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Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
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आंवला की खेती

सामान्य जानकारी: आँवला युफ़ोरबिएसी परिवार का पौधा है। यह भारतीय मूल का एक महत्वपूर्ण फल है। भारत केविभिन्न क्षेत्रों में इसे विभिन्न नामों, जैसे, हिंदी में ‘आँवला’, संस्कृत में ‘धात्री’ या ‘आमलकी’, बंगाली एवं उड़ीया में, ‘अमला’ या ‘आमलकी’, तमिल एवं मलयालम में, ‘नेल्ली’, तेलगु में ‘अमलाकामू, गुरुमुखी में, ‘अमोलफल’, तथा अंग्रेजी में ‘ऐम्बलिक’, ‘माइरोबालान’ या इंडियन गूजबेरी के नाम से जाना जाता है। अपने अद्वितीय औषधीय एवं पोषक गुणों के कारण, भारतीय पौराणिक साहित्य जैसे वेद, स्कन्दपुराण, शिवपुराण, पदमपुराण, रामायण, कादम्बरी, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में इसका वर्णन मिलता है। महर्षि चरक ने इस फल को जीवन दात्री अथवा अमृतफल के समान लाभकारी माना है। अतः इसे अमृत फल तथा कल्प वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। आँवले की विशेषतायें हैं, प्रति इकाई उच्च उत्पादकता (15-20 टन/हेक्टेयर), विभिन्न प्रकार की भूमि (ऊसर, बीहड़, खादर, शुष्क, अर्धशुष्क, कांडी, घाड़) हेतु उपयुक्तता, पोषण एवं औषधीय (विटामिन सी, खनिज, फिनॉल, टैनिन) गुणों से भरपूर तथा विभिन्न रूपों में (खाद्य, प्रसाधन, आयुर्वेदिक) उपयोग के कारण आँवला 21वी सदी का प्रमुख फल हो सकता है। धर्म परायण हिन्दू इसके फलों एवं वृक्ष को अत्यंत पवित्र मानते हैं तथा इसका पौराणिक महत्व भी है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कार्तिक मास में इसके वृक्ष के नीचे बैठ कर विष्णु की पूजा की जाये तो स्वर्ग की प्राप्ति होती है। यदि तुलसी का पौधा नहीं मिले तो भगवान विष्णु की पूजा आँवले के वृक्ष के नीचे बैठ कर की जा सकती है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि आँवले के वृक्ष के नीचे पिण्ड दान करने से पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार कार्तिक मास में कम से कम एक दिन आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जब इसके फल परिपक्व होते है। हिन्दू धर्म के अनुसार आँवले के फल का लगातार 40 दिनों तक सेवन करते रहने वाले व्यक्ति में नई शारीरिक स्फूर्ति आती है तथा कायाकल्प हो जाता है।



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