दो नदियों के अपवाह को परस्पर अलग करने की प्रक्रिया को जल विभाजक कहते है |.
जल विभाजक रेखाओं द्वारा जल प्रवाह की निर्धारित दिशा के अंतर्गत आने वाले भौगोलिक प्रदेश के प्रबंधन को जल-विभाजक प्रबंधन कहा गया है ।FAO के अनुसार जल विभाजक वह भौगोलिक इकाई है जो समान विन्दु की तरफ जल प्रवाह को निर्धारित करता है । वस्तुतः नदी बेसिन अथवा अपवाह प्रदेश अनेक जल विभाजक प्रदेश का मिश्रित भौगोलिक स्वरूप है । प्राचीन काल से भी मानसूनी और भूमध्य सागरीय प्रदेश के कृषक जल विभाजक प्रदेश की अपवाह प्रवृति के आधार पर फसलों का चयन करते रहे हैं।
लेकिन प्रादेशिक नियोजन के अंतर्गत जल-विभाजक प्रबंध की प्रक्रिया की शुरूआत विश्व भर में 1942 के रियो-डि-जेनेरियो सम्मेलन से होती है, जल शाश्वत विकास का या टिकाऊ विकास की नीति को पारिस्थतिकी के अनुरूप विकास की नीति मानी गयी । जल विभाजक प्रबंध जल और भूमि संसाधनों के पारिस्थितिकी के अनुरूप नियोजन की नीति है । इस नीति के अंतर्गत जल-विभाजक प्रदेश का निधा्ररण कई स्तरों पर किया जा सकता है । भारत सरकार के पर्यावरण और कृषि मंत्रालय ने भारत को प्रथमतः 12 वृहद् जल क्षेत्र प्रदेश(Watershed region) में विभाजित किया है । ये मूलतः वृहद नदी बेसिन प्रदेश हैं । इसके बाद इन्हें लघुस्तरीय जल विभाजक प्रदेश में विभाजित किया है ।
इसके लिए सांकेतिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है । कृत्रिम उपग्रह से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर भारत में तीन स्तरीय जल-विभाजक प्रदेश निर्धारित किये जा रहे हैं । जिसके लिए क्रमशः I/A/a जैसे सांकेतिक शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है ।
मुख्य लघुस्तरीय विकास हेतु ग्रामीण स्तर पर 50 हेक्टेयर तक के वृहद जल क्षेत्र(Water Shed)प्रदेश का निर्धारण किये जाने का प्रावधान है । जल-विभाजक प्रबंध के अंतर्गत दो महत्वपूर्ण कार्य आवश्यक हैं -
(1) प्रथमतः प्रदेश का सीमांकन - यह अत्यंत ही जटिल कार्य है, उसमें लघुस्तरीय सीमांकन और भी जटिल कार्य है । इसके लिए सैटेलाइट सूचनाएँ सर्वाधिक अनुकूल हैं । 20 से 22 मीटर Resolution की सूचनाएँ इस कार्य में अधिक सहायक है । लेकिन उपग्रह (Sattelite) से प्राप्त सूचना के आधार पर यह अति खर्चीला कार्य भी है । भारत को इस प्रकार की सीमांकन कार्य हेतु ID। तथा विश्व बैंक से आर्थिक सहयोग भी प्राप्त है । सभी राज्यों में यह प्रक्रिया प्रारंभ की गयी है ।
(2) दूसरा प्रमुख कार्य है उसके संसाधनों का सर्वेक्षण औरThematic मानचित्र तैयार करना । इसके अंतर्गत जल विभाजकों के मानचित्र के निर्माण कार्य जैसी ही जल विभाजक संसधान मानचित्र की जरूरत है । इस प्रकार के मानचित्र बनाने के बाद वैसी आर्थिक क्रियाओं का निर्धारण किया जा सकता है जिसके लिए बाहरी क्षेत्र में जल की आवश्यकता नहीं हो । अतः सही अर्थां में यह लघुस्तरीय जल प्रबंध नियोजन है ।
Jal vibhajak prabandh ke pramukh uddeshy bataen