Sawai Singh Bhomiya Ji सवाई सिंह भोमिया जी

सवाई सिंह भोमिया जी



GkExams on 24-11-2018

भोमिया शब्द व उस का अर्थ
आधुनिक युग मे राजपूताना के राजपूतो समेत हिन्दुस्तान के तमाम राजपूतो की जिज्ञासा पश्चिमी राजस्थान मे बहुसंख्यक भोमिया राजपूत उर्फ रजपूतो के इतिहास के बारे मे जानकारी जुटाने की रही है।इसके लिए राजपूती युवा अक्सर इंटरनेट, विकीपीडिया ,सोशल नेटवर्किंग साइट पर जाकर इसके लिए प्रयत्न करते है।जिस पर अक्सर उन्हे नाकामी ही हाथ लगती है।आज मै इसी विषय पर चर्चा करूंगा।
भोमिया राजपूत उर्फ रजपूत, राजपूतो से कोई अलग समुदाय नही है। यह अतीत से ही राजपूत ही है।भोमिया शब्द अतीत मे युध्द मे शौर्य, अद्भुत साहस और वीरता प्रदर्शित करने वाले रजपूत के लिए प्रयुक्त होता था।एक प्रकार से "भोमिया" उस समय की वीरता के लिए राजा द्वारा दी जाने वाली बहुत बडी उपाधि थी।मेवाड अंचल मे जिस प्रकार हरियल सेना होती थी उसी प्रकार मारवाङ अंचल मे भोमिया सेना थी।जो युद्ध मे सबसे आगे रहती थी।यही भोमिया सेना मेवाड़ अंचल मे भी होती थी।मेवाड़ राज्य में बप्पा रावल से लेकर राणा सांगा तक भोमिया सेना का बोलबाला रहा।इस समय तक भोमिया सेना का मेवाड़ राज्य में इतना रूतबा था कि इनका कद राज दरबारियों के बराबर था।यह भोमिया समय समय पर राजा की जरूरत पर युद्ध मे काम आते थे।इसके एवज मे राणा भोमियो को भोम प्रदान करता था और इस भोम का भोमियो से कोई राजकीय कर नही लिया जाता था।राणा द्वारा मिलने वाली ऐसी ही रियायतो से भोमिया कई एकड जमीन के मालिक बन जाते थे।ये भोमिये या रियायती वर्ग राज्य के बडे भूमिपतियों मे शुमार होते थे।
राणा सांगा के बाद के मेवाड़ शासको के शासनकाल मे भोमियो का रूतबा थोड़ा कम जरूर पडा। अब भोमिये केवल युद्ध तक ही सीमित रह गए। अब भी भोमियो को यथावत रूप से लडाई लडने के एवज मे भोम तो दी जाती थी।लेकिन राजदरबार वाले रूतबे मे थोडी कमी जरूर महसूस की गई।इसके उपरान्त भी भोमिये राणा सांगा के बाद के शासको को स्थाई रूप से सैनिक सेवाए देते रहे।
इसी प्रकार मारवाङ अंचल मे भोमिये अतीत से लेकर अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ, महान सम्राट पृथ्वीराजचौहान तृतीय, रणथम्भौर के राणाहम्मीरदेव, जोधाणा के महान शासक राव मालदेव, जालौर के सुप्रसिद्ध शासक कान्हङदेव, सिवाना के राव शीतलदेव तथा भीनमाल के प्रतिहार शासको को स्थाई रूप से सैनिक सेवाए देते रहे । इन सेवाओ के बदले मे इन शासको द्वारा भोमियो को भोम प्रदान की जाती थी ।इसके अलावा जालौर के सोनीगरा, जोधाणा के राठौङ, सिवाना के चौहान और भीनमाल के प्रतिहार शासको द्वारा भोमियो को अपनी ओर से कुछ छोटी मोटी जागिरे दी जाती थी।क्योंकि इस भोमिया सेना मे सदा युध्द मे शौर्य, अद्भुत साहस और वीरता प्रदर्शित करने वाले रजपूतो के साथ राजा के कनिष्ठ भ्राता, राजा के सगे संबंधी भी हो थे।इसलिए इन शासको द्वारा भोमियो को बडी संख्या मे जागीरे दी जाने लगी।यह जागीरे छोटी बडी दोनो ही प्रकार की होती थी।कोई कोई जागीरे तो इतनी छोटी होती थी कि उसके नीचे एक या दो गांव ही आते थे।जबकि किसी किसी जागीर के नीचे दस से बारह तक या की किसी के नीचे सोलह गाँव भी आते थे।ये सभी जागीरे अज्ञात है ।क्योंकि उस समय बारीकी से इनका इतिहास नही लिखा गया था।इन जागीरो मे प्रमुख जालौर के पास का चौसठ गांवो का परगना जो "दहियावटी" के नाम से प्रसिद्ध है,इसके अलावा जालौर, पाली,भीनमाल आदि के वे गांव जहा आज भी होली को होलिकादहन के लिए अग्नि(स्थानीय भाषा मे लोपो) भोमिये उर्फ रजपूतो द्वारा दी जाती है।ऐसे सभी गांव अतीत मे भोमिया राजपूतो की जागीरे थी।ऐसे गांवो मे प्रमुख चांदराई
, बाला, जालौर, सिवाना,भीनमाल, पाली के आस पास के भोमिया बहुसंख्यक आबादी वाले गांव है।
इन भोमियो के बारे मे ऐसा कहा जाता है कि यह अपनी भोम से असीम प्रेम करते थे।ये भोमिये अपनी भोम की रक्षा के लिए जान पर खेलकर भी रक्षक बन जाते थे।कही दफा भोमिये शत्रुओं से लडते लडते अपना सिर कलम हो जाने के बाद भी बिना शर वाले धङ के सहारे लडाई जारी रखते है।जो अपने आप मे भोमियॅो का अनूठा और अद्भुत साहस का प्रमाण था।इसी कारण से समय समय पर मारवाङ अंचल के इन शासको द्वारा भोमियो की सेवाऐ ली जाती थी।भोमियो के बारे मे प्रचलित है कि -
"भोमिया राखे इण धरा री लजिया ।
जग म राखियो, रजपूत आपणो नाव।।"
भोमियो के बारे मे एक किवन्दती प्रचलित है कि भोमिये अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ तथा पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समय तक बराबर अजमेर मे थे।लेकिन पृथ्वीराज चौहान तृतीय द्वारा पहले विग्रहराज चतुर्थ के साथ चल कपट उसके बाद संयोगिता हरण भोमियो को नागवार गुजरा।भोमियो ने इसे अपने ही रजपूत धर्म पर प्रतिघात समझा।इसके बाद भोमियो ने धीरे धीरे अजमेर से पलायन कर दिया।इसके पश्चात भोमियो ने परिस्थितियो के अनुकूल पहले रणथम्भौर के राणा हम्मीरदेव के यहा आ कर बचे।यहा इन्होंने हम्मीरदेव के साथ मिलकर खिलजी से प्रतिरोध करते रहे।यहा भोमियो ने हम्मीरदेव को लगातार सैनिक सेवाए देते रहे।हम्मीरदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद भोमियो ने जोधाणा और जालौर आंचल की ओर कूच किया। यहा पर जालौर के सुप्रसिद्ध शासक कान्हङदेव, सिवाना के शीतलदेव तथा भीनमाल मे प्रतिहार शासको ने शरणागत के रूप मे शरण दी।ये सभी शासक भोमियो की वीरता और अद्भुत साहस से प्रसन्न होकर स्थायी रूप से अपने सैनिको मे सम्मलित कर लिया तथा समय के साथ इनकी वीरता से प्रभावित होकर उपहार स्वरूप जागीरे देते रहे।
यहा भोमियो ने अपनी योग्यतानुसार पदोन्नति पाकर प्रसन्न होकर स्थायी रूप से यही बच गए।सिवाना मे शीतलदेव की ओर से अल्लाहुद्दीन खिलजी के साथ संघर्ष करते हुए शीतलदेव के साथ कई भोमिया रजपूत वीरगति को प्राप्त हुए।इस युध्द मे रहे बचे भोमियो ने फिर अपनी कर्मभूमि जालौर आंचल को ही चुन ली।जालौर आंचल मे भोमिये कान्हङदेव को लगातार सैनिक सेवाऐ देते रहे।इसी बीच शीतलदेव के वीरगति के प्राप्त होने के बाद खिलजी ने गढ सिवाना को जीतकर जालौर की ओर कूच किया।यहा कान्हङदेव ने भोमियो के साथ मिलकर एक वर्ष तक खिलजी को संघर्ष के लिए मजबूर कर दिया।यहा कान्हङदेव, वीरमदेव तथा भोमियो के अद्भुत साहस और वीरता प्रदर्शित करने के बाद वीरगति को प्राप्त होने से जालौर के स्वर्णगिरी दुर्ग पर खिलजी का विजय पताका फहराया।
कान्हङदेव तथा वीरमदेव के साथ भोमियो के बलिदान के बाद भोमियो के वंशजो ने जालौर ,सिरोही ,बाड़मेर, पाली के अलग अलग क्षेत्रो मे अपने काम के तजुर्बे के अनुसार रोजमर्रा के कार्य करने लगे।इसमे कृषि कार्य प्रमुख था।क्योंकि इन्हे अतीत मे भोम प्रदान होती रहती थी।जिससे इन्हे इस भोम पर कृषि कार्य करने मे सुलभ और सरलता होती थी।धीरे धीरे भोमिये कृषि क्षेत्र मे रम गये तथा यही अपना स्थायी बचेरा बचा लिया।
इसी प्रकार कुछ पाली क्षेत्र के भोमिये इसके पश्चात भी जोधाणा के राठौङ शासको की ओर से युध्द मे शौर्य प्रदर्शित करते रहे।इनमे राव मालदेव का शेरशाह सूरी के साथ लडा गया "सुमेर का युध्द" प्रमुख है।इस युद्ध मे राव मालदेव, राजपूती सिरदारो और भोमिया रजपूतो के अद्भुत साहस और वीरता के प्रदर्शन से शेरशाह सूरी को कहना पडा कि
"मै मुट्ठी भर बाजरे के लिए सारे हिन्दुस्तान का साम्राज्य खो बैठता।"
राव मालदेव के बाद के शासको के समय के यहा के भोमियो ने भी रोजमर्रा के कार्यो की ओर लौटते हुए कृषि कार्य के साथ अपने स्तर के जीवनयापन के कार्य करने लगे।
भोमिये सदा सैनिक सेवाऐ देते रहने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी भले ही राजा न बने हो, लेकिन सत्ता से दूर रहकर भी इन्होने पीढ़ी दर पीढ़ी रजपूती गौरव को बनाए रखा।इसलिए जग मे इन्हे यश प्राप्त है।
एक दोहा है इनकी प्रसिद्धि के लिए -
जग पूजै शूरा नै; शूरा राखे इण री लाज।
जग वसायो शूरै।जग म वाजिया भोमिया।।




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Comments Satyaprakash gupta on 10-02-2020

Baby pratibimb kise Kay ate hi





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