Garasiya Jati गरासिया जाति

गरासिया जाति



GkExams on 09-02-2019

गरासिया भारत के राज्य राजस्थान की प्रमुख जनजाति है। गरासिया की कुल आदिवासी जनसंख्या में लगभग 2.5 प्रतिशत है। यह जनजाति मुख्य रूप से उदयपुर ज़िले के खेरवाड़ा, कोटड़ा, झाड़ोल, फलासिया, गोगुन्दा क्षेत्र एवं सिरोही ज़िले के पिण्डवाड़ा तथा आबू रोड़ तथा पाली ज़िले के बाली क्षेत्र में बसी हुई है। ये गोगुन्दा (देवला) को अपनी उत्पत्ति मानते हैं। गरासिया जनजाति के लोग स्वयं को चौहान राजपूतों का वंशज मानते हैं। लोक कथाओं के अनुसार गरासिया जनजाति के लोग यह मानते हैं कि ये पूर्व में अयोध्या के निवासी थे और भगवान रामचन्द्र के वंशज थे। ये लोग यह भी मानते हैं कि उनकी गौत्रें बप्पा रावल की सन्तानों से उत्पन्न हुई थीं। इनमें डामोर, चौहान, वादिया, राईदरा एवं हीरावत आदि गोत्र होते हैं। ये गोत्र भील तथा मीणा जाति में भी पाई जाती है।

सामाजिक जीवन

भीलों के एवं इनके घरों, जीने के तरीकों, भाषा, तीर कमान आदि में कई समानताएं पाई जाती है। इनके गाँव बिखरे हुए होते हैं। ये गाँव पहाड़ियों पर दूर दूर छितरे हुए पाए जाते हैं। लोग अपने घर प्रायः पहाड़ों की ढलान बताते हैं। एक गाँव में प्रायः एक ही गोत्र के लोग रहते हैं। इनकी भाषा में गुजराती, भीली, मेवाड़ी व मारवाड़ी का मिश्रण है।

विवाह रीति

इनमें तीन प्रकार के विवाह प्रचलित हैं-

  1. मौर बाँधिया- इस प्रकार के विवाह में फेरे आदि संस्कार होते हैं।
  2. पहरावना विवाह- इसमें नाममात्र के फेरे होते हैं।
  3. ताणना विवाह- इसमें वर पक्ष कन्या पक्ष को केवल कन्या के मूल्य के रूप में वैवाहिक भेंट देता है।

विधवा विवाह- इनमें इसका भी प्रचलन हैं।

रहन-सहन एवं वेशभूषा

रहन-सहन एवं वेशभूषा की दृष्टि से गरासिया जनजाति की अपनी एक अलग पहचान है। गरासिया पुरुष धोती कमीज पहनते हैं और सिर पर तौलिया बाँधते हैं। गरासिया स्रियाँ गहरे रंग और तड़क - भड़क वाले रंगीन घाघरा व ओढ़नी पहनती हैं। वे अपने तन को पूर्ण रूप से ढंकती हैं।

परिवार

इनका समाज मुख्यतः एकाकी परिवारों में विभक्त होता है। पिता परिवार का मुखिया होता है। समाज में गोद लेने की परंपरा भी प्रचलित है। इनके समाज में जाति पंचायत का विशेष महत्व है। ग्राम व भाखर स्तर पर जाति पंचायत होती है। पंचायत का मुखिया 'पटेल' होता है। पंचायत द्वारा आर्थिक व शारीरिक दोनों प्रकार के दंड दिए जाते हैं।

सांस्कृतिक जीवन

इनके प्रतिवर्ष कई स्थानीय व संभागीय मेले लगते हैं। बड़े मेले "मनखारो मेलो" कहलाते हैं। युवाओं के लिए इन मेलों का बड़ा महत्व है। गरासिया युवक मेलों में अपने जीवन साथी का चयन भी करते हैं।

गरासियों के नृत्य-

वालर, गरबा, गैर, कुदा व गौर गरासियों के प्रमुख नृत्य हैं। ये नृत्य करते समय लय और आनंद में डूब जाते हैं।

गरासियों में गोदना परंपरा-

भीलों की तरह इनमें भी गोदना गुदवाने की परंपरा है। महिलाएँ प्रायः ललाट व ठोडी पर गोदने गुदवाती है।

अर्थव्यवस्था

गरासियों की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन, शिकार एवं वनोत्पाद के एकत्रीकरण पर निर्भर है। अब ये लोग मज़दूरी करने कस्बों व शहरों में भी जाने लगे हैं।






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Comments Sagar on 09-12-2023

Bihola sir neme kis jati me hoti hai





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