हज़रात उमर फारूक के बारें में : हजरत उमर इब्न अल-ख़त्ताब (अरबी में عمر بن الخطّاب), ई। (586–590 – 644) मुहम्मद साहब के प्रमुख चार सहाबा (साथियों) में से थे। ध्यान रहे की वह हज़रत अबु बक्र के बाद मुसलमानों के दूसरे खलीफा चुने गये। मुहम्मद साहब ने फारूक नाम की उपाधि दी थी।
हज़रात उम्र की कहानी :
एक रात की कहानी है जब हज़रत उमर फ़ारूक़ मामूल के मुताबिक हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को साथ लेकर मदीना मुनव्वरा की गलियों का गश्त लगा रहे थे रात काफी हो चुकी थी मकानों और खेमों की रोशनी बंद हो चुकी थी मदीना मुनव्वरा के लोग गहरी नींद सो रहे थे मगर एक फटे पुराने खेमें में अभी तक चिराग़ जल रहा था और दो औरतों की बातें करने की आवाज़ आ रही थी औरतों में एक माँ थी और दूसरी उसकी बेटी माँ बेटी से कह रही थी दूध बेचकर जो पैसे तू लाती है वो इतने कम होते हैं की बड़ी मुश्किल से चलता है मैं जब तेरी उम्र की थी तो दूध में पानी मिलाया करती थी और बड़े आराम से गुज़र बसर होता था।
बेटी मेरी बात मान और सुबह से दूध में पानी मिलाना शुरू कर दे चार पैसे ज़्यादा आएंगे तो घर की हालत सुधर जाएगी बेटी माँ को टोकते हुए कहती है माँ तौबा करो कैसी बातें करती हो आप को समझाते हुवे कहने लगी माँ जब तुम दूध में पानी की मिलावट करती थी तब उस वक्त तुम मुसलमान नहीं थी अल्हम्दुलिल्लाह अब हम मुसलमान हैं हम दूध में पानी नहीं मिला सकते हैं माँ बोली आखिर इसमें हर्ज ही क्या है दूध में पानी मिलाने से इस्लाम पर कौनसी आँच आ जाएगी बेटी ज़रा सख्त लहज़े में बोली।
अम्मा तुम्हे क्या हो गया है क्या तुम भूल गई हो हमारे खलीफा हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हो की हिदायत के मुताबिक दूध में पानी बिल्कुल नहीं मिलाना चाहिए माँ ने जवाब दिया बेटी क्या खलीफा नहीं जानते कि हम जैसे गरीब अगर दूध में पानी मिलाकर नहीं बेचेंगे तो दो वक्त की रोटी कैसे हासिल करेंगे बेटी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है मेरी अम्मा इस तरह हासिल की हुई रोटी हलाल रिज़्क़ नहीं है मैं मुसलमान हूं और कोई ऐसा काम नहीं करूंगी जो खलीफा की हिदायत के खिलाफ हो और इस्लामी तालीमात के भी खिलाफ हो।
माँ ने फिर से बेटी को समझाना चाहा की यहाँ कौनसे खलीफा बैठे हैं जो देख रहे हैं उन्हें तो कानो-कान खबर नहीं होगी अब तुम सो जाओ सुबह-सुबह मैं दूध में पानी मिला दूंगी प्यारे दोस्तों बेटी तड़प कर कहने लगी अम्मा नहीं बिल्कुल नहीं खलीफा नहीं देख रहे तो क्या हुआ अल्लाह तो देख रहा है न उसके बाद खेमे में खामोशी छा गई चिराग़ बुझा दी गई और माँ बेटी दोनों सो गई दूसरे दिन सुबह होते ही अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने उस लड़की के घर एक शख्स को दूध खरीदने के लिए भेजा।
जब वो शख्स दूध लेकर आया तो आपने दूध की तहक़ीक़ किया तो दूध बिलकुल सही था उसमें पानी की मिलावट बिल्कुल नहीं थी हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हो अपने रात के साथी हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से पुछा की ऐसी नेक किरदार और अल्लाह से डरने वाली लड़की के लिए क्या इनाम होना चाहिए हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने राय दी कम से कम 1000 दिरहम इनाम में देने चाहिए हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को मुखातिब करते हुए फ़रमाया।
ऐसी नेक और पाक सीरत लड़की की ईमानदारी को सिक्कों में नहीं तौला जा सकता मैं इस लड़की को ऐसा इनाम देना चाहता हूं जो इसके शान के मुताबिक़ हो यानी इस लड़की को वो इनाम दूंगा जिसकी वो हक़दार है मां और बेटी को हज़रत उमर की दरबार में बुलाया गया और रात का पूरा वाक़्या उन्हें फिर से सुनाया गया माँ के चेहरे पर मायूसी आ गई और शर्मिंदगी से अपना सर निचे कर ली और बेटी का चेहरा सदाक़त की नूर से जगमगा उठा हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से कहा इस्लाम को तुम जैसी बेटियों की ज़रुरत है।
फिर हज़रत उमर ने कहा मुसलमानों का खलीफा होने की हैसियत से मेरी ख्वाहिश है की मैं तुम्हे अपनी बेटी बना लूं हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हो के दो बड़े बेटे हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत अब्दुर्रहमान की शादी हो चुकी थी मगर आपके तीसरे बेटे हज़रत आसिम की शादी नहीं हुई थी हज़रत आसिम कद्दावर और हसीन शख्सियत के मालिक थे अपने वक़्त के अच्छे शायर और आलिम थे और इस्लामी अख़लाक़ और सीरत का नमूना थे उसके बाद उस नेक सीरत लड़की का निकाह उनके साथ कर दिया गया।
Source : bahareshariat
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