Rajasthan Me Sati Pratha राजस्थान में सती प्रथा

राजस्थान में सती प्रथा



Pradeep Chawla on 17-10-2018

राजस्थान की कुप्रथाओं में सती प्रथा का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। पुराणों एवं धर्म निबन्धों में इस प्रथा का उल्लेख मिलता है। इस प्रथा के अनुसार मृत पति से साथ उसकी पत्नी जीवित जल जाती है। इस प्रथा को "सहगमन' भी कहते है। शिलालेखों एवं काव्य ग्रन्थों में अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति रखने वाली पत्नी के लिए भी सती शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार सती होने वाली महिला के कार्य को सत्यव्रत कहा गया है।

उत्तर प्राचीनकालीन तथा मध्यकालीन अभिलेखों तथा साहित्यिक ग्रन्थों में सती प्रथा के कुछ उदाहरण प्राप्त होते हैं। सेनापति गोपराज ने हूणों के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। इस प्रकार उनकी पत्नी 510 ई. में सती हो गई थी। राजपूत सामन्त राणुक की पत्नी संपल देवी उनके साथा ही सती हो गई थी। इस बात की पुष्टि घटियाला अभिलेख (1810 ई.) से होती है। राजस्थान के प्रसिद्ध शासकों जैसे प्रताप, मालदेव, बीका, राजा जसवन्त सिंह, मुकुन्द सिंह, भीमसिंह एवं जयसिंह आदि के मरने पर उनके साथ उनकी कई रानियाँ, उप-पत्नियाँ, श्वासनें एवं दासियाँ सती हो गई थी। 1680 ई. में मेड़ता के युद्ध के बाद चित्तोड़ के तीन शासकों के अवसर पर साधारण परिवार की हजारों स्रियां सती हो गई थी। स्थानीय सती स्मारक स्तम्भों से इस बात की पुष्टि होती है।


प्रारम्भ में जब तक "सुहागन' का महत्तव था, विकल्प के रुप में यह प्रथा प्रचलित रही, परन्तु जब युद्ध की सम्भावनाएँ बढ़ने लगी, त्योंही पतियों की मृत्यु होने पर युद्धोतर यातनाओं से महिलाओं को बचाने के लिए सती प्रथा ही एक मात्र विकल्प बचा था। आक्रमणों के अवसरों पर बन्दी बनाने, जलील करने या धर्म परिवर्तन की सम्भावना से भयभीत होकर भी अनेक स्रियाँ सती प्रथा का अनुसरण करती थी। धीरे-धीरे स्वार्थी तथा प्रतिष्ठा संबंधी तत्वों ने भी इस प्रथा को बढ़ावा दिया।


राजघराने की महिलाएँ सिर पर पगड़ी पहनकर, हाथ में खं लेकर घोड़े या पालकी में बैठकर अपने पतियों की सवारी के साथ महलों के मुख्य द्वारों एवं प्रमुख मार्गों से गुजरती थी। वे मार्ग में आभूषणों को उतारकर बाँटती हुई जाती थी। अजीतोदेय में वर्णित है कि जब जसवन्त सिंह की मृत्यु की सूचना जोधपुर पहुँची तो उनकी पत्नियों ने स्नान करने के बाद अपने को फूलों तथा आभूषणों से सजाया तथा पालकी में बैठकर गाजे-बाजे व भजन मण्डियों के साथ मण्डोर के राजकीय शमशान की ओर प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचने के बाद उन्होंने अपने पति की पगड़ियों को अपनी गोद में रखा व चिता में प्रवेश कर सती हो गई।


एक ओर रुढिवादी तत्वों ने सती प्रथा का समर्थन किया है, तो दूसरी ओर कुछ शास्रों, भाष्यों एवं जैन विद्वानों ने इस प्रथा को पाप तथा आत्महत्या की संज्ञा देते हुए इसका विरोध किया है। भाग्यवश राजाराम मोहनराय के प्रयासों से बैन्टिक ने एक कठोर कानून बनाकर सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित कर दिया। जिसके कारण देश में तथा राजस्थान में इस कुप्रथा का अन्त हो गया। अब भावावेश में ही यदा-कदा सती होने के समाचार पढ़ने को मिलते है।






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Comments Mukesh kumar on 29-11-2022

Rajsthan me pahli sati konthi





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