से क्षमता लाभ प्राप्त करने पर जोर दिया जाना है। जल संसाधनों के बेहतर उचित उपयोग के लिए बांध और जल संचयन संरचनाओं जैसे स्रोत के निर्माण, नहर और कंमाड क्षेत्र विकास कार्य तथा सूक्ष्म सिंचाई के उचित समेकन किया जाना है। सिंचाई प्रयोजन के लिए शहरी परिशुद्ध अपशिष्ट जल के उपयोग के लिए भी कदम उठाये जाना है। सम्बन्धित नगरों के लिए शहरी निवास स्थान के सम्पूर्ण कृषि भूमि में इस प्रयोजन के लिए कंमाड क्षेत्र चिन्हित किया जायेगा। तथापि उपयोग के समय में विशेष कार्यकलापों के लिए गन्दें पानी की गुणवत्ता के संस्तुत मानदण्डों (परिशिष्ट ग में दिया गया) को साफ किये गये पानी के उपयोग के दौरान सुनिश्चित किया जाये।
एसआईपी न केवल डीआईपी को शामिल करके तथा आरकेवीवाई के लिए पहले से ही उपलब्ध राज्य कृषि योजना (एसएपी) के साथ सह-सम्बंधित करता है तथा दीर्घवधि सीमा के माध्यम से संसाधन और रूपरेखा निश्चित वार्षिक कार्य योजना को भी प्रथामिकता देता है। यह योजना कृषि प्रौदयोगिकी प्रबंधन एंजेंसी (एटीएमए) के निरीक्षण के तहत विस्तार और आईसीदी संबंधित कार्यकलापों पर सूचीबद्ध करने का कार्य भी करता है।
डीआईपी और एसआईपी संसाधनों और प्रयासों के अति अच्छादित को कम करके तथा विभिन्न केंद्रीय प्रायोजित/राज्य योजना स्कीमों के जरिये उपलब्ध निधियों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करके समरूपता पर आपेक्षित जोर देगा।
प्रत्येक जिलें को जिला सिंचाई योजना की तैयारी के लिए एक बार की वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। पीएमकेएसवाई की शुरूवात से तीन महीने की अवधि के भीतर डीआईपी और एसआईपी को अन्तिम रूप दिया जाना है। एसआईपी की तैयारी और व्यापक सिंचाई विकास के लिए राज्य सरकारों को परामर्श प्रदान करने में राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) का सहयोग होगा।
जिला सिंचाई योजना तैयार करते समय माननीय ससंद सदस्य, स्थानीय विधायक के सुझाव लिए जाएगें और जिला सिंचाई परियोजना में सम्मिलित किया जाएगा। इस जिला स्तरीय परियोजना को अंतिम रूप देते समय स्थानीय संसद सदस्य के उपयोगी सुझावों को प्राथमिकता दी जाएगी।


सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
प्रस्तावना
पीएमकेएसवाई के मुख्य उद्देश्य
योजना की रणनीति और फोकस क्षेत्र
कार्यक्रम घटक
जिला और राज्य सिंचाई योजनाएं
लागत मानदण्ड और सहायता का प्रतिमान
पात्रता मानदण्ड
नोडल विभाग
जिला स्तर क्रियान्वयन समिति (डीएलआईसी) :
राष्ट्रीय परिचालन समिति (एनएससी)
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी)
निधियों की निर्मुक्ति
प्रशासनिक व्यय एवं आकस्मिकताएं
अभिसरण
पीएमकेएसवाई के तहत व्याख्यात्मक कार्यकलाप दिशा निर्देश
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना क्या है ?
इस योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
योजना के उद्देश्यों की उपलब्धि के लिए कौन कौन से कार्यक्रम चलाए जाएगों तथा इसके लिए धनराशि की क्या व्यवस्था है ?
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में माननीय संसद सदस्य तथा स्थानीय विधायक की क्या भूमिका होगी ?

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