1857 की क्रान्ति-1857 की क्रान्ति का फ़ैलाव Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
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1857 की क्रान्ति का विस्तार एवं फैलाव लगभग समूचे देश में था। यद्यपि अंग्रेज एवं अंग्रेजी के इतिहासकार ऐसा मानते है कि यह एक स्थानीय गदर था परन्तु वास्तविकता ऐसी नहीं थी यह बात जरुर सही है कि इसका केन्द्रीय क्षेत्र दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में था लेकिन व्यापकता का असर लगभग समूचे देश में था।

उत्तर भारत में देखे तो इसके मुख्य स्थान बैरकपुर, मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, झाँसी, बुंदेलखंड़, बरेली, बनारस व इलाहाबाद रहे जहाँ इस क्रांति का पूरा जोर था।

बंगाल व असम का पूरा क्षेत्र उस समय कलकत्ता रेजीडेंसी के अधीन पड़ता था वहाँ कलकत्ता व असम में आम जनता व राजाओं व रियासतों ने भाग लिया।

बिहार में यह संघर्ष पटना,दानापुर, जगदीशपुर (आरा) आदि अनेक स्थानों पर हुआ था।

उस समय में पंजाब में आधुनिक भारत व पाकिस्तान के क्षेत्र आते थे। वहाँ लाहोर, फ़िरोजपुर, अमृतसर, जालंधर, रावलपिंडी, झेलम, सियालकोट, अंबाला तथा गुरदासपुर में सैनिकों व आम जनता ने इस संग्राम में बढ़ चढकर हिस्सा लिया था।

हरियाणा का योगदान भी इस संग्राम में महत्वपूर्ण था यहाँ के गुड़गाँव, मेवात, बहादुरगढ़, नारनोल, हिसार, झज्झर आदि स्थानों पर यह संग्राम अपने परवान पर था।

उस समय में मध्य भारत में इंदौर, ग्वालियर, महू सागर, बुंदेलखंड़ व रायपुर स्थानों को केन्द्र में रखते हुए यह संग्राम आगे बढ़ा था।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को यह कहना कि यह केवल उत्तर भारत तक सीमित था असत्य एवं भ्रामक है। दक्षिण भारत में यह संघर्ष करीब- करीब हर जगह व्याप्त था।

महाराष्ट्र में यह संघर्ष जिन स्थानों पर हुआ था उनमें सतारा, कोल्हापुर, पूना, मुम्बई, नासिक, बीजापुर, औरंगाबाद, अहमदनगर मुख्य थे।

आंध्र प्रदेश में यह संग्राम रॉयल सीमा, हैदराबाद, राजमुड़ी, तक फ़ैला हुआ था जहाँ किसानों ने भी इस संघर्ष में भाग लिया था।

कर्नाटक में हम देखते है तो पाते है कि मैसूर, कारवाड़, शोरापुर, बैंगलोर स्थानों पर इस संग्राम में लोगों ने अपनी आहुति दी।

तमिलनाडु के मद्रास, चिंगलपुर, आरी, मदुरै में जनता व सिपाहियों ने इस विद्रोह में भाग लिया। यहाँ में भी गुप्त कार्यवाही एवं संघर्ष के केन्द्र थे।

केरल में यह संघर्ष मुख्यतया कालीकट, कोचीन नामक स्थानों पर केन्द्रित था।

उपरोक्त से यह स्पष्ट होता है कि इस संग्राम का फ़ैलाव लगभग पूरे देश में था व इस संघर्ष में प्राय प्रत्येक वर्ग, समुदाय व जाति के लोग़ों ने भाग लिया था।

अंग्रेजों के खिलाफ़ देश के इस संघर्ष से प्रभावित होकर पुर्तगाल की बस्तियों में ग़ोवा में विद्रोह हुआ। फ्रांसिसीयों के अधीन पांड़िचेरी में भी बगावत हुई। यह एक ऐसा समय था जब समूचे दक्षिण एशिया में हलचल व्याप्त रही इसमें नेपाल, अफ़गानिस्तान, भूटान, तिब्बत आदि देश शामिल थे।



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