Mahanagron Me Aawas Ki Samasya महानगरों में आवास की समस्या

महानगरों में आवास की समस्या



Pradeep Chawla on 12-05-2019

गांव की मेहनतकश जिंदगी से युवा भागकर शहर पहुंचते हैं। लेकिन महानगरों में पहुंचने पर उन्हें बेरोजगारी और आवास की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। शहरों में वे आवास के लिए महंगा किराया दे नहीं सकते। अत: वे महानगरों की स्लम बस्तियों के ठेकेदारों के कुचक्र में फंस जाते हैं और बहुत जल्दी समझ लेते हैं कि कानून के दायरे में रहकर वे आजीवन अपने लिए घर नहीं बना सकते, परंतु यदि गैर-कानूनी ढंग से किसी सरकारी जगह पर झुग्गी डाल लें, तो आने वाले चुनाव में झुग्गी के बदले पक्का मकान मिल जाएगा, जिसकी कीमत लाखों में होगी। फिर वे सरकारी जमीन पर कई झुग्गियों का निर्माण करते हैं और आवास के गोरखधंधे में शामिल हो जाते हैं। यही कारण है कि महानगरों में झुग्गियां बढ़ती ही जाती हैं और महानगरों में स्लम का दायरा बढ़ता जा रहा है। भारत के अलग-अलग राज्यों पर यदि नगरीकरण के क्षेत्र में विकास की दृष्टि से विश्लेषण किया जाय तो यह स्पष्ट है कि विभिन्न राज्यों में नगरीकरण की मात्रा और गति एक जैसी नहीं थी। 1981 और 1991 के बीच जहां उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े राज्यों नगर नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर थीं, वहीं पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से नीची रही। प्रति व्यक्ति अधिक आय वाले राज्यों में महाराष्ट्र और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जिनमें नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। 1951 से 1991 की अवधि में बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि दर प्रायः अधिक रही है, परंतु उड़ीसा और बिहार में 1981 से 1991 के बीच नगरीकरण की गति कुछ धीमी पड़ गई थी। उत्तर प्रदेश, आन्ध प्रदेश, राजस्थान में 1951-61 के दशक में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से नीचे थी, लेकिन बाद में इन राज्यों में नगरीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। पुराने औद्योगिक दृष्टि से विकसित राज्यों में 1951-61 के दशक में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर ऊंची थी, लेकिन इसके बाद महाराष्ट्र को छोड़कर अन्य राज्यों में नगरीकरण की प्रक्रिया धीमी रही। भारत औद्योगिक दृष्टि से विकसित राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में नगरीय जनसंख्या 34 प्रतिशत से अधिक है। इन राज्यों में और अधिक औद्योगिकरण होने पर इनकी नगरीय जनसंख्या बढ़ती है लेकिन आधार बड़ा होने के कारण नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर प्रायः इतनी अधिक नहीं होती जितनी कि अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में देखने को मिलती है।



जनसंख्या का पांचवां भाग झुग्गी-झोपड़ी में



डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट, 26 अप्रैल 2014 शहरी विकास को सही रास्ते पर लाने के लिए अमीरों और गरीबों के बीच जो टकराव की स्थिति है, उसकी जगह सहयोग को प्रतिस्थापित करना होगा। संपन्न वर्ग अनेक स्थानों पर झुग्गी-झोपड़ियों और गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों के प्रति सहानुभूति और संवेदना से हीन हो जाते हैं। जबकि वस्तु स्थिति यह है कि नगरों का अधिकांश निर्माण कार्य इन्हीं वर्गों के परिश्रम एवं त्याग से हुआ है। निर्धन वर्ग के इस योगदान को संपन्न वर्ग के लोगों को स्वीकार करना चाहिए। उनके लिए भी कुछ नियोजित योजनाबद्ध कार्य होना चाहिए। अन्यथा यह विकास वीभत्स रूप ले लेगा.. ग्रामीण क्षेत्रों के बरक्स भारत में शहरी क्षेत्रों में आवास की समस्या चिंताजनक है। इसका एक बड़ा कारण अत्यधिक आर्थिक विषमता है। योजना आयोग के अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या का पांचवां भाग झुग्गी-झोपड़ी में रहता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार बंगलुरु में 10 प्रतिशत, कानपुर में 17 प्रतिशत, मुंबई में 38 प्रतिशत तथा कोलकाता में 42 प्रतिशत लोगों के सामने आवास की कठिन समस्या है। यहां विडंबना यह भी है कि एक तरफ तो आलीशान मकान हैं, जबकि दूसरी तरफ टूटा-फूटा मकान है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 75 प्रतिशत मकान ऐसे हैं, जिनमें खिड़कियां नहीं है और 80 प्रतिशत मकानों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। वैसे भी शहरी आबादी वाले देश में हर साल लगभग 27 लाख लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर रोजगार की तलाश में आते हैं। महानगरों की स्थिति तो और भी दयनीय होती जा रही है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में भारत में संक्रामक रोग पहले से कहीं ज्यादा तेजी से फैल रहे हैं और उनका इलाज करना ज्यादा मुश्किल हो गया है।



विश्व में भारत का चौथा स्थान



भारत मे आवास की समस्या अन्य समस्याओं से कम विकराल नहीं है। इसका कारण आर्थिक विषमता है, जिसके अंतर्गत हर साल काफ़ी लोग घर विहीन होते हैं। योजना आयोग के अनुमान के अनुसार - भारत की जनसंख्या का पांचवा भाग झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है। भारत में बंगलुरू में 10 प्रतिशत, कानपुर में 17 प्रतिशत, मुंबई में 38 प्रतिशत तथा कोलकाता में 42 प्रतिशत लोगों के सामने आवास की कठिन समस्या है। भारत में आवास के बारे में एक विडम्बना यह भी है कि यहां एक तरफ तो आलीशान मकान हैं जबकि दूसरी तरफ मूलभूत सुविधाओं के अभाव में टूटा-फूटा मकान है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 75 प्रतिशत मकान ऐसे हैं जिनमें खिड़कियाँ नहीं है और 80 प्रतिशत मकानों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। वैसे भी शहरी आबादी वाले देशों में सं.रा. अमेरिका, रूस तथा चीन के बाद विश्व में भारत का चैथा स्थान है। यहां हर साल लगभग 27 लाख लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर रोज़गार की तलाश में आते हैं। महानगरों की स्थिति तो और भी दयनीय होती जा रही है। आवास समस्या का आलम यह है कि कार्य करने की जगह और निवास स्थान की दूरी बढ़ती जा रही है। दिल्ली में औसतन 45 किमी की दूरी के लिए 50-60 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। इस प्रकार कुछ लोगों को 4-6 घंटे सफर में व्यतीत करने पड़ते है। अपना घर बनाने का सपना शहरवासियों के लिए पहुंच से बाहर होता जा रहा है। सरकारी तौर मान्य आंकड़ों के अनुसार - एक औसत आवास की कीमत मुंबई में एक व्यक्ति की 13 वर्ष की आय के बराबर है, दिल्ली में 12 वर्ष की आय के बराबर, बंगलौर में 11 वर्ष की आय के बराबर और चेन्नई में 7 वर्ष की आय के बराबर है। छोटे शहरों में भी लागत 3-4 वर्ष की आय के बराबर है। यदि किराये पर मकान लेना हो तो वह भी कोई कम आर्थिक बोझ नहीं डालता है। सबसे बड़े शहर में 30-35 प्रतिशत तक आय का हिस्सा इस पर खर्च हो रहा है तथा छोटे शहरों में 20-25 प्रतिशत तक होता है।







राज्य - राज्य की कुल जनसंख्या का नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत



आंध्र प्रदेश 27.05



अरुणाचल प्रदेश 20.41



असम 12.72



बिहार 10.47



छत्तीसगढ़ 20.07



गोवा 49.76



गुजरात 37.35



हरियाणा 29.00



हिमाचल प्रदेश 9.78



जम्मू कश्मीर 24.87



झारखण्ड 22.24



कर्नाटक 33.98



केरल 25.96



मध्य प्रदेश 26.66



महाराष्ट्र 42.39



मणिपुर 23.88



मेघालय 19.62



मिजोरम 49.49



नागालैंड 17.74



उड़ीसा 14.97



पंजाब 33.94



राजस्थान 23.38



सिक्किम 11.10



तमिलनाडु 43.85



त्रिपुरा 17.01



उत्तर प्रदेश 20.78



उत्तराखण्ड 25.59



पश्चिम बंगाल 28.03



भारत 27.80



इसके अलावा पीने के पानी की समस्या तथा गंदगी के निष्काषन की समस्या भी नगरीकरण के परिणामस्वरूप विकराल रूप ले चुकी है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन भी पैदा होने का ख़तरा बना हुआ है।



समस्याओं के समाधान हेतु पहल



यदि यह कहा जाये कि भारत दुनिया में पहला देश है, जो इस शताब्दी के अंत तक सबको आवास तथा 5 वर्ष के अन्दर सभी रिहायशी इलाकों में पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। यह बात दूसरी है कि जिस गति से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है यदि यह नहीं रुकी तो सन् 2000 तक इसके एक अरब हो जाने की संभावना है। ऐसी स्थिति में 20 लाख से अधिक लोग बेघर हो जायेंगें। इस दिशा में कई संस्थाओं ने सराहनीय काम किए हैं। इस संदर्भ में लारी ब्रकर के प्रयोग प्रशंसनीय है जिन्हें हुडकों ने 1987 में राष्ट्रीय आवास पुरस्कार से सम्मानित किया था। लारी बेकर गृह निर्माण के ऐसे विशेषज्ञ हैं जो कम लागत पर सुंदर मकान के निर्माण का कार्य करते हैं। इन्होने केरल में तिरुअनंतपुरम के आस-पास अपना कार्य क्षेत्र चुना है। आवास समस्या के समाधान में शहरी आवास विकास निगम अर्थात हुडको ने भी आशातीत सफलता प्राप्त की है। राष्ट्रीय भवन निर्माण संगठन ने भी आवास संगठन से निपटने के लिए मकानों की सस्ती तकनीकि विकसित की है। भारत में कमज़ोर वर्ग के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर सस्ती तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।







आठवीं योजना में आवास समस्या के समाधान हेतु मौलिक नीति का अनुसरण किया गया। इस योजना में शहरी आवास के लिए 3,581.87 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इस योजनावधि में 78 लाख नये घरों को बनाने की योजना थी।



नौंवी योजना में सभी वर्गों के लिए आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। इसके लिए गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग, मुक्त कराए गए बंधुओं मज़दूर, गंदी बस्तियों में रहने वाले लोग आदि पर विशेष ध्यान देना होगा।



गृह निर्माण में आने वाले आगतों को पर्याप्त और शीघ्र उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। नौवी योजना में 20 लाख शहरी आवास प्रतिवर्ष बनाने की योजना है। यह योजना सरकार की विशेष कार्य योजना के अंतर्गत है। आर्थिक रुप से कमज़ोर तथा निम्न आय वर्ग के लिए एक आवास निर्माण की कीमत क्रमशः 35,000 रुपये तथा 1 लाख रुपये के आधार पर नौंवी योजना 7 लाख अतिरिक्त आवासों के निर्माण पर 4,000 करोड़ रुपये की लागत आयेगी। इस कार्य के लिए वित्तीय संस्थाओं के द्वारा 2,800 करोड़ रुपये के वित्त की प्रत्याशा है, जो कि कुल वित्त का 70 प्रतिशत है। शेष 30 प्रतिशत सब्सिडी के रूप में वहन किया जायेगा। नौंवी योजना में आवास क्षेत्र में निवेश के लिए निजी क्षेत्र को भी कई तरह के प्रोत्साहन दिए जायेंगें।नौवीं योजना में शहरी जलापूर्ति तथा स्वच्छता के लिए 5,250 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस कार्य में राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों को भागेदारी बनाया जायेगा। तमिलनाडु की तर्ज पर भारत सरकार द्वारा कए विकास कोष की स्थापना की जायेगी जिसका उपयोग शहरी क्षेत्रों में आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने के लिए किया जायेगा। औद्योगिक इकाइयों से निकले हुए अवशिष्ट का पुनर्शोधन और विभिन्न प्रकार के अवशिष्टों का अलग-अलग संग्रहण करने की भी एक योजना है। ठोस अवशिष्टों के निपटान का निजीकरण कर दिया जायेगा।



इस प्रकार स्पष्ट है कि शहरीकरण विकास एक सूचक होते हुए भी कई तरह की समस्याओं का जन्मदाता है। शहरी विकास को सही रास्ते पर लाने के लिए अमीरों और गरीबों के बीच जो टकराव की स्थिति है, उसकी जगह सहयोग को प्रतिस्थापित करना होगा। संपन्न वर्ग अनेक स्थानों पर झुग्गी-झोंपड़ियों और गंदी बस्तियों में रहने वाल लोगों के प्रति सहानुभूति और संवेदना से हीन हो जाते हैं। किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि नगरों का अधिकांश निर्माण कार्य इन्हीं वर्गो के परिश्रम एवं त्याग से हुआ है। निर्धन वर्ग के इस आन्दोलन को संपन्न वर्ग के लोगों को स्वीकार करना चाहिए। परिणामतः परस्पर सहयोग की जो भावना उत्पन्न होगी, उससे नगरों का जो विकास होगा वह संतुलित तथा उचित होगा।







भारत के अलग-अलग राज्यों का यदि बढ़ते नगरीकरण की दृष्टि से विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न राज्यों में नगरीकरण का विस्तार और गति एक जैसी नहीं है। 1981 और 1991 के बीच जहां उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े राज्यों की नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर थी, वहीं पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से नीची रही। प्रति व्यक्ति अधिक आय वाले राज्यों में महाराष्ट्र और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जिनमें नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक थी।




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Comments Muskan Srivastav on 21-04-2022

Mahanagaron ke samasyaon ki Samadhan
Bataye

Aaisha negi on 01-04-2022

Feature lekhan on mahanagro mai awas ki samsya

Shivam on 24-03-2022

Love u


Sanjay Pandey on 23-02-2022

Mahanagaram ki 4 samasya

डा लोकेश शुक्ल on 29-11-2021

नागरिकता कानून पर बहस बेकार है । भारत देश मे रह रहे किसी नागरिक को बाहर निकालान असंभव है । जेल भेज सकते है । वह भी भारत की । किसी दूसरे देश मे भेजने के लिये दूसरे देश मे रखने की व्यवस्था करनी पड़ेगी वह दूसरा देश भारत के कहने पर क्यो करेगा ।
जो ईस देश मे पैदा हुये है वह यही दफन होंगे । भारत का निर्मित कफन मिलेगा ।
दूसरे देश मे भारत ने कोई आवासीय व्यवस्था नही बनायी है । भारत मे तो आवासीय व्यवस्था आम नागरिक को उपलब्ध नही है ।
बेकार की बक बक की पोस्ट /मैसज एक दूसरे के पास न भेजे ।
खाली समय मे निकट के अस्पताल मे जा कर मरीजों की सेवा करे ।
डा, लोकेश शुक्ल
लाजपत नगर, कानपुर ।


Question on 16-12-2020

Mahanagaro me aawas samsya pr nibandh point me ?

Nadia on 26-07-2020

Thanks for this nice essay.It helped me a lot.Thanks once yagain


Priya Batra on 19-07-2020

Good one



Nadia on 21-06-2020

Thanks for this nice essay.It helped me a lot.Thanks once again



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