कृषि एवं उद्यानिकी-आँवले का उपयोग

Anwle Ka Upyog

आँवले का उपयोग
आँवले के पौधों के प्रत्येक भाग का आर्थिक महत्व है। इसके फलों में विटामिन ‘सी’ की अत्यधिक मात्रा पायी जाती है। इसके अतिरिक्त इसके फल लवण, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, रेशा एवं अन्य विटामिनों के भी धनी होते हैं। इसमें पानी 81.2%, प्रोटीन 0.50%, वसा 0.10%, रेशा 3.40%, कार्बोहाइड्रेट 14.00%, कैल्शियम 0.05%, फोस्फोरस 0.02%, लोहा 1.20 (मिली ग्रा./100 ग्रा.), विटामिन ‘सी’ 400-1300 (मिली ग्रा./100 ग्रा.), विटामिन ‘बी’ 30.00 (माइक्रो ग्रा./100 ग्रा.) पाये जाते है। भारत में औषधीय गुणों से युक्त फलों में आँवले का अत्यंत महत्व है। शायद यह फल ही एक ऐसा फल है जो आयुर्वेदिक औषधि के रूप में पूर्ण स्वास्थ्य के लिए प्रयुक्त होता है। हिन्दू शास्त्र के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि तुलसी एवं आँवले के फलों से सिक्त जल से स्नान करना गंगा जल से स्नान करने के तुल्य है।
इसका फल तीक्ष्ण शीतलता दायक एवं मूत्रक और मृदुरेचक होता है। एक चम्मच आँवले के रस को यदि शहद के साथ मिला कर सेवन किया जाय तो इससे कई प्रकार के विकार जैसे क्षय रोग, दमा, खून का बहना, स्कर्वी, मधुमेह, खून की कमी, स्मरण शक्ति की दुर्बलता, कैंसर अवसाद एवं अन्य मस्तिष्क विकार एन्फ़्जलुएन्जा, ठंडक, समय से पहले बुढ़ापा एवं बालों का झड़ना एवं सफेद होने से बचा जा सकता है। प्राय: ऐसा देखा गया है कि यदि एक चम्मच ताजे आँवले का रस, एक कप करेले के रस में मिश्रित करके दो महीने तक प्राय: काल सेवन किया जाय तो प्राकृतिक इन्सुलिन का श्राव बढ़ जाता है। इस प्रकार यह मधुमेह रोग में रक्त मधु को नियंत्रित करके शरीर को स्वस्थ करता है। साथ ही रक्त की कमी, सामान्य दुर्बलता तथा अन्य कई परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। इसका प्रतिदिन प्रात: सेवन करने से कुछ ही दिनों में शरीर में नई स्फूर्ति आती है। यदि ताजे फल प्राप्त न हों तो इसके सूखे चूर्ण को शहद के साथ मिश्रित करके सेवन किया जा सकता है। त्रिफला, च्यवनप्राश, अमृतकलश ख्याति प्राप्त स्वदेशी आयुर्वेदिक औषधियाँ हैं, जो मुख्यत: आँवले के फलों से बनायी जाती हैं। आँवला के इन्हीं गुणों के कारण इसे ‘रसायन’ एवं ‘मेखा रसायन’ (बुद्धि का विकास करने वाला) की श्रेणी में रखा गया है। आँवले के फलों का प्रयोग लिखने की स्याही एवं बाल रंगने के द्रव्य में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों को पानी में उबालने के पश्चात उस पानी से कुल्ला करने पर मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं। ऐसा इसकी पत्तियों में विद्यमान टैनिन एवं फिनोल की अधिकता के कारण होता है। यही नहीं, आँवले के फल को यदि खाया जाय तो वह मृदुरेंचक (पेट साफ़) का कार्य करता है एवं इसकी जड़ का सेवन पीलिया रोग को दूर करने में सहायक होता है। हिन्दू पौराणिक साहित्य में आँवले एवं तुलसी की लकड़ी की माला पहनना काफी शुभ माना गया है। इस प्रकार आँवला की लकड़ी भी उपयोगी है।


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