Bharat Me Lauh Taknik Ki Pracheenta Aivam Utpatti भारत में लौह तकनीक की प्राचीनता एवं उत्पत्ति

भारत में लौह तकनीक की प्राचीनता एवं उत्पत्ति



Pradeep Chawla on 24-10-2018

भारत के लोहे तथा इस्पात की कई विशेषतायें थी। वह पू्र्णतया ज़ंग मुक्त थे। इस का प्रत्यक्षप्रमाण पच्चीस फुट ऊंचा कुतुब मीनार के स्मीप दिल्ली स्थित लोह स्तम्भ है जो लग 1600 वर्ष पूर्व गुप्त वँश के सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल का है और धातु ज्ञान का आश्चर्य जनक कीर्तिमान है। इस लोह स्तम्भ का व्यास 16.4 इन्च है तथा वज़न साढे छः टन है। 16 शताब्दियों तक मौसम के उतार चढाव झेलने के पश्चात भी इसे आज तक ज़ंग नहीं लगा। कुछ प्रमाणों के अनुसार यह स्तम्भ पहले विष्णु मन्दिर का गरूड़ स्तम्भ था। मुस्लिमशासकों ने मन्दिर को लूट कर ध्वस्त कर दिया था और स्तम्भ को उखाड कर उसे विजय चिन्ह स्वरूप ‘कुव्वतुल-इसलाम मसजिद’ के समीप दिल्ली में गाड़ दिया था।


हाल ही में ईन्डियन इन्टीच्यूट ऑफ टेकनोलोजीकानपुर के विशेषज्ंयों नें स्तम्भ का निरीक्षण कर के अपना मत प्रगट किया है कि स्तम्भ को जंग से सुरक्षितरखने के लिये उस पर मिसाविट नाम के रसायन की ऐक पतली सी परतचढाई गयी थी जो लोह, आक्सीजन तथा हाईड्रोजन के मिश्रण से तैय्यार की गयी थी। यही परिक्रिया आजकल अणुशक्ति के प्रयाग में लाये जाने वाले पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिये डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सुरक्षा परत को बनाने में उच्च कोटि का पदार्थ प्रयोग किया गया था जिस में फासफोरस की मात्रा लोहे की तुलना में एक प्रतिशतके लगभग थी। आज कल यह अनुपात आधे प्रतिशत तक भी नहीं होता। फासफोरस का अधिक प्रयोग प्राचीन भारतीय धातु ज्ञान तथा तकनीक का प्रमाण है जो धातु वैज्ंयिानिकों को आश्चर्य चकित कर रही है।


आजकल विकसित देश टेक्नोलोजी ट्राँसफर को हथियार बना कर अविकसित देशों पर आर्थिक दबाव बढाते हैं। जो लोग पाश्चात्य तकनीक की नकल करने की वकालत करते हैं उन्हें स्वदेशी तकनीक पर शोध करना चाहिये ताकि हम आत्म निर्भर हो सकें।]लौह धातुकर्म (Ferrous Metallurgy) का आरम्भ प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था। (steelmaking) का ज्ञान भी प्रागैतिहासिक काल से ही है।

इतिहास में लोहा और इस्‍पात

यह माना जाता है कि प्रागैतिहासिक युग में उल्‍कापिण्‍ड के टुकड़े से प्राप्‍त हुआ था और कई सदियों से यह दुर्लभ धातु बना रहा। बाद में मानव ने इस्पात निर्माण की प्रक्रिया सीखी। उत्‍पाद संभवतः अपेक्षाकृत इतना चिकना और अनुमान न करने योग्‍य था कि हथियार हेतु को तरजीह दिया गया। अंततः जब मानव लोहे को गलाने, फोजिंग करने, कठोर एवं टेमपरिंग करने के कठिन कला में सिद्धहस्त हो गया तो इन उद्देश्यों के लिये लोहे ने अलौह धातुओं का स्‍थान ले लिया।


प्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिस्र, चीन, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्‍यतायें से प्राप्‍त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्‍त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है। मेसीपोटामिया और मिश्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्‍पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था। प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था। बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया। तदनन्‍तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्‍क को गलाने हेतु आदर्श पायाप्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिश्र, चाइना, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्‍यतायें से प्राप्‍त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्‍त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है। मेसीपोटामिया और मिश्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्‍पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था। प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था। बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया। तदनन्‍तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्‍क को गलाने हेतु आदर्श पाया गया


अमेरिका में 1646 ईसवी में सफलतापूर्वक स्‍थापित आयरन वर्क्‍स “दी साउगस वर्क्‍स “ के पश्‍चात लगभग 200 या इससे अधिक वर्षो के लिए लोहा अपना प्रबल स्‍थान बनाये रखा. नये रेलगाड़ियों के आविष्‍कृत होने से लोहे की पटरियाँ बनीं। लड़ाकू जहाजों के साइड को लोहे के कवच से सुरक्षित रखने के लिए लोहे का प्रयोग होता था। लगभग 19 वीं शताब्‍दी के मध्‍य में 1856 में के आविष्‍कार से इस्‍पात के युग का आरंभ हुआ जो इस्‍पात को पर्याप्‍त मात्रा एवं उचित लागत में बनाने की अनुमति दे दी।

प्राचीन भारत में लोहे का प्रयोग

प्राचीन भारत में लोहा इस्‍पात का पूरा उल्‍लेख है। कुछ प्राचीन स्‍मारक जैसे नई दिल्‍ली में प्रसिद्ध लोह स्‍तम्‍भ या कोणार्क में सूर्य मंदिर में प्रयोग किया गया ठोस बीम में पर्याप्‍त साक्ष्‍य मिलता है जो प्राचीन भारतीय धातु विज्ञानी का प्रौद्योगिकीय उत्‍कर्ष दिखाता है।


भारत में लोहे का प्रयोग प्राचीन युग की ओर ले जाता है। वेदिक साहित्यिक स्रोत जैसा कि ऋगवेद, अथर्ववेद, पुराण, महाकाब्‍य में शान्ति और युद्ध में लोहे के गारे में उल्‍लेख किया गया है। एक अध्‍ययन के अनुसार लोहा भारत में आदिकालीन लघु सुविधाओं में 3000 वर्षों से अधिक समय से भारत में उत्‍पन्‍न होता है।

प्रमुख घटनाएँ

  • प्रथम सहराब्दी ईसा पूर्व - विश्व के विभिन्न भागों के लोग रॉट आइरन (wrought iron) बनाना जानते थे।
  • 17वीं शताब्दी - इस्पात की छड़ों को सिमेंटेशन प्रक्रिया द्वारा कार्ब्युराइज करके इसपात निर्माण
  • - के समय बिना के उपयोग के लोहे की छड़ें बनाने की नयी विधियाँ विकसित हुईं।
  • 1850 - हेनरी बेसेमर (Henry Bessemer) इस्पात-निर्माण की नयी प्रक्रिया विकसित की जिसमें द्रवित पर हवा बहाकर उसे माइल्ड स्टील बनाया जाता था।





सम्बन्धित प्रश्न



Comments Alok Yadav on 26-02-2023

लोहा की खोज कब हुआ था

Shadab on 19-08-2022

Bharat-Me-Lauh-Taknik ane se kya kya priwartan huai?





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