Go = जा() (Jaa)
जा रहा है । —जयं॰ प्र॰, पृ॰ 86 ।
2. आत्मचिंतन । आत्मा का ध्यान । जा ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग
1. माता । माँ ।
2. देवरानी । देवर की स्त्री । जा ^2 वि॰ स्त्रीलिंग [ सं॰ तुल॰ फा॰ (प्रत्य) जा (= उतपन्न करनेवाला)] उत्पन्न । संभूत । जैसे, गिरिजा जनकजा । जा ^3 पु † सर्व॰ [हिं॰ जो] जो । जिस । उ॰— (क) जाकर जापर स्तय सनेहू । सो तेहि मिलहि न कछु संबेहू । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) इक समान जब ह्वै रहत लाज काम ये दोइ । जा तिय के तन में तवहिं मध्या कहिए सोइ । —पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ 87 । (ग) मेरी भवबाधा हरौ राधा नागरि सोइ । जा तन की झाँइं परै स्यामु हरितदुति होइ । —बिहारी र॰, वो॰ 1 । जा ^4 वि॰ [फा॰] मुनासिब । उचित । वाजिब । जैसे,—आपकी बात बहुत जा है । यौ॰ —बेजा = नामुनासिब । जो ठीक न हो । जा ^5 संज्ञा पुं॰ स्थान । जगह । उ॰—कुछ देर रहा हक्का बक्का भौचक्का सा आ गया कहाँ । क्या करुँ यहाँ जाऊँ किस जा । मिलन॰, पृ॰ 190 ।
जा रहा है । —जयं॰ प्र॰, पृ॰ 86 ।
2. आत्मचिंतन । आत्मा का ध्यान । जा ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग
1. माता । माँ ।
2. देवरानी । देवर की स्त्री । जा ^2 वि॰ स्त्रीलिंग [ सं॰ तुल॰ फा॰ (प्रत्य) जा (= उतपन्न करनेवाला)] उत्पन्न । संभूत । जैसे, गिरिजा जनकजा । जा ^3 पु † सर्व॰ [हिं॰ जो] जो । जिस । उ॰— (क) जाकर जापर स्तय सनेहू । सो तेहि मिलहि न कछु संबेहू । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) इक समान जब ह्वै रहत लाज काम ये दोइ । जा तिय के तन में तवहिं मध्या कहिए सोइ । —पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ 87 । (ग) मेरी भवबाधा हरौ राधा नागरि सोइ । जा तन की झाँइं परै स्यामु हरितदुति होइ । —बिहारी र॰, वो॰ 1 । जा ^4 वि॰ [फा॰] मुनासिब । उचित । वाजिब । जैसे,—आपकी बात बहुत जा है । यौ॰ —बेजा = नामुनासिब । जो ठीक न हो ।
जा रहा है । —जयं॰ प्र॰, पृ॰ 86 ।
2. आत्मचिंतन । आत्मा का ध्यान । जा ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग
1. माता । माँ ।
2. देवरानी । देवर की स्त्री । जा ^2 वि॰ स्त्रीलिंग [ सं॰ तुल॰ फा॰ (प्रत्य) जा (= उतपन्न करनेवाला)] उत्पन्न । संभूत । जैसे, गिरिजा जनकजा । जा ^3 पु † सर्व॰ [हिं॰ जो] जो । जिस । उ॰— (क) जाकर जापर स्तय सनेहू । सो तेहि मिलहि न कछु संबेहू । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) इक समान जब ह्वै रहत लाज काम ये दोइ । जा तिय के तन में तवहिं मध्या कहिए सोइ । —प
जा meaning in english