Ram Bhakti Kavya Ki Visheshta राम भक्ति काव्य की विशेषता

राम भक्ति काव्य की विशेषता



Pradeep Chawla on 12-05-2019

रामकाव्य धारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जा सकता है । यद्यपि रामकाव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहें हैं । इस काव्य धारा के अवलोकन से इसकी निम्न विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं :-



राम का स्वरूप : रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में श्री रामानंद के अनुयायी सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ-पुत्र राम के उपासक हैं । अवतारवाद में विश्वास है । उनके राम परब्रह्म स्वरूप हैं । उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है । सौंदर्य में वे त्रिभुवन को लजावन हारे हैं । शक्ति से वे दुष्टों का दमन और भक्तों की रक्षा करते हैं तथा गुणों से संसार को आचार की शिक्षा देते हैं । वे मर्यादापुरुषोत्तम और लोकरक्षक हैं ।

भक्ति का स्वरूप : इनकी भक्ति में सेवक-सेव्य भाव है । वे दास्य भाव से राम की आराधना करते हैं । वे स्वयं को क्षुद्रातिक्षुद्र तथा भगवान को महान बतलाते हैं । तुलसीदास ने लिखा है : सेवक-सेव्य भाव बिन भव न तरिय उरगारि । राम-काव्य में ज्ञान, कर्म और भक्ति की पृथक-पृथक महत्ता स्पष्ट करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है । तुलसी दास ने भक्ति और ज्ञान में अभेद माना है : भगतहिं ज्ञानहिं नहिं कुछ भेदा । यद्यपि वे ज्ञान को कठिन मार्ग तथा भक्ति को सरल और सहज मार्ग स्वीकार करते हैं । इसके अतिरिक्त तुलसी की भक्ति का रूप वैधी रहा है ,वह वेदशास्त्र की मर्यादा के अनुकूल है ।

लोक-मंगल की भावना : रामभक्ति साहित्य में राम के लोक-रक्षक रूप की स्थापना हुई है । तुलसी के राम मर्यादापुरुषोत्तम तथा आदर्शों के संस्थापक हैं । इस काव्य धारा में आदर्श पात्रों की सर्जना हुई है । राम आदर्श पुत्र और आदर्श राजा हैं, सीता आदर्श पत्नी हैं तो भरत और लक्ष्मण आदर्श भाई हैं । कौशल्या आदर्श माता है, हनुमान आदर्श सेवक हैं । इस प्रकार रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है । आदर्श की प्रतिष्ठा से ही तुलसी लोकनायक कवि बन गए हैं और उनका काव्य लोकमंगल की भावना से ओतप्रोत है ।

समन्वय भावना : तुलसी का मानस समन्वय की विराट चेष्टा है । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में - उनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है । लोक और शास्त्र का समन्वय, गार्हस्थ्य और वैराग्य का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृत का समन्वय, निर्गुण और सगुण का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय रामचरितमानस में शुरु से आखिर तक समन्वय का काव्य है । हम कह सकते हैं कि तुलसी आदि रामभक्त कवियों ने समाज, भक्ति और साहित्य सभी क्षेत्रों में समन्वयवाद का प्रचार किया है ।

राम भक्त कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही । पौराणिकता इनका आधार है और वर्णाश्रम व्यवस्था के पोषक हैं ।

लोकहित के साथ-साथ इनकी भक्ति स्वांत: सुखाय थी ।

सामाजिक तत्व की प्रधानता रही ।

काव्य शैलियाँ : रामकाव्य में काव्य की प्राय: सभी शैलियाँ दृष्टिगोचर होती हैं । तुलसीदास ने अपने युग की प्राय: सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है । वीरगाथाकाल की छप्पय पद्धति, विद्यापति और सूर की गीतिपद्धति, गंग आदि भाट कवियों की कवित्त-सवैया पद्धति, जायसी की दोहा पद्धति, सभी का सफलतापूर्वक प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है । रामायण महानाटक ( प्राणचंद चौहान) और हनुमननाटक (ह्दयराम) में संवाद पद्धति और केशव की रामचंद्रिका में रीति-पद्धति का अनुसरण है ।

रस : रामकाव्य में नव रसों का प्रयोग है । राम का जीवन इतना विस्तृत व विविध है कि उसमें प्राय: सभी रसों की अभिव्यक्ति सहज ही हो जाती है । तुलसी के मानस एवं केशव की रामचंद्रिका में सभी रस देखे जा सकते हैं । रामभक्ति के रसिक संप्रदाय के काव्य में श्रृंगार रस को प्रमुखता मिली है । मुख्य रस यद्यपि शांत रस ही रहा ।

भाषा : रामकाव्य में मुख्यत: अवधी भाषा प्रयुक्त हुई है । किंतु ब्रजभाषा भी इस काव्य का श्रृंगार बनी है । इन दोनों भाषाओं के प्रवाह में अन्य भाषाओं के भी शब्द आ गए हैं । बुंदेली, भोजपुरी, फारसी तथा अरबी शब्दों के प्रयोग यत्र-तत्र मिलते हैं । रामचरितमानस की अवधी प्रेमकाव्य की अवधी भाषा की अपेक्षा अधिक साहित्यिक है ।

छंद : रामकाव्य की रचना अधिकतर दोहा-चौपाई में हुई है । दोहा चौपाई प्रबंधात्मक काव्यों के लिए उत्कृष्ट छंद हैं । इसके अतिरिक्त कुण्डलिया, छप्पय, कवित्त , सोरठा , तोमर ,त्रिभंगी आदि छंदों का प्रयोग हुआ है ।

अलंकार : रामभक्त कवि विद्वान पंडित हैं । इन्होंने अलंकारों की उपेक्षा नहीं की । तुलसी के काव्य में अलंकारों का सहज और स्वाभाविक प्रयोग मिलता है । उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा का प्रयोग मानस में अधिक है ।




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Comments Harsh on 04-09-2023

Ram kavya ki visestaye

Anushkakumari on 28-05-2022

Krishna bhaktitshakha mai surdas ka sthan nirupit kare

❤️❤️❤️❤️ on 08-01-2022

Ram kavya ka bakti savrop


Simran kaur Simran kaur on 30-04-2021

Rambhakti aur krishanbhakti Ki do vishestaye btaiye

Aryan on 29-04-2021

Ram bhakti ki visasta





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