राजस्थान सामान्य ज्ञान-राजस्थान की नदियां

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राजस्थान की नदियां
मानव सभ्यताओं के विकास में प्रचीन समय से ही नदियों का विशेष महत्व रहा है। क्योंकि मानव जीव जगत के लिए जल भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जितना भोजन एवं वायु विश्व की अधिकांश मानव सभ्यताएं नदियों के किनारे ही पनपी है।, जिसका मुख्य कारण वहां नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से भूमि का अधिक उपजाऊ होना था इसके अतिरिक्त नदियां परिवहन के साधन के रूप में भी प्रयुक्त होती थी, जिससे विभिन्न संस्कृति का आदान प्रदान संभव हुआ इसके अतिरिक्त नदियां आर्थिक विकास, धार्मिक स्वरूप, भावनात्मक एकता आदि के उन्नयन व विकास में भी नदियों ने, विशेषकर अरावली के पूर्वी क्षेत्र में, विशेष भूमिका निभाई है। और इस क्षेत्र को समृद्ध किया है। प्रदेश की विभिन्न नदी घाटियों में पुरापाषाण काल से लेकर ग्राम में समा गई महाजनपद काल में महत्वपूर्ण जनपद मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) यहीं स्थित है। प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी के किनारे सिन्धु सभ्यता पनपी जिसके अवशेष वर्तमान कालीबंगा (हनुमानगढ़) के उत्खनन में प्राप्त हुए है। बेड़च व बनास नदियों के किनारे आहड़ सभ्यता, कोठारी नदी, (भीलवाड़ा) के सहारे बागोर में मध्य पाषाण कालीन संस्कृति गणेश्वर (नीम का थाना) में काँतली नदी के किनारे ताम्रयुगीन सभ्यताओं का विकास हुआ इस प्रकार नदियां मानव सभ्यताओं का विकास हुआ है। इस प्रकार नदियां मानव सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। राजस्थान की अधिकांश नदियां बरसाती नदियां है। लूनी, बनास, चम्बल, माही, बाणगंगा, कोठारी, बेड़च आदि प्रदेश की मुख्य नदियां हैं राज्य के मध्यवर्ती भाग में अवस्थित अरावली पर्वत श्रंखला प्रदेश की अपवाह प्रणाली (नदियों) को निम्न दो भागों में विभाजित करती है:-
बंगाल की खाडी में जल ले जाने वाली नदियां
चम्बल, बनास, काली सिंध, पार्वती, बाणगंगा, खारी, बेडच गंभीर आदि नदियां अरावली के पूर्वी भाग में विद्यमान है। इनमें कुछ नदियों का उद्गम स्थल अरावली का पूर्वी ढाल तथा कुछ का मध्यप्रदेश का विंध्याचल पर्वत हैं। ये सभी नदियां अपना जल यमुना नदी के माध्यम से बंगाल की खाडी में ले जाती है।
अरब सागर में जल ले जाने वाली नदियां
माही, सोम, जाखम, साबरमती, पश्चिमी बनास, लूनी आदि पश्चिमी बनास व लूनी नदी गुजरात में कच्छ के रन में विलुप्त हो जाती है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त कुछ छोटी मोटी नदियां राज्य में अपने प्रवाह में ही विलुप्त हो जाती है। तथा जिनका जल समुद्र तक नहीं जा पाता है।, इन्हे आंतरिक जल प्रवाह की नदियां कहा जाता है। ये नदियां है। काकनी काँतली, साबी, घग्घर, मेन्था, बॉडी, रूपनगढ़ आदि राज्य में चुरू व बीकानेर ऐसे जिले हैं, जहां कोई नदी नहीं है। गंगानगर में यघपि पृथक से कोई नदी नहीं है। लेकिन वर्षा होने पर घग्घर की बाढ का पानी सूरतगढ व अनूपगढ़ तक तथा कभी कभी फोर्ट अब्बास तक चला जाता है। राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भू भाग पर आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली का विस्तार है।
राज्य में पूर्णत- बहने वाली सबसे लंबी नदी तथा सर्वाधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली नदी बनास है।
राज्य की सबसे लंबी नदी तथा सर्वाधिक सतही जल वाली नदी चंबल है। सर्वाधिक बांध चम्बल नदी पर बने हुए है।
राज्य में कोटा संभाग में सर्वाधिक नदियां है।
चम्बल नदी पर भैंसरोड़गढ़ (चितौड़गढ़) के निकट चूलिया प्रपात तथा मांगली नदी पर बूँँदी में प्रसिद्ध भीमलत प्रपात है।
सर्वाधिक जिलों में बहने वाली नदियां चम्बल, बनास लूनी प्रत्येक नदी 6 जिलों में बहती है।
अंतरराज्यीय सीमा राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा बनाने वाली राज्य की एकमात्र नदी चम्बल है।
माही, सोम और जाखम नदियों के संगम पर स्थित बेणेश्वर धाम वनवासियों (आदिवासियों) का महातीर्थ है।
सोम नदी के किनारे डूंगरपुर में देव सोमनाथ मंदिर स्थित है।


सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
लूनी नदी
राजस्थान की नदियां
राज्य की प्रमुख नदियाँ जिलेवार
राज्य की नदियों का क्षेत्रवार वर्गीकरण
घग्घर नदी
कांतली नदी शेखावाटी
काकनेय नदी
पश्चिमी बनास
साबरमती नदी
माही नदी
सोम नदी
जाखम
अनास नदी Anaas Nadi
मोरेन नदी
चम्बल नदी Chambal River
Kunu Kunor कुनु कुनोर नदी
पार्वती नदी
काली सिंध नदी
आहु नदी
परवन नदी
मेज नदी
आलनिया नदी
चाकण नदी
छोटी काली सिंध
बनास नदी
बेड़च नदी
कोठारी
गंभीरी नदी
खारी
मान्सी
माशी नदी
मोरेल नदी
कालीसिंध नदी
सोहादरा नदी
साबी
पूर्वी राजस्थान की नदियां

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