Dhan Ke Bare Me Jankari धान के बारे में जानकारी

धान के बारे में जानकारी



GkExams on 20-12-2018

धान सम्पूर्ण विश्व में पैदा होने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। प्रमुख खाद्यान्न चावल इसी से प्राप्त होता है। धान भारत सहित, एशिया और विश्व के अधिकांश देशों का मुख्य खाद्य है। मक्का के बाद धान की फसल ही मुख्य रूप से विश्व में बड़े पैमाने पर उत्पन्न की जाती है। किसी अन्य खाद्यान्न की अपेक्षा धान की खपत विश्व में सर्वाधिक है। चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। धान की अच्छी उपज के लिए 100 सेमी. वर्षा की आवश्यक होती है।

खेत की तैयारी-

किसान भाइयों गरमी के मौसम में सही समय पर खेत की गहरी जुताई हल या प्लाउ चला कर करें, जिस से मिट्टी उलटपलट जाए। मेंड़ों की सफाई जरूर करें। गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई या बारिश से पहले खेत में फैला कर मिलाएं।



● रोपाई – जब पौध 20-25 दिन की हो जाये तो रोपाई कर देनी चाहिये। अच्छी तरह लेह लगाकर जुताई किये गये खेत में 20 x 30 सेमी. दूरी पर दो पौधों को रोपना चाहिये। पौध को 2 3 सेमी. से ज्यादा गहरा नहीं रोपना चाहिए रोपते समय खेत में पानी की पतली तह होनी चाहियेे ताकि पौध को उथला रोपा जा सके। पौध पुरानी हो जाने पर एक स्थान पर 4-5 पौधे रोपे जाने चाहिये।



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(ii) सीधे खेत की बुआई विधि – लेहयुक्त मृदाओं में पौधरोपण के स्थान पर अंकुरित बीजों को खेत में छिटककर अथवा पंक्तियों में बो सकते हैं। सिंचाई की सुविधा होने पर लेह, वर्षा से 2 सप्ताह पहले लगाकर भी इस प्रकार की बुवाई कर सकते हैं। अगर सिंचाई की सुविधा नहीं है तो वर्षा आरंभ होने पर ही खेत में बुवाई करते हैं। छिटकवाँ विधि से 100-120 किग्रा बीज व पंक्तियों में 20 सेमी. की दूरी पर बने से 60-80 किग्रा बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है। प्रारंभ में खेत में 1 सेमी. पानी खड़ा रखते हैं लेकिन बाद में जैसे-जैसे फसल बढ़ती है खेत में पानी 2-5 सेमी. खड़ा रख सकते हैं।

धान की रोपाई एवं बुवाई का समय-

उत्तरी भारत में अधिकतर जून-जुलाई में धान की रोपाई होती है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की फसल बोने और काटने के लिये समयानुसार धान की फसलों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है –


धान के बारे में जानकारी


अपने देश में वर्षाकालीन फसल अधिकतर क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस समय में अधिकतर लंबी अवधि वाली जातियां उगाई जाती हैं। अगेती (ओटम या ओस) फसल की खेती; ऊंची भूमियों पर की जाती है। इस फसल में 90-110 दिन की अवधि वाली जातियाँ उगाते हैं। धान की ग्रीष्मकालीन फसल कुछ क्षेत्रों में ही ऊगा पाते हैं। शीघ्र तैयार होने वाली जातियाँ इस समय उगाते हैं।



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खाद एवं उर्वरक की मात्रा-

● गोबर की खाद या कम्पोस्ट- धान की फसल में 5 से 10 टन/ हेक्टेयर तक अच्छी सड़ी गोबर खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से महंगे उर्वरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है। हर वर्ष इसकी पर्याप्त उपलब्धता न होने पर कम से कम एक वर्ष के अंतर से इसका उपयोग करना बहुत लाभप्रद होता है।


● हरी खाद का उपयोग – रोपाई वाली धान में हरी खात के उपयोग में सरलता होती है, क्योंकि मचौआ करते समय इसे मिट्टी में आसानी से बिना अतिरिक्त व्यय के मिलाया जा सकता है। हरी खाद के लिए सनई का लगभग 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहले बोना चाहिए। लगभग एक महीने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचौआ करते समय मिला देना चाहिए। यह 3-4 दिनों में सड़ जाती है। ऐसा करने से लगभग 50-60 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर उर्वरकों की बचत होगी।


उर्वरक – बोनी जातियों के लिए 120 किग्रा, नाइट्रोजन, 60 kg फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर, किग्रा देशी जातियों के लिए 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर।


• पर्वतीय क्षेत्रों के लिए 80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस व 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर देना चाहिए।


• नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी बार लेह लगाते समय एकसमान बिखेरकर ऊपरी 15 सेमी मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये। नाइट्रोजन की शेष मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिये, पहली टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 20-30दिन बाद, दूसरी टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 50-60 दिन बाद करनी चाहिये। किसी भी अवस्था में खाद डालते समय खेत में अधिक पानी खड़ा नहीं होना चाहिए।


यदि फसल में जस्ते की कमी के लक्षण पिछले वर्ष देखे गये हैं तो उन खेतों में 25-30 किग्रा जिंक सल्फेट बुवाई के समय ही दें। यदि ऐसा नहीं है तो कमी के उपरोक्त लक्षण दिखाई देने पर 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2 किग्रा यूरिया को 100 लीटर पानी में घोलकर (आवश्यकतानुसार इसी अनुपात में बनाकर) एक-एक सप्ताह बाद 2-3 बार लगातार छिड़काव करें। इस बात का ध्यान रखा जाये कि धान में जैसे ही फसल में लोहे की कमी के लक्षण देखे गये हैं तो फैरस सल्फेट के 1.0% घोल का छिड़काव एक सप्ताह के अन्तर पर 2-3 बार करें।

नीली हरी एलगी (काई) का धान के उत्पादन में महत्व-

नीले हरी एलगी की अधिकतर जातियां नत्रजन का मृदा में एकत्रीकरण करती हैं। नीली हरी एलगी की एक जाति टोलीपोथ्रिक्स टन्यूइस प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 20-30 किग्रा नत्रजन तक इकट्ठी कर सकती है। अतः इस एलगी से धान की उपज बढ़ाने के लिये विभिन्न उर्वरकों को इसके साथ खेत में देते हुए उपज पर प्रभाव देखा और पाया गया है-


(i) अकार्बनिक उर्वरक एलगी के साथ खेत में दिए जा सकते हैं। एलगी के नत्रजन एकत्रीकरण पर इन उर्वरकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।


(ii) धान की फसल में एलगी के साथ 80 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर उर्वरक देने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है। अतः निष्कर्ष निकलता है कि एलगी के द्वारा 40




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Comments Anjana Toppo on 08-02-2022

Papita k bare me jankari

Chan ki 5 kisme on 11-08-2020

Chan ki 5 kisme





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