मानव का विकास (Human evolution) दोनों ही समानान्तर है। मानव की गिनती सबसे समझदार जीव के रूप में होती है। धरती पर उपलब्ध दूसरे जानवरों के उलट मानव अनेक तरह की गतिविधियों में सम्मिलित होता है जो उसे मानसिक रूप से विकसित होने में सहायता करती है और उसके दैहिक कल्याण को भी प्रभावित करती है। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है और उससे अपनी जिंदगी को सहज बनाने के लिए इसका पूरा इस्तेमाल किया है। मानव को जैसा आजम देखते हैं ये विकास के लाखों सालों का नतीजा है। हम और कोई नहीं बल्कि इस विशाल ब्रह्मांड का एक छोटा सा भाग है जिसके चीजों को एक साथ रखने और समय-समय पर परिवर्तन लाने के अपने रहस्य में प्रकार हैं।
प्राचीन काल का मानव ज्यादातर आहार की खोज में एक जगह से दूसरे जगह भटकता रहता था और उन जगहों पर बस जाता था जिस जगह पास में नदिया जल हो। वह एक जगह से दूसरी जगह तभी जाता था जिस वक्त उसकी जगह पर समस्त भोजन के स्रोत समाप्त हो जाते थे। जानवर और पंछी भी आमतौर पर एक जगह से दूसरी जगह पर जाते थे। चुकीं प्राचीन काल के मानव के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत पशु थे इसलिए वह भी उनके साथ चला जाता था। इसके अतिरिक्त अलग-अलग वृक्ष और पौधे भी विभिन्न मौसमों में फलों और सब्जियों को पैदा करते थे। इस तरह प्राचीन काल का मानव में मौसम के हिसाब से चलता था। वह समूहों में इसलिए चलता था क्योंकि इससे उसे रक्षा की भावना मिलती थी।
वर्तमान समय की जिंदगी हम जिस तरह से जीते हैं वह जिंदगी से पूर्ण तरह से अलग है। जो मानव हजारों साल पहले जीता था। पुराने समय या पाषाण युग तकरीबन 20 लाख साल पहले के वक्त में मानव जंगली पशुओं के मध्य जंगलों मे रहता था। भोजन खोजने के लिए संघर्ष करते हुए उसने जंगली पशुओं का शिकार किया,मछलियों और पक्षियों को पकड़ा हुआ और अपने भूख को बुझाने के लिए उनको खाया। वह फल सब्जियों और पत्तियों के लिए पेड़ों पर चढ़ा। इस तरह प्राचीन काल के मानव को शिकारी – संग्रह करनेवाला के रूप में भी जाना जाता है वह गुफाओं में रहता था। आधुनिक वक्त के व्यक्ति की तरह उस जमाने का व्यक्ति भी अपने परिजनों के साथ रहना पसंद करता था।
शुरुआती वक्त में पैदल फिरने वाले मनुष्य ने शीघ्रता ही पहिए का आविष्कार किया और लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए बैलगाड़ी का निर्माण किया। उसने पत्थर और लकड़ी की सहायता से अनेक उपकरण भी तैयार किए।
जीवन शैली संस्कृति और दूसरे पहलुओं का विकास हुआ और उसके बाद के मानव को आधुनिक समय के मानव के रूप में जाना जाने लगा। मानव के विकास ने उसे आधुनिक मनुष्य का नाम दिया। आधुनिक समय का मानव दिखने,आचरण और मनौवैज्ञानिक क्षमता के मामले में प्राचीन काल के मानव से काफी अलग है। कुछ मानवीय दखल और अनेक प्राकृतिक कारकों के कारण से इतने सारे परिवर्तन मानव के जीवन में आए।
मनुष्य जाति के विकास के रूप में मानव ने गुफाओं से निकलकर अपने लिए घरों का निर्माण किया। जल्दी ही विभिन्न मनुष्य सभ्यताओं का गठन हुआ। जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए नई वस्तुओं का निर्माण करने के लिये मानव का ध्यान भोजन के लिए शिकार से दूसरी वस्तुओं की ओर स्थानांतरण हो गया। ये एक नए समय का प्रारंभ था और इस समय में रहने वाले पुरुषों को मध्यकाल का मानव कहा जाता है। इसी वक्त शारीरिक गुणों और साथ ही मानव की सोच के स्तर में पाषाण समय के मानव के मुक़ाबले में बहुत ज्यादा विकास हुआ।
वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का दावा है कि मानव का विकास इस समय भी हो रहा है 2050 तक एक नई तरह की मनुष्य प्रजातियां अस्तित्व में आ जाएंगी। मानव की औसत आयु 100 से 120 साल तक बढ़ने की संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि मनुष्य प्रगति बुढ़ापे में भी बालकों को जन्म देने में सक्षम हो जाएगी।
जीवन शैली संस्कृति और दूसरे पहलुओं का विकास हुआ और उसके बाद के मानव को आधुनिक समय के मानव के रूप में जाना जाने लगा। मानव के विकास ने उसे आधुनिक मनुष्य का नाम दिया। आधुनिक समय का मानव दिखने,आचरण और मनौवैज्ञानिक क्षमता के मामले में प्राचीन काल के मानव से काफी अलग है। कई मानवीय दखल और कई प्राकृतिक मामलो के कारण से इतने सारे परिवर्तन मानव के जीवन में आए।
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के कारण से अधिकतर लोग दिन में अधिकांश वक्त अपने मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं। अपने पास में बैठे लोगों को नजर अंदाज करते हुए लोग ज्यादातर चैटिंग करना या वीडियो देखना पसंद करते हैं। ये भी विकास का ही एक भाग है। जिस तरह में ये विकसित हो रहा है उसका लोगों के मनौवैज्ञानिक और दैहिक सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
यदि हम स्वयं को देखें तब मालूम चलेगा कि हम बहुत बदल चुके हैं,विकसित हुए हैं और पिछली सदी में रहने वाले लोगों से काफी अलग भी हैं। इस वक्त के लोग खेती गतिविधियां करते हुए विकसित हुए थे जिसमें शारीरिक श्रम सम्मिलित था। इन गतिविधियों में नित्य व्यायाम होने की वजह से उनकी अच्छी कद काठी हुआ करती थी। वो घी,तेल और चीनी से लिप्त अच्छा आहार खाते थे और कष्टदायक कार्यों में सम्मिलित होते थे। यहां तक कि उन्होंने सारी उम्र बड़े परिमाण में घी और चीनी खाई तब भी उनको दिल की समस्या,मधुमेह,उच्च रक्तचाप वगैरह जैसी बीमारियां नहीं छू पाई क्योंकि वो मेहनत करने में पसीना बहाते थे। उद्योग में विकास से इनमें नौकरी कर रहे लोगों की प्रकृति में बड़ा बदलाव आ गया है। आजकल के युवा शारीरिक रूप से दुर्बल हो गए हैं क्योंकि वह मेज कुर्सी पर बैठकर नौकरी करना ज्यादा पसंद करते हैं। शारीरिक गतिविधियां ना के समान है इस प्रकार की अनेक बीमारियां देखने को मिली है जिनके पिछली सदी में कोई नामोनिशान तक नहीं थे और उनके बारे में सुना तक नहीं गया था।
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नति की वजह से ये सब अहम परिवर्तन होंगे। मानव के जीवन का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।
जैसे लोग इन दिनों मोबाइल मोबाइल फोन और टैब पर खुद का अधिकांश वक्त बिताते हैं वैसे ही 2050 तक लोग बनावटी वास्तविकता में खुद का सबसे ज्यादा वक्त खर्च करेंगे। ऐसा कहा जा रहा है कि मानव पास भविष्य में कृत्रिम विकास पर भरोसा करेगा और रोबोट द्वारा उसके दिवस प्रतिदिन के अधिकांश काम पूरे होंगे।
मानव का विकास (Human evolution) वास्तव में एक अलौकिक कर्म है। शुरू में प्रकृति ने मानव के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। आने वाले सालों में ऐसा लगता है कि मानव स्वयं अपने इंटेलिजेंस के माध्यम से आगे के विकास के लिए जवाबदेह होगा। वक्त के परिवर्तित होने की संभावना है और हम आशा करते हैं कि जो भी बदलाव हो वह अच्छे के लिए हो।
मानव का विकास (Human evolution) हुआ जिस तरह शुरुआती वक्त में रहता था अब वह उससे बिल्कुल अलग है। शुरुआती वक्त का मनुष्य निश्चित रूप से शारीरिक रूप से मजबूत था और आधुनिक वक्त के मनुष्य के मुक़ाबले में ज्यादा स्पष्ट था। यद्यपि यदि मनौवैज्ञानिक पहलू की बात करें तब ये वक्त के साथ अनेक गुना बढ़ गया है। मनुष्य मस्तिष्क ताक़त बढ़ी है और निरंतर इस समय भी बढ़ रही है। जो आविष्कार हमने किए हैं उनके द्वारा ये स्पष्ट हो जाता है। जिस तरह से पाषाण समय में मानव रहता था उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
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