Bikaner Ka Rathore Vansh बीकानेर का राठौड़ वंश

बीकानेर का राठौड़ वंश



Pradeep Chawla on 12-05-2019

राठौडों के प्रभुत्व में आने से पूर्व बीकानेर का क्षेत्र जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाता था जो मारवड़ के उत्तर में स्थित है। महाभारत काल में यह प्रदेश कुरू प्रदेश के अन्तर्गत आता था। मारवाड़ के शासक राव जोधा के छः रानियां व 17 पुत्र थे। जिसमें दूसरे पुत्र बीका ने 1466 में जांगल प्रदेश में राठौड़ वंश की रियासत की स्थापना की तथा 1488 में बीकानेर नगर बसाया। अतः राव बीका को बीकानेर राज्य का संस्थापक माना जाता है। राव जोधा का सबसे बड़ा पुत्र राव नीबा, राव जोधा के शासन काल में ही स्वर्गवासी हो गया था। दूसरा पुत्र राव बीका ही मारवाड़ का उत्तराधिकारी था लेकिन राव जोधा ने अपनी प्रिय पत्नी/रानी जसमादे के प्रभाव में आकर दूसरे पुत्र राव सातल को जोधपुर का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। बीका नाराज हो गया। 1465-66 में करणी माता के आशीर्वाद से राव बीका ने जांगल प्रदेश पर अधिकार कर लिया। बीका के बढ़ते प्रभाव को देखकर राव जोधा घबरा गया व उसको डर था कि कही बीका जोधपुर पर आक्रमण न कर दे किन्तु बीका ने अपने पिता को वचन दिया कि मैं जोधपुर पर कभी आक्रमण नहीं करूगा व जोधपुर रियासत को अपना ज्येष्ठ मानुगा।



राव नरा (1504-1505) –



राव बीका के मृत्यु के बाद उसका पुत्र बीकानेर का शासक बना जिसकी कुछ महिनों बाद ही मृत्यु हो गई।



राव लुणकरण (1505-1526) –



राव नरा की मृत्यु के बाद लुणकरण बीकानेर का शासक बन गया जिसने डीडवाणा, सिघांणा व बांगड़ प्रदेश को अपने प्रदेश में मिला लिया। यह भी अपने पिता की तरह वीर और प्रजापालक था। वैसे बीकानेर के करण के नाम से भी जाना जाता है। बीठू सुजा में अपने ग्रन्थ राव जेतसी रो छन्द में लुणकरण की दानशीलता का उल्लेख किया है। लुणकरण की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव जैतसिह बीकानेर का शासक बना। जिसने गंगाणी के युद्ध में जोधपुर के शासक राव गागासिंह की मदद की। जोधपुर के शासक राव मालदेव ने 1541 में अपनी विस्तारवादी व महत्वकांक्षी नीति के तहत बीकानेर पर आक्रमण कर दिया राव जैतसी पाहिबा/सौहुए के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ व मालदेव ने यहाँ का प्रशासन सेनापति कूंपा को सौंप दिया। यह पहला अवसर था जब दोनों रियासतों के मध्य युद्ध हुआ। इससे पहले ये सामुहिक रूप से प्रतिकार करते थे।



राव कल्याण मल –



पाहिबा के युद्ध में जैतसी वीरगति को प्राप्त हुआ अतः उसका पुत्र कल्याणमल शेरशाह सूरी के पास चला गया। 1544 में शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया व गीर्री-सुमेल के मैदान में मालदेव पराजित हो गया। शेरशाह सूरी ने बीकानेर का राज्य राव कल्याण मल को सौप दिया।



1570 ई. में जब अकबर ने नागौर दरबार का आयोजन किया तो बीकानेर शासक राव कल्याणमल अपने पुत्र रायसिंह व पृथ्वीराज के साथ नागौर दरबार में उपस्थित हुआ तथा अकबर की अधिनता स्वीकार कर ली।



राव कल्याणमल बीकानेर का प्रथम शासक है जिसने मुगल अधिनता स्वीकार की। अकबर ने कल्याण सिंह के बडे पुत्र रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त कर दिया व छोटे पुत्र पृथ्वीराज को मुगल दरबार में ले गया।



महाराजा रायसिह (1574-1612) –



1574 में रायसिह बीकानेर का शासक बना। यह अकबर व जहांगीर का विश्वसनीय सेनानायक बना। रायसिंह ने महाराजा की उपाधि धारण कर अपने मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर दुर्ग का निर्माण करवाया तथा दुर्ग में एक प्रशस्ति लगाई। रायसिह विद्यानुरागी व धार्मिक प्रवृत्ति का था। जिसने राय सिंह महोत्सव व ज्योतिष रत्नमाला जैसे ग्रंथों की रचना की। कर्मचन्द वंशौत्कीर्तिम् काव्यम् में महाराजा रायसिंह को राजेन्द्र कहा गया है। इनकी दानशीलता के कारण मुंशीदेवी प्रसाद ने इन्हे राजपूतानें के करण की संज्ञा दी। 1612 में दक्षिण भारत के बुरहानपुर में इनकी मृत्यु हो गई।



दाव दलपत (1612-13)



महाराजा रायसिंह की मृत्यु के बाद दलपत सिह बीकानेर का शासक बना। राव दलपत का सम्राट जहांगीर से मनमुटाव हो गया। जहांगीर ने दलपत को गद्दी से हटाकर उसके भाई सूरसिह को शासक बना दिया।



करण सिंह (1631-1669)



सूर सिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र करणसिंह शासक बना। औरगजेब ने इसे जांगलधर बादशाह की उपाधि दी।



अनुपसिंह



1669 में अनुपसिंह बीकानेर का महाराजा बना। अनुपसिंह ने दक्षिण में मराठों का दमन किया जिससे प्रसन्न होकर औरगजेब ने इसे महाराजा व माहिवभरातीव की उपाधि प्रदान की।



स्वरूप सिंह



1690 में अनुपसिंह की मृत्यु के बाद उसका नाबालिग पुत्र स्वरूप सिंह बीकानेर का शासक बना उसकी 1702 में मृत्यु हो गई व उसके बाद सुजानसिंह शासक बना।



सूरतसिंह



बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने 1818 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सन्धि कर ली।



किशनगढ़ रियासत



इसकी स्थापना मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र किशन सिंह ने 1609 में की थी।

जहाँगीर ने यहाँ के शासक को महाराज का खिताब दिया।

यहाँ के राजा सावंतसिंह प्रसिद्ध राजा हुए, जो कृष्ण-भक्ति में राज-पाट छोड़कर वृन्दावन चले गये एवं नागरीदास के नाम से प्रसिद्ध हुए।




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