कुमावत ( Kumawat ) शब्द होने से इसी पर विस्तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्हार समुदाय में कुमावत शब्द की शुरूआत कैसे हुई।
इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्द की सन्धि विच्छेद करने पर पता चलता है ये शब्द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्द वत्स से बना है । वत्स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्य शब्दों पर विचार करते है-
निम्बावत अर्थात निम्बार्काचार्य के शिष्य
रामावत अर्थात रामानन्दाचार्य के शिष्य
शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज
लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज
रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्य या अनुयायी
इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्हार के वत्स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।
कई बन्धु प्रश्न करते है कि कुम्हार शब्द था फिर कुमावत शब्द का प्रयोग क्यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्धु तरक्की कर आगे बढा तो उसने स्वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्लेख है। तो उन बन्धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्य होती थी और वे आवश्यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्धु ने कुमावत शब्द का प्रयोग शुरू किया।
कुछ बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्य गीतों की रचनाओं से प्रसन्न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।
भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।
लेकिन कुमावत और कुम्हारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्छवाहो परिहारो से करते होंगे।
कुछ बन्धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्हार कुमार कुम्भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्यादा प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्द का कुम्हारों द्वारा प्रयो्ग ज्यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्थान में कुम्हारों के मध्य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्यक्ति ही मटका बनाता है। क्योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्हार जाति के लोग अन्य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्हार को कहा जाता था।
कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।
- उनके लिये यह कहना है कि राजस्थान की संस्कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्त होता है। और कुमार मतलब हिन्दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्कृति पर ध्यान दोगे तो वास्तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्ाा में उच्चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्थान मे कुम्हार शब्द का उच्चारण कुम्हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्ा भारत में कुम्मारी, कुलाल शब्द कुम्हार जाति के लिये प्रयुक्त होता है।
प्रजापत और प्रजापति शब्द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्थानी भाषा में पति का उच्चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्मीपति सिंघानिया का लक्ष्मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्वर सृष्टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्भकार मिट्टि के कणों से भिन्न भिन्न रचनाओं का सृजन करता है।
कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्तर में अन्तर होना ही मूल कारण है। राजस्थान में कुम्हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-
मारू - अर्थात मरू प्रदेश के
खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्योंकि उस समय प्रति हेक्टेयर उत्पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।
बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।
पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्हारों को कहा जाता थ्ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।
जटिया- ये अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।
रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्थानीय कुम्हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्ता नहीं करते थे।
मारू कुम्हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्तर अन्य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्हार और ब्राहमण जाति ही करती है।
पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्ता करते थे कि सुबह दुल्हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्या के क्षेत्र को स्थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्ता करते थे। परन्तु आज आवागमन के उन्नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।
Devatwal ki kuldevi konci
Shimmer gotr ki kuldevi konsi h कलवासना gotr ki kuldevi konsi
Bagore gotra ki kuldevi ka name Rajsthan me kaha hai?, Kitani bar puchaa hai maine, malum hai kya, pl. Btaey
Godela gotra ki kuldeevi kon
Marwal goter ki kul devi konsi h kha per h
भोभरिया गौत्र की कुलदेवी कौन सी माता है ?
चंदौरा गौत्र की कुलदेवी कौन है
ratan lal rav k kuldevta kon h
Rajput gotra kind bkuldevi ka name kya h
Chapoola ki kul Devi kaon hai .uska esthan kaha hai
Sir aapne puri jankari nhi di h pls puri jankari de kumawat smaj ke bare me ho ske to
Piloiya gotra ki kuldevi
my gotra marwal how is my koul devi
Bagore gotra ki kuldevi name sthal Rajasthan me kaha hai ?
सिरसवा गोत्र की कुलदेवी कौन है।
Karagwal kul ki kuldevi koun hai
मां मारू कुमावत गोत्र की कुलदेवी का स्थान और कुलदेवी का नाम
ये इतिहास जिसने भी लिखा है । बिल्कुल ग़लत लिखा है । कुमावत और प्रजापति दो अलग अलग जातियां है । इसका प्रमाणिक इतिहास मेरे पास है।
कृपया मुण्डेल गौत्र कि कुलदेवी और उनका स्थान बतावे
छापरवाल गोत्र की कुलदेवी कुंण हैं
रोटागण मारू कुमावत की कुलदेवी
Kabaddi ki Kuldevi ka
Dhamaniya ke Kuldevi Kon se hi
Kubawat kuldevi
Kar gval ki kuldevi kon h
Karega mi kul ki devi kA name bataye plz
दम्बीवाल गौत्र की कूल देवी कौनसी हैं और कहाँ पर स्थित है
Khatuwal vansh ki kul devi kon hai or kha hai
गोत्र सथोड की कुल देवी कोन सी है
Mandheniya ki kuil DeWi kon he
खाटूवाल गौत्र की कुलदेवी कौनसी है कृपया जानकारी देने का कष्ट करें
मानधनिया कुम्हारों की कुलदेवी कोनसी है और इनके मंदिर कहा पे है।
Gudiya ki kul devi kon ha
बारावाल गोत्र की कुल देवी बताओ प्लीज
Kumawat Rahoriya ki kul Devi konsi h
MUNNA LAL SIHOTA
KUMHAR SAMAZ KI GOTRA SIHOTA KI KULDEVI KA ITIHAS
बालौदिया गौत्र की कूल देवी कहा है
सुडा गोत्र की कुल देवी कोनसी हे
देवतवालो की कुलदेवी
मरमट गोत्र की कुलदेवता कोनसी है
Maharashtra Ke Kardiwal / Karodiwal गोत्र की कुलदेवी कौन है
Behra gotra ki kuldevi ka nam or aderss
Sirohiya gotra ki kuldevi konsi h?
Kul devi
भाई महाराष्ट्रमें कुमावतोमै बगड़ाने गोत्र है।
उनकी कुलदेवी अजमेर ,राजस्तान मैं घिराडी देवी के नाम से जानते है ।लेकिन google youtube और google map पे भी देवीके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
Nokhwal bi kumawat m hi aate h nah
कूमावत नागे परीवार का गोञ ओर कूलदैवत कोनसा है
Jai ho Prajapati
Kumawat me porwal Kon
Sir thanwla gav ki sirsva priwar ki kuldevi konsi h or address... Or bhat konse h
कुमावत समाज की सामरिया गोत्र की कुल देवी और भैरू महाराज कहाँ है
Hum anavde kul de hai hamara gotr aur kuldevi konsi hai uske bare me bataye plz
Chaaparwal gotra ki kooldevi or kahaa h
Jalap gotr ki kuldave Jon ha
Game a Sardewal kumawat ke kuldevi konse haa.
Hamre Sardewal kumawat ke kuldevi konse haa.
jalandara gotra ki kul davi kha
Kumawat nagor gotre ke kul dev v devi kon hai or kha hai
Mujhe kumawat samaj me anawdiya gotr ki kul devi konsi h jan na h
Mujhe kumawat samaj me anawdiya gotr ki kul devi konsi h jan na
Bagore gotra ki kuldevi name stal Rajasthan me kaha ?
Answer please
LIMA BHATI KI KUL DAVI BHADARIYA
Kanderiya gotra ki kuldevi konsi h aur mandir kha pr h
Gorater
Rahoriya gotr ki kull devi Kon h
kumawat samaj ki kul devi name bato
Kumawat kshatriya samaj ki kul devi konsi he or kaha he unka sthana
कुमावत गोत्र -डूंगरवाल की कुल देवी कौन है
कुमावत और कुम्हार अलग-अलग कब हुई इसकी जानकारी मैं चाहता हूं और धुंधारिया गोत्र कहां से निकला
Kumawat kul kitani gotar Hoti l
कुमावत और कुम्हार अलग-अलग कब हुई इसकी जानकारी मैं चाहता हूं और धुंधारिया गोत्र कहां से निकला और इनकी कुलदेवी कौन है और कहां पर है
आईतान कुमार समाज की कुलदेवी का नाम बताओ
हरकियाकुमार.की.कुल.देवी.कौन.है
Kumawat Dhundhariyan Gotra ki kuldevi kaun hain
KUMARGOTR.KUNDALWAL KULDAV. KONHA
Gedhar gotr ki kuldevi kon hey
maliya gotra ki kuldeyi kon h
कुमावत की लिम्बा गोत्र की कुल देवी कोन हे
Ujjwal gotra ki Kuldevi kaun hai
जोजावर की कुलदेवी कौन सी है
Abe gadhe kuch malum nhi tho likhata kyo hai
Kumawat samaj me pilodiya gotta go kuldevi long hair
Kwadiya gotra ki kuldevi kon h or kaha h
लिम्बा की गोत्र
Dungrwal gotr ke kuldave kha h
Kumawat samaj motawat gotra ki Kuldevi kon h sa or istan kaha hai
Rohdiya kumawat ki nakh kya hai
jailwal gotra ki kuldevi kon h.our kaha Sthith h
कुमावत समाज मे पोरवाल गोत्र भी है क्या
Sarldiwal gotr ki kuldevi Kon h
सोकल गोत्र की कुलदेवी
Kumawat samaj,, khowal gotra ki kuldevi kon h aur mandir kha h
Marmat gotra ki kuldevi konsi he or kha pr he...... Jaldi se btane ki kripa kare.. By ratan Lal Kumawat
Detwal ki kul devi nagnechya devi
Saraswa gatra ki kuladavi kon hai
Kumawat hardiwal gotar ki kuldevi ma kon h
प्रजापति, प्रजापत, कुम्हार, कुम्भकार, ओर कुम्हार से कुमावत का कोई संबंध नही है,व्यर्थ की पंचायत ने करे
Gedhar ki kuldevi kon h
Goyal gotar ki kul davi
Behra
Madniya gotra ki kuldevi kon OR kaha pe hai
Mandniya gotra kikuldevi Jon hai
कुलदेवी
Jinjnodiya gotr ki kul devi kon h
Kumawat samaj me ladva gautra ki kuldevi kaun he
Ramina gotr ki kuldevi kha he
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pilodrya gothar ki kuldevi kon h plz