Bharat Par Arabon Ka Aakramann pdf भारत पर अरबों का आक्रमण pdf

भारत पर अरबों का आक्रमण pdf



GkExams on 12-05-2019

भारत पर शताब्दियों से अनेक विदेशी आक्रमण होते रहे हैं। विदेशी आक्रमणकारी, शक, हुण, कुषाण, पार्थियन, आदि के रूप में भारत आए । 712 ई. में मोहम्मद-बिन-कासिम ने भारत पर आक्रमण किया । परन्तु प्राचीन काल में आक्रमणकारियों और पूर्व मध्यकालीन आक्रमणकारियों में यह मतभेद था कि प्राचीन काल के आक्रमणकारी भारतीय समाज में समाहित कर लिए गए परन्तु तुर्क आक्रमणकारियों ने अपने प्रभाव को बनाए रखा । तुर्को ने अपने प्रभाव से धर्म ही नहीं बल्कि राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय परिवर्तनों को जन्म दिया । इस रूप में ये आक्रमण पहले के आक्रमणों से अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए।1



अरब व तुर्क आक्रमणों के प्रभाव:-



भारत में अरबों व तुर्को के आक्रमणों के प्रभाव को दो भागों में बांटा जा सकता है -

1. तत्कालीन प्रभाव

2. दुरगामी प्रभाव



1. तत्कालीन प्रभाव - इन प्रभावों से हमारा अभिप्राय है कि मोहम्मद-बिन-कासिम, गजनवी तथा गौरी के आक्रमणों के उस समय भारत पर क्या प्रभाव पड़े । उदाहरण के लिए इन हमलों में व्यापक जन-धन की हानि हुई, कला और साहित्य को आघात पहुंचा । संक्षेप में अरब व तुर्कों के आक्रमणों के निम्नलिखित तत्कालीन प्रभाव पड़े ।



(1) इस्लाम का प्रसार - अरबों व तुर्को में नया धार्मिक जोश था और उन्होंने इस्लाम को फैलाने के लिए ही भारत पर आक्रमण किया था । उतरी भारत पर अधिकार करने के बाद उन्होंने इस्लाम का बड़ी तेजी से प्रसार करना शुरू कर दिया था । आक्रमणकारियों ने अनेक लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया उन्होंने मंदिरों एवं मूर्तियों को तोड़कर हिन्दुओं के भ्रम को दूर कर दिया । इसके प्रभाव में आकर भी अनेक हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म में दीक्षा ली । इसके अतिरिक्त अनेक लोगों ने अत्यचारों से छुटकारा पाने के लिए इस्लाम धर्म ग्रहण किया । आक्रमणकारियों के साथ अनेक मौलवी भारत आए। उन्होंने भारत में इस्लाम धर्म का प्रसार किया । कारण चाहे कुछ भी हो भारत में दिन-प्रतिदिन इस्लाम का प्रसार बढ़ती गया ।2

(2) जन-धन की हानि - गजनवी ने भारत पर 1000 से 1025ई. में अनेक बार आक्रमण किए जिनमें वह सभी में विजयी रहा । महमूद के इन आक्रमणों का उद्देश्य धन प्राप्त करना था। नगरकोट, कन्नौज, मथुरा और सोमनाथ से वह अपार सम्पदा ले जाने में सफल रहा । इस लूट का वर्णन ऊतबी ने भी किया है।3 गौरी के आक्रमणों का सीधा लक्ष्य धन प्राप्त करना नहीं था यद्यपि उसके अभियानों में, कत्लेआम जैसी घटनाएँ देखने में मिलती है । अनेक लोगों को उसने मौत के घाट उतार दिया। अनेक मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करवाया । नालन्दा और विक्रमशीला के मठों को आग लगवा दी । दोनों आक्रमणकारियों में भारत को जन-धन की हानि उठानी पड़ी।4



(3) भारतीयों की कमजोरी का रहस्योद्घाटन - अरबों के द्वारा सिन्ध पर आक्रमण के पश्चात् भारतीयों की आंतरिक कमजोरी की पोल-खुल गई । उस समय देश राजनीतिक दृष्टि से अस्थिर ओर छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और जो एक-दूसरे से लड़ते रहते थे । इस प्रकार वे एक-एक करके विदेशी आक्रमण का आसानी से शिकार हो सकते थे । सिन्ध पर अरबों के आक्रमण ने भारत की इस कमजोरी का रहस्योद्घाटन किया ।5



(4) भारतीय समाज की दुर्बलता का प्रदर्शन - महमूद के आक्रमणों ने भारतीय समाज की दुर्बलता का पर्दाफाश कर दिया। भारत का राजनीतिक संगठन इतना कमजोर हो चुका था कि यह महमूद के आक्रमणों का सामना करने में अक्षम हुआ। भारतीय समाज की यह कमजोरी कि भगवान उनकी रक्षा करेंगे सोमनाथ के मंदिर में उबरकर सामने आई । सामन्तवादी प्रणाली पर खड़ा समाज भारतीयों को आपस में जोड़ने में असफल रहा ।



(5) भारतीयों की राजनीतिक दुर्बलता - तुर्क आक्रमणों के समय भारत की राजनीतिक दुर्बलता स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई । महमूद ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए लेकिन एक भी आक्रमण में भारतीयों ने उसका मिलकर सामना नहीं किया । गौरी के आक्रमणों के समय भी भारतीय शासकों में यही क्षेत्रीयवाद की भावना थी परिणामस्वरूप तुर्को ने उनकी इस आपसी फूट का लाभ उठाया और भारत विजयी कर डाला।6



(6) कमजोर युद्ध नीति - तुर्क आक्रमण के समय भारतीयों की कमजोर युद्धनीति का पर्दाफाश हुआ । भारतीय शासक सेना में अधिकांश हाथियों का प्रयोग करते थे जबकि तुर्को के पास अश्व सेना अधिक थी । अश्व हाथियों की तुलना में अधिक तेजी व फुर्ती के साथ मुड़ सकता है । इसके अतिरिक्त भारतीयों का सैन्य संगठन कमजोर था ।7 तुर्को के पास भारतीयों की तुलना में कम सेना थी लेकिन वह नियोजित ढंग से बंटी हुई थी । मुहम्मद गौरी ने तराईन के दूसरे युद्ध में कम सेना होने पर भी युद्ध नीति का ठीक ढंग से संचालन करके व अपनी सेना का नियोजित ढंग से बांट कर विजय प्राप्त की ।



(7) कला एवं साहित्य को आघात - गजनवी के आक्रमणों में भारतीय मन्दिरों एवं मूर्तियों को तोड़ने की विशेषता उभरकर सामने आई । थानेश्वर, नगरकोट, मथुरा, कन्नौज, सोमनाथ में इमारतों, धर्मस्थलों और मन्दिरों को तोड़ा । ये भव्य कला के नमूने और मर्तियाँ सदा के लिए नष्ट हो गए । महमूद ने केवल मन्दिरों और मूर्तियों को ही नहीं तोड़ा बल्कि वह अनेक उच्चकोटि के कलाकारों और शिल्पकारों को अपने साथ गजनी ले गया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया । उसके कृत्यों से भारतीय स्थापत्य कला पर बुरा असर पड़ा ।8



गौरी के आक्रमणों में मन्दिरों पर हमले तो दिखाई नहीं देते परन्तु गौरी के सेनापतियों द्वारा इस प्रकार का नुकसान पहुँचाया गया । उदारहण के लिए बख्तियार खिलजी ने नालन्दा बौद्ध विहार को आग लगवा दी । इस विहार में अनेक अमूल्य पुस्तकें और पाण्डुलिपियाँ जल गई ।9

(8) भारत में तुर्क सता की स्थापना - तुर्क आक्रमणों से भारत में तुर्क सता की स्थापना हुई । यह तुर्क आक्रमण का सबसे व्यापक तत्कालीन प्रभाव था । गौरी ने पंजाब पर अधिकार करके भारत के अन्दरूनी भागों पर भी कब्जा कर लिया । तराईन के दूसरे युद्ध के बाद तो उसने दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, मथुरा और गुजरात पर अधिकार कर लिया । मुहम्मद गौरी के गुलामों ने भारत के अनेक क्षेत्रों को विजित किया । इस प्रकार 1206 ई. में गौरी की मृत्यु के समय भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी ।10



2. दूरगामी प्रभाव - महमूद गजनवी और गौर के सफलतापूर्वक अभियान में भारत में तुर्क शासन की शुरुआत की । इस नए राजनीतिक तत्व के प्रवेश से मूलभूत ढांचे में बदलाव न होने के बावजूद भी तुर्को के आक्रमणों ने भारतीय समाज के जीवन के सभी क्षेत्रों में नए तत्वों को पैदा किया । इन नए तत्वों के दूरगामी प्रभाव समाज पर स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।



(1) भारत में शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता की स्थापना - पूर्व मध्य काल में हर्ष की मृत्यु के बाद केन्द्रीय सत्ता कमजोर हो गई थी । राजपूत शासक सामन्तों पर निर्भर होते थे । तुर्क शासन की स्थापना पर केन्द्र पुनः शक्तिशाली होकर उभरा । अब सुल्तान सत्ता का सर्वेसर्वा बन गया ।11 सुल्तान प्रभुत्व सम्पन्न और स्वतन्त्र राजा था । दिल्ली के सुल्तान की शक्ति पहले के भारतीय राजाओं से भिन्न और अधिक थी । इस प्रकार छोटे-छोटे भारतीय राजाओं के स्थान पर शक्तिशाली सल्तन्त की स्थापना हुई ।



(2) सामन्ती प्रथा का पतन - तुर्को के आक्रमण के बाद राजपूत कालीन सामन्ती व्यवस्था का पतन हो गया । तुर्क शासकों ने मुख्य राजपूत सरदारों को उनके पद से हटा दिया । सामन्तों को अब किसी क्षेत्र विशेष पर शासन करने का अधिकार नहीं था । सारा अधिकार सुलतान के हाथ में केन्द्रित था । इससे इस काल में राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण हुआ । यद्यपि सुलतानों ने राजपूत सरदारों का पूरी तरह उन्मूलन नहीं किया बल्कि उन्हें अपने अधीन कर लिया ।12 कर प्रणाली की शुरुआत इस्लामिक प्रथा के अनुसार हुई । गैर मुसलमानों से जजिया नामक कर लिया जाता था ।



(3) नई स्थापत्य कला का उदय - तुर्क आक्रमण के प्रभाव से भारतीय स्थापत्य कला में नस तत्वों का समावेश हुआ । तुर्क अपने साथ इस कला के फारसी तत्व लेकर आए । फारसी कला के भारतीय कला में मिल जाने से एक नई कला का उदय हुआ । इस कला की अपनी ही कुछ विशेषताएं थी। ‘अढ़ाई के दिल का झोपड़ा’ नामक मस्जिद का निर्माण इसी कला से हुआ । इस नई स्थापत्य कला में चूना मिश्रित नए मसलों का प्रयोग भवनों के निर्माण में हुआ । इस नई तकनीकी से इमारतों में दृढ़ता आई ।13



(4) जाति प्रथा पर प्रभाव - तुर्को के आगमन से भारतीय समाज व्यवस्था को भी प्रभावित किया । विशेषतौर पर इस्लामी समाज में एकता की भावना की गहरी छाप मौजूद थी। उसमें हिन्दू समाज की भान्ति भेदभाव नहीं था । भारत में सल्तनत की स्थापना हो जाने पर भेदभाव और जातिवाद में कुछ हद तक गिरावट आई । अनेक लोगों ने इस्लाम धर्म अपना लिया । हिन्दुओं ने जाति-प्रथा के नियम ओर कठोर कर दिए ।



(5) शिक्षा और भाषा का प्रभाव - तुर्को के आगमन से शिक्षा के क्षेत्र में एक नई प्रणाली की शुरुआत हुई जिसे मदरसा प्रणाली कहते हैं । यह शिक्षा प्रणाली भारतीय प्रणाली से भिन्न थी । यह शिक्षा मस्जिदों में दी जाती थी । इस्लाम में शिक्षक विद्यार्थी के घर जाकर भी शिक्षा प्रदान कर सकता था ।

तुर्को के आगमन से भारत में फारसी भाषा का उदय हुआ। तुर्क शासकों ने अपने राजकार्यों में इस भाषा को प्राथमिकता दी। सैनिकों सन्धियों और विद्वानों ने इस भाषा को भारत के अनेक स्थानों पर पहुँचाया । इस प्रकार देखते ही देखते भारतीय समाज का स्वरूप बदलने लगा




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