अबली मीणी Ka Itihas अबली मीणी का इतिहास

अबली मीणी का इतिहास

GkExams on 13-05-2020



वो खूबसूरती की मिसाल थी, ऐसी सुंदरता महाराव मुकुंदसिंह ने पहले कभी नहीं देखी थी। साथ ही वीरांगना ऐसी कि जिसने भी वह दृश्य देखा तो आश्चर्य चकित रह गया। राजा मोहित हुआ उस सुंदर वीरांगना अबली पर और इतिहास ने उस प्रेम कथा को अपने में समेट लिया।

नेशनल हाईवे संख्या-12 पर कोटा-झालावाड़ के बीच दरा के सुरम्य जंगल में इस अमिट प्रेम कहानी का प्रतीक अबली मीणी का महल आज भी उन यादों को अपने में जीवित बनाए हुए है। दोनों के प्रेम के चर्चे हाड़ौती के गांवों की चौपालों पर यदाकदा सुनाई देते रहते हैं। इसका उल्लेख इतिहासकार जनरल सर कनिंघम ने भी अपनी किताब “रिपोर्ट ऑफ इंडियन आर्कियोलोजिकल सर्वे” में किया है। इस किताब के अनुसार कोटा के महाराव मुकुंदसिंह ने अपनी प्रेयसी अबली मीणी के लिए दरा के सुरम्य जंगल में इस महल का निर्माण करवाया था। मुकुंदसिंह कोटा के संस्थापक माधोसिंह के पुत्र थे।

इस तरह हुए थे महाराजा मोहित

उन्होंने सन् 1649 से 1657 तक शासन किया था। मुकुंदसिंह अक्सर दरा के जंगल में शिकार खेलने आया करते थे। एक बार जब वे यहां शिकार खेलने आए तो उन्होंने जंगल के बीच सुंदर महिला को देखा। जिसके सिर पर पानी से भरे दो घड़े रखे थे और वह लड़ते हुए दो सांडों के सिंग अपने हाथों से पकड़कर अलग कर रही थी। राजा मुकुंद न केवल इस दृश्य को देख कर चकित रह गए और उस सुंदर महिला पर मोहित हो गए। यह वीरांगना ही खैराबाद की अबली मीणा थी। अबली पर मोहित राव मुकुंद उसे हर कीमत पर पाना चाहते थे और उन्होंने अबली के समक्ष प्रेम का प्रस्ताव रखा। अबली ने भी मुकुंद के प्रेम को स्वीकार कर लिया। साथ ही अबली ने यह शर्त रखी कि उसके लिए उसी स्थान पर महल बनाया जाए, जहां वो पहली बार मिले थे। वहीं महल में रोज रात को एक दीपक ऐसे स्थान पर जलाया जाए, कि उस दीपक की रोशनी अबली के गांव खैराबाद तक दिखे। राव मुकुंद ने अबली की शर्त के अनुसार दरा के जंगल में ही इस महल का निर्माण करवाया। जिसे आज भी अबली के नाम पर अबली मीणी के महल के रूप में जाना जाता है।

यादगार इमारत....राहगीरों को आज भी आकर्षिक करता है महल

ऐसा है अबली मीणी का महल

इतिहासकार ललित शर्मा बताते हैं कि अबली मीणा का महल पहाड़ पर बना दो मंजिला महल है। जिसमें नीचे आमने-सामने दो चौबारे हैं। दोनों चौबारों के बीच में एक तिबारी है। महल में स्नान आदि के लिए एक चौकोर कुंड भी बनाया गया था। तथा शेष स्थान पर दास-दासियों के लिए मकान बनाए गए थे। महल की सुरक्षा के लिए ऊंची चारदीवारी बनाई गई थी। यह अबली मीणी का महल आज भी इधर से गुजरने वाले राहगीरों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कुछ समय पूर्व ही इस महल का जीर्णोद्धार कराया गया है।

खुद के नाम से बसाया मुकुंदरा गांव

मुकुंद ने स्वयं के नाम पर भी यहां मुकुंदरा नाम से गांव बसाया था, जिसे वर्तमान में हम दरा गांव के नाम से जानते हैं। राव मुकुंद की 1657 में उज्जैन के पास धर्मद स्थान पर युद्ध में मृत्यु हो गई। इसके बाद कोटा में अंतिम संस्कार किया गया। वहीं अबली भी अन्य रानियों व खवासिनों के साथ सती हो गई। आज राव मुकुंद व अबली दोनों नहीं हैं, लेकिन उनके प्रेम की दास्तान को यह महल आज भी बयां करता है। महल में वो स्थान अभी भी मौजूद है, जहां प्रतिदिन रात को दीपक जलाया जाता था। इस महल में दीपक जलाने की परंपरा अबली के निधन के बाद भी कई वर्षों तक अनवरत रूप से जारी रही थी।

शादीशुदा थी अबली, पति को मिली थी जागीर

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि अबली शादीशुदा थी। एक रात को अबली के पति ने राव मुकुंद पर छुर्रे से जानलेवा हमला कर दिया था। जिसे सुरक्षाकर्मियों ने नाकाम कर दिया। राव मुकुंद ने अबली के पति को खुश करने के लिए उसे दरा घाटी की जागीर दे दी। साथ ही यह हक भी दिया कि जो भी इस मार्ग से गुजरे, उससे अबली का पति शुल्क वसूल करे। उस समय हाडौती-मालवा को जोड़ने के लिए यही एक मात्र मार्ग था।

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Comments Mansingh meena on 18-04-2024

अम्लीय वनी वहां की जागीरदार की की पत्नी थी और साहसी और निडर थी यह मडगन्नत कहानी राजपूत द्वारा दूसरे समाजों को कहीं जगह पर बदनाम करने के लिए ऐसी ही कहानी फैलाई गई थी जो किसी भी प्रकार से मान्य नहीं होगी यहां की श्रद्धालुओं के महल है यहां के लोगों के यहां के जनता का महल है किसी राजा के द्वारा दिया गया उपहार नहीं है जो राजा मत्स्य प्रदेश को नष्ट कर दिया गया हो उसे मत्स्य प्रदेश के मीना के राज्य पर राज कर रहे हो वे लोग उनके आगे कोई झुकता ना हो ऐसे समाज को बदनाम करने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं है इसीलिए कई प्रकार के जयपुर रियासत ने भी कानून बनाए थे उन्हें अंग्रेजों का हाथ नहीं था बल्कि घटिया लोगों का ही हाथ था जो अपने आप को हिंदू कहते हैं जल्दी ही इस चीज पर जवाब दिया जाएगा

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Ravad mahal kah h on 08-12-2023

Ravad mahal kha h

अबली मीणी का इतिहास on 04-12-2023

अबली मीणी का इतिहास

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Lakhpati on 21-11-2023

वो भी क्या महिला थी जिसने अपने पति को छोड़ दिया और वो पति भी क्या मूर्ख था जिसने अपनी पत्नी को लेवल जागीर के लालच में आकर छोड़ दिया या तो इतिहास दारु पीकर लिखा गया था या संपूर्ण इतिहास किसी ने लिखा ही नहीं

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कास्ट परसाद on 03-03-2023

झलवार्ड

Shivraj meena on 28-11-2022

Crroect history abli mini.

Sevan bangls

jorawar singh on 10-06-2022

abli mini ka pura itihaas kiya hai

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Sawal pucha on 24-02-2022

Akikaran ke samaya matasya sangh ka uppradhanmantri kon tha

Deepak meena on 03-02-2022

abli mini ke magal ka vashtukar kon hai

Lalit on 07-12-2021

Abli mini itihas me kyon famous he

Manoj Kumar Meena on 22-10-2021

Able mini ka mhal kha h

dinesh kumar on 30-07-2021

abli meeni ke bare me vistar se kuch khavat v shadi konsi shrth par ki

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Kanhaiya Gurjar on 30-03-2021

मीना राजस्थान का सबसे प्राचीन आदिवासी समुदाय हैं जो नदियों के किनारे आदिवासी कंदरा में रहा करते थे और अपना जीवन यापन किया करते थे यह शिकार लूटपाट आदि क्या करते थे जो वर्तमान में अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के कारण आरक्षण प्राप्त होने के बाद अपना समुदाय को पढ़ाई में आगे बढ़ाया और खुद को काफी मजबूत बनाया और आज राजस्थान के प्रशासनिक सेवा में मीणा समुदाय के लोग काफी संख्या में पाए जाते हैं और आगे बढ़ रहे हैं मेहनत भी करते हैं

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गोलू on 15-03-2021

यह मीणा समाज को बदनाम करने की शाजिश हैं। प्राचीन राजस्थान पर मीणा राजाओं का शासन था यह बात राजपूतों से हजम नहीं हो रही हैं।
नकली कहानियां बनाते हैं साले राजपूत

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Nisha meena on 16-02-2021

Abli meenu ke mahal ko kis nam se jana jata h

Vishnu saini on 28-12-2020

Abli mini ke mother and father name kye he

Ravi on 14-10-2020

इन रांडपूतों ने ये लडते पशुओं हुए अलग करने वाली कहानी दूसरे समाजों को बदनाम करने के लिए बना रखी है ऐसी 10-12 कहानियां अलग-अलग स्थानों पर अलग समाजों के साथ जोड़कर यही लड़ते हुए पशुओं को अलग करने वाली कहानी गढ़ी गई ‌‌‌‌।
क्या ये दूसरे समुदायों को बदनाम करने वाली साजिश नहीं है?

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Lokesh on 06-10-2020

अबली मीणी का महल कहां है

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वि.के.मिना on 19-09-2020

प्राचीन ढूढाड प्रदेश के उपरमाल पठारी क्षेत्र की अरावली पर्वत श्रंखला की कंधराओ में मीणा आदिकाल से रहता आया है इस क्षेत्र पर उनका कबीलाई प्रभुत्व बना रहा है इस क्षेत्र से गुजरने वाले सेठ साहूकार,जागीरदार या फिर राजा हो से बोराई कर चुके बिना नहीं जाने दिया जाता था बोराई न देने पर लुट लिया जाता था इस क्षेत्र में पूर्व की तरफ भैसरोड़, पचिश्म की और बम्बावदा और मैनाल मीणा मेवासा विकसित हुए |
कर्नल जेम्स टाड के अनुसार किसी समय मैनाल (मीन नाल, मीणा बहुल क्षेत्र) क्षेत्र पर हनु नामक शिव भक्त राजा का शासन था उसने यहाँ विशाल मंदिर बनवाया | यह नाथ संप्रदाय का सिद्ध पीठ बन गया यह सर्व विदित है की प्राचीन मीणा राजाओं के कुल गुरु नाथ संप्रदाय के प्रमुख ही हुवा करते थे | इतिहास के अध्ययन के उपरांत हम निष्कर्ष रूप में कह सकते है की प्राचीन ढूढाड प्रदेश और वर्तमान राजस्थान का चौहान राजपूत राज्य आदिवासी मीना गणराज्यो के साथ धोखेबाजी छल कपट से तबाही, समझोते से उनकी समाधी पर खड़ा हुआ है | आमेर क्षेत्र में कछवाहा राजपूतो से 600 साल का लम्बा संघर्ष चला उससे भी लम्बा संघर्ष पाली, गोडवाड, मेरवाड़ा, उपरमाल और मेवाड़ में चौहान, गोहिल व राठोड़ो से चलता रहा है | पर मीना संघर्ष में न टुटा न झुका संघर्ष जारी रखा |
चौहानों से मीना मेर नाम से संबोधित आदिवासी भूपालों का सबर (सांभर), अज नगर (अजमेर), पाली, मंडौर, नाडोल, जालोर, ऊपर माल (बम्बवादा, मैनाल, भैसरोड़), टोडा, दूणी, बणहेटा, करवर ,नेनवा,हिन्ड़ोली में लम्बा संघर्ष चलता रहा | जिसका वकृत रूप यदा कदा नाम मात्र का उल्लेख मिलता है किन्तु हमारी लोक परम्परा काफी समृद्ध रही है गीतों, में बातों, ख्यातो,और दन्त कथाओ में इतिहास को दफ़न होने से बचाए रखा ये बुजर्गो की जुबां पर आज भी मौजूद है |
चौहानों ने सबर, अज नगर, नाडोल जितने और तुर्कों के निरंतर आक्रमण से नाडोल के नष्ट होने पर शेष बचे रेणसी चौहान ने कुछ दिन हाड़ेचा सांचोर में रह ऊपर माल के बकाला गोत्र में मीना मेवासा भैसरोड़ गढ़ (वर्तमान चितोड़ जिले की रावत भाटा तहसील का गाँव ) शरण ली और धोखे से राज्य हड़प लिया | रेन्सी के पोते राव बागा ने पुरे मैनाल पर अधिकार कर बम्बवादा को अपनी राजधानी बनाई उषारा जेता मीणा से बूंदी हड़पने वाला देवा इसी का पुत्र था |
वर्तमान भैसरोड़ वन अभ्यारण्य में बकाला गोत्र के मीणाओं की कुल देवी का प्राचीन स्थान आज भी मौजूद है | भैसरोड़ से विस्थापित बकाला मीनाओ ने वर्तमान कोटा की रामगंज मंडी तहसील के पास खेराबाद गाँव बसाया | जो आगे जाकर एक परगना बन गया | उस क्षेत्र में खासकर दर्रा से गुजरने वालो को बाकालो को बोराई चुकानी होती थी | इस गाँव में फलोदी माता और सती माता का स्थान है जिनकी पूजा मीणा ही करते आये है |
खेराबाद (वर्तमान में यहाँ बकाला व चीता परिवारों के कुछ घर है ) से बकाला रामगंज मंडी के गाँव-धाक्या -550, गणेश पूरा-400, राजू खेड़ा-400, मायला-350, कुदायला-400, मिन्या खेड़ी-350 गुमानपुरा-250, संड्या खेड़ी-250, हनुवत खेडा-100, देहि पूरा-50, खानपुर में गेंहू खेड़ी और गूगल खेड़ी, झालावाड़ की बकानी पंचायत में बोरखेड़ी, चितोड़ के दावद में भी बकाला है | खेराबाद के बकाला मीणाओं का कहना है कोटा के इतिहास में दर्ज अबली मीणा इसी गाँव की थी |

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सांभर‌ झील कि निर्माण किसने करवाया था on 30-05-2020

वासुदेव चौहान


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