भारत में सर्वप्रथम वन नीति 1894 में लागु स्वतंत्रता के बाद प्रथम वन नीति 1952 को लागू की गई इसी 1952 की वन नीति में संशोधन करके 1988 में राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई जिसके अनुसार 33% भू भाग पर वन होना अनिवार्य है 1910 में जोधपुर रियासत के द्वारा वनों के संरक्षण संबंधी कानून बनाए गए
राजस्थान सरकार द्वारा 1953 में वन अधिनियम को लागू किया गया 1953 में जब अधिनियम वन अधिनियम को लागू किया गया उस समय राज्य के कुल 13 प्रतिशत भू भाग पर वन है राजस्थान सरकार के द्वारा राज्य की पहली वन नीति 2010 में लागू की गई वर्तमान समय में राजस्थान की कुल 9.57 प्रतिशत यानि 32736.64 वर्ग किमी क्षेत्र पर वन पाए जाते हैं जो कि देश के कुल वन क्षेत्र का 4.25 % है
वनों की दृष्टि से राजस्थान का देश में 9 वां स्थान है राजस्थान में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल के हिसाब से उदयपुर जिले में, सबसे कम चूरु जिले में है जबकि भारत में सबसे अधिक वन मध्यप्रदेश में तथा सबसे कम पंजाब राज्य में मिलते हैं प्रतिशत के आधार पर सबसे ज्यादा वन करौली जिले में मिलते हैं प्रति व्यक्ति सर्वाधिक वन वाला जिला सिरोही है सबसे कम वन चुरू है
पलाश के वृक्ष को जंगल की ज्वाला कहा जाता है। राजस्थान में सर्वाधिक धोकड़ा का वृक्ष पाया जाता है।राज्य पुष्प रोहिड़ा का फूल है तथा रेगिस्तान का सागवान रोहिड़ा को कहते है
राज्य वृक्ष खेजड़ी [ रेगिस्तान का कल्पवृक्ष ] है खेजड़ी को बचाने के लिए 1730 में जोधपुर में अमृतादेवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन चलाया था जिसमे विश्नोई संप्रदाय के 363 लोग शहीद हो गए थे। दशहरे पर खेजड़ी की पूजा की जाती है।
खैर के वृक्ष से कत्था कथौडी जाति के लोग बनाते हैं बाड़मेर का चौहटन क्षेत्र गोंद के लिए प्रसिद्द है आँवल वृक्ष की छाल चमड़ा साफ करने के काम आता है माचिस उद्योग अलवर है सवाई माधोपुर में खस की घास की जड़ो से इत्र बनाया जाता है। देश की 20% बंजर भूमि राजस्थान में है।
इस वनस्पति से आशय भौतिक दशाओं अथवा परिस्थितियों में स्वतः उगने वाले वनस्पति से है जिसमें पेड़-पौधे, झाड़ियां, घास आदि सम्मिलित होते हैं अर्थात किसी भी भौगोलिक प्रदेश में अथवा भूमि सतह पर वनस्पति का वहां आवरण जिसके उगने, विकसित होने में मानव की कोई भूमिका नहीं होती है। उसे प्राकृतिक वनस्पति कहा जाता है।
Forest ( वन )
प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत वृक्ष, कटीली झाड़ियां, तथा घांसे आदि सम्मिलित हैं। पौधों की विशेष जाति जिसमें वृक्षों का आधिक्य हो और अन्य पौधे उनके छाया में विकसित होते हैं वन कहा जाता है।
12 मई 1952 ई. की वन नीति के अनुसार कुल क्षेत्र के 33.33 प्रतिशत भाग पर वन होना चाहिए लेकिन राजस्थान में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9.56 प्रतिशत भू भाग पर वन पाए जाते हैं जबकि यह राज्य देश के कुल क्षेत्रफल का 1/10 भाग से अधिक रखता है।
राजस्थान में जापान सरकार की आर्थिक सहायता से राजस्थान वानिकी विकास एवं जैव विविधता परियोजना 1 अप्रैल 2003 से 18 जिलों में प्रारंभ की गई इससे पहले चलाने वाले वाली परियोजना का कार्य 31 मार्च 2008 को पूरा हो गया। राज्य में वानिकी विकास और जैव विविधता परियोजना 1 जुलाई 2010 पूर्ण हो चुकी है। राजस्थान में नवीन वन नीति-2010 को 17 फरवरी 2010 को कैबिनेट ने मंजूरी दी।
Echo Tourism Policy ( इको ट्यूरिज्म पॉलिसी )
राजस्थान में आरक्षित वन क्षेत्रो के बाहर व क्षेत्र में पारिस्थितिकीय पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु वन विभाग इको-टूरिज्म पॉलिसी तैयार की गई है। राजस्थान में वानिकी अनुसंधान केंद्र और जयपुर, (गोविंदपुरा) जयपुर एवं बांकी (सिसारमा, उदयपुर) में स्थित है।
वनों को तीन भागों में बांटा गया है
1. आरक्षित वन क्षेत्र /संरक्षित वन क्षेत्र ( Reserve forest area )
यह राजस्थान में कुल वन क्षेत्र के 38.02% पर स्थित है ये वन सर्वाधिक उदयपुर जिले में पाए जाते हैं राज्य सरकार का अधिकार होता है इन वनों से लकड़ी काटना पशु चारण पूरी तरह से वर्जित है जलवायु की दृष्टि से राजस्थान में अति महत्वपूर्ण है
2. रक्षित वन/ सुरक्षित वन ( Protected forest )
यह राज्य की कुल वन क्षेत्र के 53.48% भू भाग पर है सर्वाधिक बारां जिले में हैं इन वनों पर भी सरकार का नियंत्रण होता है लेकिन सरकार की आज्ञा के आधार पर सीमित क्षेत्र में लकड़ी काटने पशु चराने का काम किया जाता है
3. अवर्गीकृत वन ( Unclassified forest )
यह वन राज्य की कुल क्षेत्र का 8. 50% भू-भाग पर स्थित है सर्वाधिक बीकानेर जिले में पाए जाते हैं इन वनों में लकड़ी काटने का प्रतिबंध नहीं है लेकिन लकड़ी काटने के लिए उन्होंने सरकार की अनुमति जरूरी है
1. शुष्क सागवान वन ( Dry Sagwan forest )
यह वन राजस्थान में मुख्य रूप से उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, झालावाड़, बारा, चितौड़ और प्रतापगढ़ जिले में पाए जाते हैं यह वन कूल वन क्षेत्र के 6.87 प्रतिशत अर्थात 7% भू भाग पर पाए जाते हैं इन वनों के क्षेत्र में वर्षा 70 से 110 सेमी तक होती है इन वनों की ऊंचाई 10 से 21 मीटर तक मिलती है
इन वनों में मुख्य रूप से आम सांगवान महुआ बांस बरगद आदि के पेड़ मिलते हैं प्रतापगढ़ में ये वन सीतामाता अभयारण्य में सर्वाधिक मिलते हैं
2. उष्णकटिबंधीय शुष्क धोंक वन ( Tropical Dry Dhonk Forest )
यह वन मुख्य रूप से अर्ध सूचक अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश के क्षेत्रों में मिलते हैं यह राज्य के कुल वन क्षेत्र का 58.19 % क्षेत्र में स्थित है इन वनों में मुख्य रूप से कांटेदार वृक्ष पाए जाते हैं इनमें मिलने वाले वृक्ष खेजड़ी पेड़, रोहिड़ा, आक इत्यादि मिलते हैं वन क्षेत्रों में वर्षा 25 से 50 सेमी तक होती है
3. उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन ( Tropical Thorn forest )
यह वन मुख्य रुप से शुष्क जलवायु प्रदेशों में मिलते हैं यह वन कुल वन क्षेत्र के 6.23% पर है इन वनो मे मुख्य रुप से मरुदभिद वनस्पति पाई जाती है इन वनों में कुल वर्षा 25 सेमी तक होती है
4. उष्ण कटिबंधीय मिश्रित पतझड़ वन ( Tropical mixed autumn forest )
ये वन राजस्थान के पूर्वी मैदानी प्रदेशो में अधिक संख्या में पाए जाते हैं जो कि राज्य के कुल वन क्षेत्र का 28.42% है इन वनो में मुख्य रुप से शीशम साल सागवान पिपल सहतूत इत्यादि प्रमुख रुप से मिलते हैं इनमे वर्षा 50 से 80 सेमी
5. अर्ध आर्द्र सदाबहार वन ( Semi-humid evergreen forest )
ये वन राजस्थान मे सिरोही के माउंट आबू क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई पर मिलते हैं जहां पर वर्षा 150 सेमी तक होती है इन वनो मे जामुन बरगद आम के वृक्ष है
प्रश्न-1.. प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय है ?
उत्तर- किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में वनस्पति का वह आवरण जिसके उगने बढ़ने और विकसित होने में मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत वृक्षों और झाड़ियों घास और लताओं के विभिन्न समूह में शामिल है
प्रश्न-2.. प्राकृतिक वनस्पति को प्रभावित करने वाले कारक हैं ?
उत्तर- किसी भी क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति क्षेत्र में विद्यमान धरातलीय स्वरूप ढाल की दिशा व स्थिति समुंद्र तल से उचाई मिट्टी की दशा तापमान वर्षा सापेक्षिक आद्रता से प्रभावित होती है प्राकृतिक वनस्पति पर्वतीय वर्षा और तापमान का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है
प्रश्न-3.. राजस्थान की प्राकृतिक वनस्पति को कितने भागों में बांटा जाता है ?
उत्तर-राजस्थान की प्राकृतिक वनस्पति को दो भागों में बांटा जाता है
1- शुष्क वनस्पती ( Dry vegetation )
2- अर्द्ध शुष्क तथा आद्र वनस्पति ( Semi arid and wet vegetation )
Dry vegetation ( शुष्क वनस्पति ) – हिरा जी के पश्चिमी भाग में पाई जाती है इस क्षेत्र की वनस्पति में कांटेदार वृक्ष झाड़ियां और घासों की प्रधानता है यह आकार में कम ऊंची लंबी जड़े छोटी पत्ती और झाड़ीनुमा होती है क्षेत्र में मरूद्भिद वनस्पति पाई जाती है जिसमे कूमट, खेजड़ी,कैर, रोहिडा जाल (पीलू )हिंगोटा कंकेरी वृक्ष ,फोग आंकड़ा ,खीपरा लांणा इत्यादि कटीली झाड़ियां और सेवर धामण औ मूरात पाई जाती है
Semi arid and wet vegetation ( अर्द्ध शुष्क तथा आर्द्र वनस्पति ) – यह राज्य में पूर्वी और दक्षिणी भागों में विद्यमान है यहां वार्षिक वर्षा का औसत 50 सेमी से 80 सेमी होने समतल धरातल और उपजाऊ मिट्टी या होने के कारण सघन वनस्पति पाई जाती है अरावली पर्वत श्रंखला के ढालो और नदी घाटियों में अधिक घनी प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है इस वनस्पति में लंबे वृक्ष चौड़ी पत्ती वह सघनता पाई जाती है
प्रश्न- 4 . भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान को कितने पारिस्थितिक तंत्रों में विभक्त किया जा सकता है ?
उत्तर- राजस्थान जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध प्रांत है राजस्थान में लगभग 2500 प्रजातियों के पेड़-पौधे 450 प्रजातियों के पक्षी 50 प्रजातियों के स्तनपाई 58 प्रकार के सरीसर्प 12 प्रजातियों के उभयचर पाए जाते हैं इसके अलावा सैकड़ों प्रकार के कीट पतंगे तितलियां सूक्ष्मजीव और पादप पाए जाते हैं भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान को चार पारिस्थितिक तंत्र में व्यक्त किया जा सकता है
Maru Ecosystem ( मरू पारिस्थितिक बेसिन )
राजस्थान की पहचान थार मरुस्थल के इस भाग में वर्षा बहुत कम होती है अतः यहां पेड़ पौधों में कांटेदार छोटे वृक्ष और कटीली झाड़ियां पाई जाती है और ऐसे जीव जंतुओं की बहुलता होती है जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है तथा जिन्हें विचरण के लिए खुले मैदानों की जरूरत होती है
क्षेत्र में 22 प्रकार के स्तनपाई पाए जाते हैं जिनमें चिंकारा काला हिरण मरु बिल्ली लोमड़ी भेड़िया खरगोश नेवला आदि प्रमुख चिंकारा और ऊँट हमारा राज्य पशु हैं पक्षी वर्ग में लगभग 120 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें गोडावण प्रमुख है जो वर्तमान में संकटा पत्र है तथा हमारे राज्य का राज्य पक्षी है
इसके अलावा यहां मोर सेंड ग्राउज, तीतर स्पेन गोरिया डेमोसिल क्रेन( कुरंजा) पक्षी पाए जाते हैं लगभग 58 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें पाटा गोह सैंडफिश सांडा आदि प्रमुख है । इस तंत्र को तीन उपक्षेत्रों में बांटा गया है
Aravali Mountain Ecological Zone ( अरावली पर्वत पारिस्थितिक प्रदेश )
जैव विविधता की दृष्टि से यह क्षेत्र काफी समृद्ध है इस क्षेत्र में धौक,कैर,चुरैल,सालर,आम,महुआ,बॉस आदि प्रजाति के वृक्ष और बघेरा, रीछ,जरख, चोसिंगा, काला हिरण चीतल सांभर जंगली सूअर भेड़िया उड़न गिलहरी लोमड़ी आदी वन्य जीव पाए जाते हैं इस पारिस्थितिक तंत्र को निम्न भागों में बांटा जा सकता है
Eastern plains ecosystem ( पूर्वी मैदानी पारिस्थितिक तंत्र )
यह क्षेत्र अरावली पर्वत के पूर्वी भाग में स्थित है केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान इसी क्षेत्र में स्थित है जहां लगभग 370 प्रकार के पक्षी और 130 प्रकार के पादप पाए जाते हैं इतनी समृद्ध जैव विविधता के कारण ही इस राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को द्वारा विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित किया गया है पूर्वी मैदानी पारिस्थितिक तंत्र को निम्न भागों में बांटा जा सकता है
South eastern ecosystem ( दक्षिणी पूर्वी पारिस्थितिक तंत्र )
इस पारिस्थितिक तंत्र में मुख्यतया हाडोती और विंध्याचल पर्वत का पठारी क्षेत्र सम्मिलित है यहां के लिए जैव विविधता पाई जाती है मगरमच्छ घड़ियाल डॉल्फिन कछुआ विविध प्रकार की मछलियां केकड़े आदि यहां का आकर्षण है इस तंत्र के निम्न दो विभाग हैं
प्रश्न-5. कृषि वानिकी किसे कहते हैं ?
उत्तर- जब कृषि के साथ वृक्षारोपण किया जाता है तो उसे कृषि वानिकी कहते हैं
प्रश्न-6. कृषि वानिकी के लिए किन भूमियों का चयन किया जाता है ?
उत्तर- खेतों की मेड़ और खेतों के बीच में आए हुए खड्डे समतल भूमि और पथरीली भूमि का उपयोग वृक्षारोपण के लिए किया जाता है
प्रश्न-7. कृषि वानिकी का क्या लाभ है ?
उत्तर-3..अकाल की स्थिति में किसान को कुछ आय प्राप्त हो जाती है जब वृक्ष विकसित हो जाते हैं तो लकड़ी बेचकर लाभ अर्जित किया जा सकता है शुष्क क्षेत्रों में बाजरे आदि के साथ खेजडी भी लगाने से खाद की भी कम आवश्यकता होती है खेजड़ी की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया होते हैं जो की भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाते हैं
प्रश्न-8 सामाजिक वानिकी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- सामाजिक वानिकी वन विकास कि वह प्रणाली है जिसके द्वारा समुदाय की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वृक्षारोपण के माध्यम से ईंधन इमारती लकड़ी चारे की आपूर्ति वायु अपरदन से कृषि भूमि का बचाव एवं मनोरंजन स्थलों का विकास किया जाता है इसके अंतर्गत बंजर भूमि परती भूमि नहरो सड़कों और रेल लाइनों के दोनों और खाली भूमि में वृक्षारोपण किया जाता है
प्रश्न-9. राजस्थान में वन विकास के लिए स्थापित किन्हीं दो संस्थाओं का वर्णन कीजिए ?
उत्तर- राजस्थान में वन विकास के लिए “”आफरी- काजरी””संस्थाएं स्थापित की गई है
Afri Institute ( आफरी संस्था )
मरू क्षेत्र अनुसंधान संस्थान के अंग्रेजी नाम एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रत्येक शब्द के पहले अक्षर ए.एफ.आर.आई.को मिलाने से आफरी शब्द बना है इस संस्था का कार्य मरुस्थलीय क्षेत्रों में वन विकास करना है संस्था ने अनेक किस्म के वृक्ष की पहचान मरू क्षेत्र में वन विकास के लिए की है भारत सरकार द्वारा स्थापित यह संस्था जोधपुर में स्थित है इस संस्था की स्थापना 1985 में की गई थी
Kajari institute ( काजरी संस्था )
केंद्रीय मरु अनुसंधान संस्थान के अंग्रेजी नाम सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रत्येक शब्द के पहले अक्षर सी.ए.जेड.आर. आई.को मिलाने से काजरी शब्द बना है इसका मुख्यालय जोधपुर में स्थित है इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा 1952 में मरुस्थल वनारोपण शोध केंद्र के रूप में हुई थी 1957 में इसका नाम केंद्रीय मरू अनुसंधान संस्थान कर दिया गया इसके अंग्रेजी नाम को संक्षिप्त करके काजरी कहा जाता है यह संस्था मरुस्थल में पेड़ पौधे चारागाह पशु भूमि मृदा और जल संरक्षण का कार्य करती है इस संस्था ने बेर आंवला खेजड़ी जोजोबा मरुस्थली झाड़ियों घासों पर अच्छा कार्य किया है काजरी का गठन ऑस्ट्रिया और यूनेस्को की सहायता से वर्ष
1959 में भारत केंद्र सरकार द्वारा किया गया काजरी द्वारा चार मृदा संरक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं
1-बिछवाल( बीकानेर)
2-भोपालगढ़ (जोधपुर)
3- चांदन गांव (जैसलमेर)
4- गाठन- पंचमहल( गुजरात)
काजरी ने देश में पांच उप केंद्र स्थापित किए हैं
1-बीकानेर
2- जैसलमेर
3- पाली
4- भुज (गुजरात )
5-लद्दाख (जम्मू कश्मीर)
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