Gair Aupcharik Shiksha
द्वितीय विशव युद्ध के पश्चात, उपनिवेशिया अवधि के बाद नवोदित राष्ट्रों में व्यापक और विकसित औपचरिक शिक्षा के लिए तीव्र रूप से गतिविधियाँ शुरू हुई । साठवें दशक में सब कहीं यह जानकार बेचैनी थी कि मात्र औपचारिक शिक्षा की सुविधाओं के विस्तार से सभी समस्यायें हल नहीं हो पा रही हैं । औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के रूप में शिक्षा का वर्गीकरण एक बड़ा व्यवधान छोड़ देता है । फिलिप कूम्बस तथा अन्य के अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि विकसित समाजों में एक नई प्रकार की शिक्षा प्रणाली का विकास किया गया है जिसे अनौपचारिक शिक्षा कहा जा सकता है । इस अनौपचारिक शिक्षा में तीव्र गति से परिवर्तनशील समाजों की न्यूनावधि की आवश्यकताओं को पूरा करने की लिए अत्यधिक क्रियात्मक कार्यक्रम थे ।
अनौपचारिक शिक्षा कमजोर और पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षिक अवसर जुटती है । नमनीयता अनौपचारिक शिक्षा की कुंजी है । इस शिक्षा में खुलापन होता है । दाखिले, पाठ्यक्रम, शैक्षिक स्थल, शिक्षा प्रणाली, प्रशिक्षण का समय और अवधि किसी पर भी रोक नहीं होती । इन्हें परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सकता है । अनौपचारिक शिक्षा के कुछ उदाहरण हैं । खुले विधालय, खुले विश्वविद्यालय, खुला सिखाना और पत्राचार पाठ्यक्रम इत्यादि । अनौपचारिक शिक्षा का एक उदाहरण खुला विधालय है जिसके प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित है –
(1) औपचारिक विधालयों के साथ-साथ उसके विकल्प के रूप में एक समानान्तर अनौपचारिक व्यवस्था उपस्थित करना ।
(2) विद्यालय के बाहर पढ़ने वालों, विधालय छोड़ने वालों, कामगर वयस्कों, गृहणियों तथा सुदूर क्षेत्र में रहने वाले समाज के पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना ।
(3) माध्यमिक स्तर पाठ्यक्रम का अध्ययन करने के लिये प्रशिक्षुओं की ब्रिज प्रारंभिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करना ।
(4) दूर शिक्षण विधियों के द्वारा माध्यमिक सीनियर माध्यमिक, प्राविधिक और जीवन को समर्द्ध बनाने वाले पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करना ।
(5) अनुसंधान, प्रकाशन और सूचना प्रसारण द्वारा शिक्षा की एक खुली, दूसरा उद्गम व्यवस्था उपस्थित करना ।
अनौपचारिक शिक्षा में प्रौढ़ शिक्षा, सतत शिक्षा तक काम पर रहने वाले शिक्षा श्रमिक हैं ।
सन 1968 में फिलिप कूम्बस ने अनौपचारिक शिक्षा की चर्चा की । परन्तु उसकी परिभाषा 1970 के बाद ही की गई । वास्तव में, अनौपचारिक शिक्षा एक प्राचीन परिपाटी का नया नाम है । अनौपचारिक शिक्षा की कुछ परिभाषायें निम्नलिखित हैं –
अनौपचारिक शिक्षा के कार्यक्रमों को संगठित करने वाले विभिन्न साधन निम्नलिखित है –
(1) औपचारिक शिक्षा की संस्थाएं ।
(2) अनौपचारिक शिक्षा के लिए विशिष्ट साधन जैसे नेहरु खेल केन्द्र, कारखानों में प्रशिक्षण केन्द्र, सार्वजानिक पुस्तकालय, पत्राचार शिक्षा के केन्द्र इत्यादि ।
(3) क्लब और सोसाइटीयों जैसे स्वयं सेवी गैर-सरकारी संगठन ।
(4) रेडिओ और टेलिविज़न ।
शिक्षा की तीन प्रणालियों में अनौपचारिक शिक्षा भी एक है, अन्य दो प्रणालियां हैं – औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा । अस्तु अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के साथ समायोजन के रूप में देखी और आयोजित की जानी चाहिये । यदि उसका संगठन औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा से अलग हटकर नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे यह एक अप्रयाप्त और प्रभावहीन प्रणाली सिद्ध होगी । दुसरे उसे कुछ बुनियादी कौशल तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिये । उसकी व्यवस्था समस्त सामाजिक-आर्थिक परिवेश के प्रसंग में एक आधुनिक सामाजिक संदर्भ, एक अधिक संगठित समुदाय के लिए की जानी चाहिये । यह समुदाय एक ऐसे परिवर्तन और नवीनीकरण की प्रतीक्षा में है जिसमें शिक्षा की तीनों प्रणालियों योगदान दे सकती है । इसके लिये समुधायिक आवश्यकताओं और अधिगम व्यवस्थाओं के मध्य अन्तर को भरना आवशयक है ।
औपचारिक शिक्षा | अनौपचारिक शिक्षा | |
1. | शिक्षा की अवधि में सीमित । | विशिष्ट अवधि में सीमित न होकर जीवनपर्यन्त चलने वाली । |
2. | साधारणतया कार्य से संकलित नहीं | कार्य से संकलित । |
3. | प्रवेश और बहिगर्मन के निश्चित बिन्दु | प्रवेश, बहिगर्मन और पुन: प्रवेश के बिन्दु समेत यह व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवनपर्यंन्त चलती रहती है |
4. | सुनिश्चित पाठ्यक्रम । | विविध और बहुमुखी पाठ्यक्रम । |
5. | इसमें देने वाला प्रमुख और लेने वाला निष्क्रिय होता है | साथ-साथ खोजने, विस्विकरण करने निर्णय लेने और भागीदारी की प्रक्रिया । |
6. | ज्ञान प्राप्त करने के लिये । | व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं, पर्यावरणीय परिस्थितियों और परस्पर सम्बंधों की जानकारी देने की प्रक्रिया |
7. | आलोचनाविहीन आज्ञा पालन उत्पन्न करती है । | एक खुली शिक्षा प्रक्रिया जो कि आत्म-निर्भर बोध उत्पन्न करती है । |
8. | एक सुनिश्चित सामाजिक संदर्भ में कार्यरत । | परिवर्तन की पूर्वापेक्षा और तैयारी करती है । |
9. | परंपरागत विधालयीकरण से सम्बन्ध जिसमें विधालयीकरण किसी विधालय अतवा कॉलिज तक सीमित रहता है । | किसी शैक्षिक व्यवस्था में सीमित नहीं । |
10. | शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में कठोर जैसे दाखिले, पाठ्यक्रम शिक्षा प्रणाली, शिक्षण का कार्य और अवधि में कठोर । | शिक्षा के विभिन्न पाहलुओं के विषय में अत्यधिक नमनीय । |
अनौपचारिक शिक्षा को जीवन के वास्तविक अनुभवों से अलग नहीं किया जाता । आधुनिक शिक्षा व्यवस्था औपचारिक, अनौपचारिक तथा अनौपचारिक व्यवस्थाओं में उपयुक्त सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास करती है । वह शिक्षा के सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में समन्वय कराती है । शिक्षाशास्त्री और शिक्षक को यथा संभव औपचारिक शिक्षा के खतरों से दूर रहना चाहिये और अनौपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के गुणों का लाभ उठाना चाहिये ।
अनौपचारिक शिक्षा सामाजिक और आर्थिक विकास की यौजनाओं में उन अन्तरालों को भारती है जिनसे प्रगति में बाधा पड़ती है । अस्तु, वास्तविक में उसका अपना प्रमाणिक अधिकार है । वह ऐच्छिक, नियोजित , व्यवस्थित तथा आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षा प्रणाली है । वह औपचारिक शिक्षा के समान क्रियात्मक, स्थान और काल में असीमित और आवश्यकताओं के प्रति प्रतिक्रियात्मक शिक्षा प्रणाली है । आवश्यकताओं और परिवर्तन विकास के द्वार खोल देती है । माल्कम आदिशिया के शब्दों में “अनौपचारिक शिक्षा बाजार योग्य और व्यवसायिक होनी चाहिये । उसमें स्वयं-अधिगम प्रतिदिन पर जोर दिया जाना चाहिये । “
एच0ऐसी0 ऐसी0 लोरिन्स के शब्दों में “अनौपचारिक शिक्षा व्यवस्था औपचारिक शिक्षा व्यवस्था की प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक है । इनमे सामान्यतत्वों की पहचान की जानी चाहिये और संकलित व्यवस्था का विकास किया जाना चाहिये ।
अनौपचारिक शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा में अन्तर करते हुए अनिक बोर्डिया लिखते हैं – “ नई अनौपचारिक शिक्षा व्यवस्था पहले प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों से इस बात में भिन्न है कि वह उपयुक्त प्रशासनिक और संसाधानिक सहायता प्रदान करती है और आवश्यकता-आधारित पाठ्यक्रमों, अध्यापन और अधिगम सामग्री पर जोर देती है परन्तु एक सतत अधिकार पर सभी स्तरों पर मुल्यांकन पर जोर देने में वह अद्वितीय है । इसमे सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों अध्यापन और अधिगम सामग्रियों की पूर्व परीक्षा की जानी चाहिये और प्रभावशाली अध्ययनों पर जोर दिया जाना चाहिये “ ।
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