1857 की क्रान्ति-रूपरेखा 1857 की क्रांति Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 की क्रांति विस्तारपूर्वक >>> रूपरेखा 1857 की क्रांति

रूपरेखा

1857 की क्रांति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व रूपरेखा पर कुछ प्रकाश डाले बिना इसका अध्ययन अधूरा ही रहेगा। जिस समय ब्रितानी भारत में व्यापार करने के लिये आये थे उस समय भारत में मुगलों का शासन था। 1599 ई में ब्रिटिश व्यापारियों ने भारत व पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के लिये ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। 1600 ई में इग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम ने इस कंपनी को भारत में व्यापार करने व सशस्त्र नौ सेना संगठित करने की अनुमति दे दी।

प्रारम्भ में ईस्ट इंडिया कंपनी का लक्ष्य शांतिपूर्ण तरीके से व्यापार करना था। 100 साल तक कंपनी ने यहां सिर्फ़ व्यापार ही किया। उसने भारत से व्यापार करने के लिये समुद्री तट के विभिन्न स्थानों पर कई व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये। कंपनी ने 1615 ई में जहागीर के दरबार में सर टामस रो को राजदूत के रू प में भेजा। सूरत, मछलीपट्टनम, मद्रास ,बम्बई तथा कलकत्ता में फ़ैक्ट्रियाँ खोली गई। बाद में ये बड़े बंदरगाह में विकसित हो गए।

कंपनी को व्यापारिक क्षेत्र में अपना खास स्थान बनाने के लिये कई यूरोपीय देशों की कम्पनियों जैसे डच, पुर्तगाली, फ़्रांसीसी से लड़ना पड़ा। बाद में ज्यादातर क्षेत्रों पर ईस्टइंडिया कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। व्यापार में पांव जमाने के बाद कंपनी भारत के राजनैतिक मामलों में भी दखल देने लगी।

कंपनी के कर्मचारी राजनैतिक सत्ता का दुरुपयोग करने लगे। शासन में भ्रष्टाचार लूट-पाट, शुरू हो गयी। इंग्लैंड के लोग भी कंपनी के कुशासन से नाराज थे। इंग्लैण्ड के शासक समझ गये कि निजी कंपनी के हाथों में भारत का शासन छोड़ना उचित नहीं है, उस पर किसी न किसी रू प से नियंत्रण कायम रखना चाहिये।

ब्रिटिश संसद ने 1773 ई में रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा भारत में कंपनी के शासन कार्य को नियंत्रित करना शुरू किया। नयी व्यवस्था के अनुसार कंपनी का शासन ब्रिटिश मंत्री मण्डल की देखरेख में होने लगा। रेग्युलेटिंग एक्ट के दोष को दूर करने के लिये बंगाल जूडीकेचर एक्ट 1781 में पारित किया गया। इस विधेयक के द्वारा भारत में महत्वपूर्ण सुधार लाया गया। इसके द्वारा एक नियंत्रण मण्डल की स्थापना की गई। इसके बाद 1793 ,1813,1833 व 1853 के चार्टर एक्ट्स ही कंपनी के शासन काल में इंग्लैण्ड द्वारा पारित अंतिम विधेयक थे। कंपनी ने अपने राजनीतिक अधिकार क्षेत्र का काफ़ी विस्तार किया। कई देशी राजाओं को अपने अधीन कर लिया। 1856 तक प्राय: सम्पूर्ण भारत में कंपनी का साम्राज्य स्थापित हो गया था।

इतने बड़े राजनैतिक क्षेत्र को कंपनी के हाथ में छोडना उचित नहीं था। ब्रिटिश सरकार मौके की तलाश में थी। इसके अलावा इंग्लैंड में बहुत से लोग भारत में कंपनी के अधिकारियों की श्री वृद्धि से जलने लगे। वे ब्रिटिश सरकार पर कंपनी शासन में हस्तक्षेप करने के लिये दबाव डालने लगे।

1857 की क्रांति पर उपरोक्त सभी घटनाओं का भी प्रभाव पड़ा। कंपनी के कुशासन से भारतीय नाराज थे जिससे उनमें विद्रोह की ज्वाला उत्पन्न होने लगी। भारतीय गुलामी को सहन नहीं कर पा रहे थे। फ़लस्वरूप वे गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की कोशिश करने लगे।



सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
रूपरेखा 1857 की क्रांति
1857 की क्रांति के मुख्य कारण
1857 की क्रान्ति का फ़ैलाव
1857 की क्रांति की शुरुआत
1857 की क्रांति कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
ब्रिटिश ऑफिसर्स
स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख तारीखें
फ़ूट डालो और राज करो
1857 के विद्रोह की असफ़लता के कारण
1857 की क्रांति के परिणाम
ब्रिटिश समर्थक भारतीय
1857 के क्रांतिकारियों की सूची

Rooprekha 1857 Ki Kranti Aitihasik Prishthbhumi Wa Par Kuch Prakash Dale Bina Iska Adhyayan Adhoora Hee Rahega Jis Samay Britani Bhaarat Me Vyapar Karne Ke Liye Aaye The Us Muglon Ka Shashan Tha 1599 Ee British VyaPariyon ne Poorvi Deshon Sath East India Company Sthapanaa 1600 इग्लैंड Rani Elizabeth Pratham Is Ko Sashasatra 9 Sena SanGathit Anumati De Dee Prarambh Lakshya Shantipurn Tarike Se Karna 100 Sal Tak Yahan Sirf Kiya


Labels,,,