ब्रह्माणी माताजी मंदिर फलौदी का इतिहास :
राजस्थान की भूमि प्रारम्भ से ही वीरों , संतों , ऋषियों एवं चमत्कारों की भूमि रही हैं । इसी संदर्भ में नागौर जिले का गाँव मेड़ता रोड ( फलौदी ) भी माँ ब्रह्माणी के प्राचीन मंदिर की वजह से अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं ।
राजा नाहड़ राव परिहार द्वारा जिस समय पुष्कर राज में ब्रह्मा मंदिर की स्थापना की उसी समय उन्होंने मारवाड़ में 900 तालाब , बेरा , बावड़ी तथा छोटे-छोटे बहुत सारे मंदिर बनवाए थे । उस समय फलौदी गाँव ( मेड़ता रोड ) में भी ब्रह्माणी माता का एक कच्चा थान ( मंदिर ) बना हुआ मौजूद था । राजा ने उस कच्चे थान को एक छोटा मंदिर का रूप दे दिया , जिसके पास ही एक तालाब व एक बावड़ी भी खुदवाई , जो आज भी मौजूद हैं ।
वि. सं. 1013 में मंदिर बनवाने के पश्चात् शीघ्र ही उस मंदिर में ब्रह्माणी माताजी की प्रतिष्ठा वि. सं. 1013 में कराई , उस वक्त प्रतिष्ठा के लिए रत्नावली ( रुण ) नगरी से भोजक केशवदास जी के पुत्र लंकेसर जी को लेकर यहां आये और मंदिर की प्रतिष्ठा कराई तथा बाल भोग के लिए उस वक्त राजा नाहड़ राव ने 52 हजार बीघा जमीन माताजी के नाम अर्पण की , जिसका संपूर्ण अधिकार लकेसर जी को सौपा ।
जिस वक्त राजा ने मंदिर की प्रतिष्ठा कराई , उसी दौरान एक तोरणद्वार यादगार के रूप में मंदिर के बहार बनवाया , जो कि प्राचीन संस्कृति एवं कलात्मकता का एक अद्भुत नमूना था जो 9 चरणों में बँटा हुआ एक विशाल स्तम्भ दिखाई देता था । जिसकी ऊंचाई उस वक्त 85 फुट थी , बादमे इस तोरणद्वार का उपयोग विशाल द्वीप स्तम्भ के रूप में किया जाने लगा । आस-पास के इलाके के राजा-महाराजा अपने किलों की ऊपर खड़े होकर विशाल दूरबीनों की सहायता से नवरात्रि पर्व के समय माताजी की ज्योति के दर्शन करते थे , जो इस तोरण द्वार के सबसे ऊपरी हिस्से पर दर्शनार्थ हेतुं रखी जाती थी ।
ननवरात्रि पर्व के समय राजा-महाराजाओं द्वारा स्वर्ण एवं रत्न-जड़ित पौशाकें माताजी के श्रृंगार हेतुं भेजी जाती थी , जिससे यहां अत्यधिक मात्रा में धन-संपदा एकत्रित हो चुकी थी । मंदिर की प्रतिष्ठा होने के एक वर्ष बाद वि. सं. 1014 को भोजक केशवदास जी , किरतोजी , बलदेव जी , सुमेरजी आदि ने मिलकर वैशाख सुदी तीज सोमवार को कुलदेवी फलदायनी के नाम से फलौदी नाम का गाँव बसाया जो आज मेड़ता रोड कहलाता हैं ।
वि. सं. 1121 में शुभकरण जी ओसवाल द्वारा माताजी की जमीन पर पाशर्वनाथ जी का मंदिर बनवाया गया , जमीन के लिए पाशर्वनाथ मंदिर की तरफ से माताजी के मंदिर को किराया-भाड़ा दिया जाता था , उस वक्त राजा जीवराज जी परिहार थे । वि. सं. 1200 में श्रीमती ढंढमोत तिलोरा इजाहण साहब का पोता विमलशाह ने ब्रह्माणी माताजी की जमीन पर शांतिनाथ जी का मंदिर बनवाया , जिसकी प्रतिष्ठा करवा कर सेवा के लिए ब्रह्माणी माताजी के ही पुजारियों को नियुक्त किया था ।
वि. सं. 1351 में मुगलकाल में यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध व् सुदृढ़ स्थिति में था । इसी वजह से मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी ने यहाँ आक्रमण करके बहुत लूटपाट की जिसमे वो बहुत सारी रत्न जड़ित माताजी की पौशाकें व् आभूषण ले जाने में सफल रहां , उस समय जैसलमेर की चढ़ाई पर जा रहा था इस आक्रमण के दौरान लूटपाट के विरोध में पुजारी श्री धनजी जाँगला के पुत्र बनराज जी , विष्णु जी तथा दोपा जी लड़ते हुए शहीद हुए ।
वि. सं. 1633 में दिल्ली के बादशाह अकबर की फौज गुजरात पर चढ़ाई करने जा रही थी तो फलौदी ( मेड़ता रोड ) होकर गुजरी । इस फ़ौज का सूबेदार कालेखाँ था , जिसकी नजर दूर से ही मंदिर के पास बने कलात्मक व् ऊँचे भव्य तोरण पर पड़ी जो 85 फुट ऊंचा सीना ताने खड़ा था । कालेखाँ ने सबसे पहले इसे ही नष्ट करना शुरू करवाया । मुगल फ़ौज इसे बड़ी क्रूरता से तोड़ रही थी , इसी दौरान कालेखाँ स्वयं मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया तथा मंदिर जिन प्रमुख चार कलात्मक खंभो पर खड़ा था उनको तुड़वाना शुरू किया तीनो खंभे तोड़े जा चुके थे , तब कालेखाँ ने ब्रह्माणी माताजी की मूर्ती तोड़ने की नीयत से गृभगृह में प्रवेश करना चाहा तो उसी दौरान एक बहुत बड़ा चमत्कार हुआ ।
माँ भगवती जगत जननी स्वयं प्रकट होकर क्रोध से दहाड़ उठी और उनहोनर कालेखाँ को जहाँ खड़ा था वही उसके पाँवो को जमीन से चिपका दिया । काले खाँ अपनी पूरी ताकत लगाकर हार गया लेकिन अपने पाँवों को जमीन से नही छुड़ा पाया , तब उसने हारकर माँ ब्रह्माणी के चरणों में अपना शीश झुकाकर क्षमा मांगी और अपने पैर जमीन से छुड़ाने की प्रार्थना की । जगत जननी मैया बड़ी दयावान हैं और ब्रह्माणी माता ने उसे क्षमा कर दिया और कहाँ " अपने मुगल सैनिकों को मार-काट और लूटपाट करने से तुरंत रोक दे । " तब काले खाँ के आदेश से लूटपाट बन्द हुयी तब तक तोरण द्वार का मात्र एक हिस्सा ही बचा रह गया जो आज भी अपनी जगह विद्यमान हैं और इसी तरह मंदिर के अंदर भी एक स्तम्भ ही सुरक्षित रहा , जो आज भी स्थित हैं । इस तरह काले खाँ माँ ब्रह्माणी के क्रोध से मुक्त हुआ और उसने वचन दिया कि आज के बाद किसी भी मुगल शासक को यहां लूटपाट नही करने देगा , इस आक्रमण में 80 आदमी मारे गए थे ।
वि. सं. 2004 ( ई. सन 1947 ) में जब मेड़ता रोड़ से होकर रेल लाइन निकाली गई तो उस जमीन के एवज गे रेलवे द्वारा लाखों रुपये का मुआवजा मंदिर के नाम पास किया , क्योंकि जमीन 52 हजार बीघा थी । जिसमें न केवल रेलवे बल्कि आस-पास के छोटे-मोटे गाँव भी माताजी मंदिर के अधिकार क्षेत्र में आते थे , जिसका मुआवजा आज दिन तक का सरकार में जमा हैं ।
Brahmani mata ka vahan konsa hee
पाराशर गोत्र वालों की कुलदेवी मंदिर कहां पर स्थित है हम गुजरात वाव थराद तरफ से दादा परदादा आए हुए थे
रामेशवर जाट पोटलिया गांव मुनदङ
Brahmani Maya Kay dine Kane hora hai
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Rajasthan ka he
hamari keldevi he mata ji ke charno me naman he
Barhmani Devi ketane roop me parkat hue or kab or kaha hue ji
Me janana chahata ji
Brahmni ma ka janma kha hua tha
Bamanimztnijantiti
चित्तौड़गढ़ बाण माता का दिन कोनसा है जो हफ्ते में एक दिन होता है
brahamani ma ka janam kab huva tha?
Bhramani mataji ki ham seva karte he mataji ke kapdo ka rang aur gale me safed moti ki mala pahnai ja Sakti he bas ye janna tha...plz help kare
MAA BHARMANI KI UTPATTI KAHAA HUI.MEIN STHAN KON SA HEY.
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