कुमावत Samaj Ki Kuldevi कुमावत समाज की कुलदेवी

कुमावत समाज की कुलदेवी



Pradeep Chawla on 12-05-2019

मावत ( Kumawat ) शब्‍द होने से इसी पर विस्‍तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्‍हार समुदाय में कुमावत शब्‍द की शुरूआत कैसे हुई।

इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्‍द की स‍न्धि विच्‍छेद करने पर पता चलता है ये शब्‍द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्‍द वत्‍स से बना है । वत्‍स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्‍य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्‍य शब्‍दों पर विचार करते है-

निम्‍बावत अर्थात निम्‍बार्काचार्य के शिष्‍य

रामावत अर्थात रामानन्‍दाचार्य के शिष्‍य

शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज

लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज

रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्‍य या अनुयायी

इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्‍हार के वत्‍स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्‍छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।



कई बन्‍धु प्रश्‍न करते है कि कुम्‍हार शब्‍द था फिर कुमावत शब्‍द का प्रयोग क्‍यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्‍यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्‍धु तरक्‍की कर आगे बढा तो उसने स्‍वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्‍द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्‍यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्‍धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्‍लेख है। तो उन बन्‍धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्‍य होती थी और वे आवश्‍यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्‍धु ने कुमावत शब्‍द का प्रयोग शुरू किया।

कुछ बन्‍धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्‍धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्‍यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्‍य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्‍यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्‍यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्‍थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्‍य गीतों की रचनाओं से प्रसन्‍न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्‍हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्‍यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।

भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्‍यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्‍हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।

लेकिन कुमावत और कुम्‍हारों को इस बात पर ध्‍यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्‍ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्‍यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्‍भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्‍हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्‍ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्‍छवाहो परिहारो से करते होंगे।

कुछ बन्‍धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्‍हार कुमार कुम्‍भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्‍हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्‍यादा प्रत्‍यक्ष सम्‍पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्‍द का कुम्‍हारों द्वारा प्रयो्ग ज्‍यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्‍थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्‍थान में कुम्‍हारों के मध्‍य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्‍यक्ति ही मटका बनाता है। क्‍योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्‍हार जाति के लोग अन्‍य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्‍यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्‍तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्‍हार को कहा जाता था।

कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।

- उनके लिये यह कहना है कि राजस्‍थान की संस्‍कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्‍द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्‍त होता है। और कुमार मतलब हिन्‍दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्‍कृति पर ध्‍यान दोगे तो वास्‍तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्‍ाा में उच्‍चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्‍थान मे कुम्‍हार शब्‍द का उच्‍चारण कुम्‍हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्‍मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्‍ा भारत में कुम्‍मारी, कुलाल शब्‍द कुम्‍हार जाति के लिये प्रयुक्‍त होता है।

प्रजापत और प्रजापति शब्‍द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्‍थानी भाषा में पति का उच्‍चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्‍मीपति सिंघानिया का लक्ष्‍मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्‍थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्‍मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्‍वर सृष्‍टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्‍भकार मिट्टि के कणों से भिन्‍न भिन्‍न रचनाओं का सृजन करता है।

कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्‍हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्‍तर में अन्‍तर होना ही मूल कारण है। राजस्‍थान में कुम्‍हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-

मारू - अर्थात मरू प्रदेश के

खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्‍यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्‍योंकि उस समय प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्‍तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।

बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्‍यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्‍थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्‍हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्‍हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।

पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्‍हारों को कहा जाता थ्‍ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्‍हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।

जटिया- ये अंशकालिक व्‍यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्‍तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्‍यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।

रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्‍थानीय कुम्‍हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्‍ता नहीं करते थे।

मारू कुम्‍हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्‍तर अन्‍य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्‍तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्‍हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्‍थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्‍हार और ब्राहमण जाति ही करती है।

पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्‍ता करते थे कि सुबह दुल्‍हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्‍या के क्षेत्र को स्‍थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्‍ता करते थे। परन्‍तु आज आवागमन के उन्‍नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।


Pradeep Chawla on 12-05-2019

मावत ( Kumawat ) शब्‍द होने से इसी पर विस्‍तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्‍हार समुदाय में कुमावत शब्‍द की शुरूआत कैसे हुई।

इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्‍द की स‍न्धि विच्‍छेद करने पर पता चलता है ये शब्‍द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्‍द वत्‍स से बना है । वत्‍स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्‍य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्‍य शब्‍दों पर विचार करते है-

निम्‍बावत अर्थात निम्‍बार्काचार्य के शिष्‍य

रामावत अर्थात रामानन्‍दाचार्य के शिष्‍य

शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज

लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज

रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्‍य या अनुयायी

इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्‍हार के वत्‍स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्‍छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।



कई बन्‍धु प्रश्‍न करते है कि कुम्‍हार शब्‍द था फिर कुमावत शब्‍द का प्रयोग क्‍यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्‍यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्‍धु तरक्‍की कर आगे बढा तो उसने स्‍वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्‍द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्‍यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्‍धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्‍लेख है। तो उन बन्‍धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्‍य होती थी और वे आवश्‍यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्‍धु ने कुमावत शब्‍द का प्रयोग शुरू किया।

कुछ बन्‍धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्‍धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्‍यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्‍य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्‍यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्‍यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्‍थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्‍य गीतों की रचनाओं से प्रसन्‍न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्‍हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्‍यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।

भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्‍यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्‍हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।

लेकिन कुमावत और कुम्‍हारों को इस बात पर ध्‍यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्‍ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्‍यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्‍भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्‍हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्‍ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्‍छवाहो परिहारो से करते होंगे।

कुछ बन्‍धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्‍हार कुमार कुम्‍भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्‍हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्‍यादा प्रत्‍यक्ष सम्‍पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्‍द का कुम्‍हारों द्वारा प्रयो्ग ज्‍यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्‍थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्‍थान में कुम्‍हारों के मध्‍य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्‍यक्ति ही मटका बनाता है। क्‍योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्‍हार जाति के लोग अन्‍य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्‍यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्‍तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्‍हार को कहा जाता था।

कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।

- उनके लिये यह कहना है कि राजस्‍थान की संस्‍कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्‍द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्‍त होता है। और कुमार मतलब हिन्‍दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्‍कृति पर ध्‍यान दोगे तो वास्‍तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्‍ाा में उच्‍चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्‍थान मे कुम्‍हार शब्‍द का उच्‍चारण कुम्‍हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्‍मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्‍ा भारत में कुम्‍मारी, कुलाल शब्‍द कुम्‍हार जाति के लिये प्रयुक्‍त होता है।

प्रजापत और प्रजापति शब्‍द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्‍थानी भाषा में पति का उच्‍चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्‍मीपति सिंघानिया का लक्ष्‍मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्‍थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्‍मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्‍वर सृष्‍टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्‍भकार मिट्टि के कणों से भिन्‍न भिन्‍न रचनाओं का सृजन करता है।

कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्‍हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्‍तर में अन्‍तर होना ही मूल कारण है। राजस्‍थान में कुम्‍हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-

मारू - अर्थात मरू प्रदेश के

खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्‍यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्‍योंकि उस समय प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्‍तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।

बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्‍यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्‍थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्‍हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्‍हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।

पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्‍हारों को कहा जाता थ्‍ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्‍हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।

जटिया- ये अंशकालिक व्‍यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्‍तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्‍यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।

रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्‍थानीय कुम्‍हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्‍ता नहीं करते थे।

मारू कुम्‍हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्‍तर अन्‍य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्‍तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्‍हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्‍थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्‍हार और ब्राहमण जाति ही करती है।

पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्‍ता करते थे कि सुबह दुल्‍हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्‍या के क्षेत्र को स्‍थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्‍ता करते थे। परन्‍तु आज आवागमन के उन्‍नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Vijay kumawat on 11-04-2024

Sirsawa gotra kuldevi kaha h ji

Naik on 28-12-2023

Bagore gotra ki kuldevi ka name Rajsthan Rajsthan me kaha hai

Rushikesh anil kumavat on 11-12-2023

Pure Kumawat Samaj Ko Maar dalo inhone Pura Hamara aayushya Barbad Kiya Hai Sabke pass galat galat information hai koi bhi NET Information dalta Nahin Jiske pass original information Hai unhone Unka number likhkar WhatsApp kariye Ham Maharashtra se baat karte hain Nasik


Pooja verma on 15-10-2023

Kumawat me nokhwal ki kuldevi ka naam kya h btao ager fake h ye site to time na kharab kro insano ka and block tha site

Kumawat sahab on 10-06-2023

Hawalmahal kisne banaya tha
.....karigar ka kya name hai

Kumawat sahab on 10-06-2023

Marwal ki kul devi khaha hai

Manisha on 23-02-2023

Kisi ko kumwat samaj me ghasoliya gotra ki kuldevi ka pata hai kya


Tejaram on 10-10-2022

Kumawat samaj m pilodiya gottr ki kuldavi kon h



Limba parivar ki kuldevi batao please no. 97554183 on 17-10-2018

Limba pariwar ki kuldevi batao please no. 9755418304

Mukesh on 16-02-2019

Borawar gotra ki kul devi kon he

Mukesh on 16-02-2019

Borawar gotra ki kuldevi kon he
Number 8879318813

Hanuman sokhal on 12-05-2019

Kumawat ka etihas


Kailash kumawat on 12-05-2019

Kumawat samaj me marwar ,morwal,or gender gotra ki kuldevi kaha he

Jagdish on 05-08-2019

kpupra gotta ki kuldevi kha hai

WhatsApp no.9511503519

pappu ram kumawat on 13-10-2019

औसतवाल गोऋ की कुलदेवी कोन ह बताये जी

pappu ram kumawat on 13-10-2019

औसतवाल गोऋ की कुलदेवी कोन ह बताये जी
9521223792

सुरेन्दर on 20-11-2019

सुथोड़ गोऋ की कुलदेवी कोन ह बताये जी

8079013247

Tejaram Kumawat on 26-11-2019

Gendhar gotar ki kuldevi kon


Parmaram on 05-12-2019

Sokal gotta(Kumawat) ki kuldevi?

Gopal kumawat on 23-05-2020

Faltu ki post Mt dal
Kus log eska glt estemal krte h
Kumawat ek alg jati h
63 gotta
Rajput want
Okk
Ye faltu ki post hta dijiega

HARPAL on 19-07-2020

Jalandhara samaj ki kul devi bataye

Yogesh kumawat on 22-07-2020

एक तो तू खटीक ह और तू बताएगा कुमावत राजपूतों का इतिहास साले तेरी तुम सिर्फ हमारे जूते साफ करो और वो कुम्हार,ओर वो कुमावत राजपूत पागल ह जो एक खटीक की बात प्र विश्वास करेंगे जय राजपूताना जय कुमावत


Sujana Ram on 07-08-2020

Vbjhffgh

Sujana Ram on 07-08-2020

Kumawat best

kannu singh kumawat on 25-08-2020

दिमाकदार कुमावम मारू राजपुत है
कोई कुमार कोई न जे तु गलत इतिहास पड़ा रीयोछ
Post Detlt kar dija

भारती on 11-09-2020

क्षत्रीय कुमावत तुनिवाल की कुल देवि कोनसी हे

ARUN KUMAWAT ADVOCATE on 02-12-2020

बेकार की पोस्ट। अज्ञानी है ये

kumawat on 08-01-2021

kumawat or kumar is different ok I think you are understand

HAIUUMAN RAm on 07-02-2021

घटेलवाल जाती कुम्हारो में है इसकी कुलदेवी कोनेसी है

Umesh on 23-02-2021

Nuiya gotra ki kuldevi batayen


Mananiya gottar on 27-02-2021

Mananiya gottar

deepak on 04-04-2021

kumawat samaj me adaniya gotra ke mata ji kon he

Rameshwar tolaram prajapati on 30-04-2021

Jo mati bartan banata hai wohi khumbhar hai fhir bad me khonsa bhi vyapar kare to wo khumbhar he rahega

Shaitan Kumawat on 14-06-2021

बालोदिया की कुलदेवी कहां है

Kumawat ki kuldevi kon h on 26-06-2021

Kumawat ki kuldevi kon h

Parmanand p on 02-07-2021

Singatiya gotr ki koldevi

Mittal sarmaiya on 08-07-2021

Sarmaiya gotar ki jaankarr chahiye

Om prakash on 14-07-2021

बोरावड़ गोतर कि कुलदैवी बताए 9929908535

Pratap ram on 16-07-2021

Kumawat jati kaha tak he only bhart me he ya or bhi kai deso me he or hamare kumawat ki kuldevi kon he Itna batane ki karpa kre
Mobile nambr 8696155824

दुष्यंत on 24-07-2021

हमारी गोत्र सिंदड़ है हमारी कुल देवी कोनसी किरपा कर बताईये


विजय on 20-08-2021

गलत ओर घटीया जानकारी

sohankumawat678@gmail.com on 22-08-2021

Tu batayega hame kumhar ham maru rajput h tere jaise jutiya saaf karte phirte h pahle apna dna check karwao baad me apna khud ka itihaas likh dena

Naik on 06-09-2021

Bagore gotra ki kuldevi ka name photo batao please

NAGRAJ on 07-09-2021

KUMAWAT KE BARE ME GALAT LIKHA HAI. SANWAT 1213 ME JAISALMER-RAJASTHAN ME RAJPUTO SE ALAG HUYE.RAJPUTO ME VIDHAWA VIVAH SHURU KARANE WALE KUMAWAT KAHLAYE.

Ashok kumawat pilodiya on 19-09-2021

Kumawat samaj pilodiya parivar ki kuldevi kahan hai aur kis jagah main ashok kumawat pushpushk mobile numbe9460351669

Prakash Prajapat on 24-10-2021

Jalandhar gotra ki kuldevi kon hai..?

Madan lal mandavara on 22-11-2021

Mandavara kumaharo ki kuldevi batao

Dharmendra on 24-11-2021

Kumawat udaywal ki kuldevi kaha hai

Kailash mowar on 17-12-2021

Marwar Parivar ki kuldevi kahan per hai

Vikash Kumawat on 23-01-2022

श्री कुमावात क्षत्रिय समाज संघ_ऑल
क्षत्रिय कुमावत कौन? क्या? आवो जाने....
यह समाज देश के सभी भागो मे निवास करता है हर क्षेत्र मे इसको अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे कुमावत, कुंम्भावत,खेतड़, चेजारा कुमावत,मारु,नाइक, बर्मन इत्यादि ।
इनमे सबसे ज्यादा कुमावत सब्द का उपयोग किया जाता है । इस समाज का उद्भव 1316 ई. मे जैसलमेर रियासत के भाटी राजवंशि संत श्री गरवा जी से है जिन्होंने राजपूत समाज मे नाता प्रथा शुरू कर एक अलग समाज का प्रारम्भ किया ।। (कुंबाबत) इतिहास न केवल गौरवशाली है अपितु शौर्य गाथाओं से पटा पड़ा है जिसका उल्लेख श्री हनुमानदान चंडीसा ने अपनी पुस्तक "मारू कुंबार" में किया है। श्री चंडीसा का परिचय उस समाज से है जो राजपूत एवं कुमावत समाज की वंशावली लिखने का कार्य करते रहे हैं। कुमावत समाज के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए ‘श्री चंडीसा ने लिखा है कि जैसलमेर के महान् संत श्री गरवा जी जोकि एक भाटी राजपूत थे, ने जैसलमेर के राजा रावल केहर द्वितीय के काल में विक्रम संवत् 1316 वैशाख सुदी 9 को राजपूत जाति में विधवा विवाह (नाता व्यवस्था) प्रचलित करके एक नई जाति बनायी। जिसमें 9 (नौ) राजपूती गोत्रें के 62 राजपूत (अलग-अलग भागों से आये हुए) शामिल हुए। इसी आधार पर इस जाति की 62 गौत्रें बनी जिसका वर्णन नीचे किया गया है। विधवा विवाह चूंकि उस समय राजपूत समाज में प्रचलित नहीं था इसलिए श्री गरवा जी महाराज ने विधवा लड़कियों का विवाह करके उन्हें एक नया सधवा जीवन दिया जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। श्री गरवा जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए इस कार्य के उपरांत बैठक ने जाति के नामकरण के लिए शुभ शुक्न (मुहूर्त) हेतु गाँव से बाहर प्रस्थान किया गया। इस समुदाय को गाँव से बाहर सर्वप्रथम एक बावत कँवर नाम की एक भाटी राजपूत कन्या पानी का मटका लाते हुए दिखी। जिसे सभी ने एक शुभ शुगन माना। इसी आधार पर श्री गरवाजी ने जाति के दो नाम सुझाए - 1. संस्कृत में मटके को कुंभ तथा लाने वाली कन्या का नाम बावत को जोड़कर नाम रखा गया कुंबाबत (कुम्भ+बाबत) राजपूत (जैसे कि सुमदाय की तरफ कुंभ आ रहा था इसलिए इसका एक रूप कुम्भ+ आवत » कुमावत भी रखा गया) 2. इस जाति का दूसरा नाम मारू कुंबार भी दिया गया, राजस्थानी में मारू का अर्थ होता है राजपूत तथा कुंभ गाँव के बाहर मिला था इसलिए कुंभ+बाहर 3½ कुंबार। इस लिए इस जाति के दो नाम प्रचलित है कुंबाबत राजपूत (कुमावत क्षत्रिय) व मारू कुंबार। इस जाति का कुम्हार, कुम्भकार, प्रजापत जाति से कोई संबंध नहीं है। कालान्तर में जैसलमेर में पड़ने वाले भयंकर अकालों के कारण खेती या अन्य कार्य करने वाले कुंबावत राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य प्रांतों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में चले गए। इस कारण से कुंबावत (कुमावत) एवं उसकी गोत्रों का स्वरूप बदलता रहा। लेकिन व्यवसाय (सरकारी सेवा, जवाहरात का कार्य व कृषि) एवं राजपूत रीति-रिवाजों को आज तक नहीं छोड़ा है। कुंबावत जाति की 62 गोत्रें निम्नलिखित हैं
भाटी चौहान पड़िहार राठौर पंवार तंवर गुहिल सिसोदिया दैया 1. बोरावड़ टाक मेरथा चाडा लखेसर गेधर सुडा ओस्तवाल दैया
2.मंगलाव बंग चांदोरा रावड़ छापोला सांवल कुचेरिया 3. पोड़ सउवाल गम जालप जाखड़ा कलसिया
4.लिम्बा सारड़ीवाल गोहल कीता रसीयड़
5. खुदी 6. भटिय सिम2 के साथ संदेश नहीं भेज सकते, त्रुटि O
7 मार घोड़ेला धुतिया पगाला आरोड़


Vikash Kumawat on 23-01-2022

Bhi kumawat samaaj ki कुलदेवी सिर्फ एक ही है सीतला माता

Rakesh kumar on 16-02-2022

Kumawat samaj mai barbunda gotta kee kuldevi mataji kaun hai.

Rakesh Kumar on 16-02-2022

Kumawat samaj mai Barbunda Gotra keep Kuladevi Mata kaun Hai.

Rakesh kumar on 16-02-2022

Kumawat samaj mai barbunda gotra kee kuldevi mataji kaun hai.

Rakesh Kumar on 16-02-2022

Kumawat samaj mai barbunda gotra kee kuldevi mataji kaun hai. Batana ji.


Vishnu on 11-03-2022

Vishnu बासनिवाल गोत्र की कुलदेवी बताओ please 9079169713

Shima on 03-04-2022

Shankhawahiya kul ki kuldevi kon he.

RamuRam malival prajapat on 10-04-2022

मालीवाड़ गोत्र की कुलदेवी कोन और कहा है

Garvit kumawat on 01-08-2022

Abe bin dimag ke Kumawat ek chtriy vansh jaati hai Rana kumbha Kai vanshaj hai

Harish Kumar Rathore on 12-08-2022

Kumawat jati ke bare galat he

Saram kar sale

Syozi kumawat on 01-09-2022

Abe tu Khud to Chawla (Khateek) h or tu hume batayega kya ki hum kaun h Agar kisi cast ke bare me pta nhi hota h na to Bakna bhi nhi nhi to muut ke chala jaunga tere uper Kumawat ek alag Cast h or ye na to prajapat h or na hi kumhar samjha nahlle

Jinit kumawat on 01-09-2022

Ghr me ghus ke gand marunga

Kamal adaniya on 24-09-2022

Adaniya gotra ki kul devi minaxi mata madhurai (T.N)

Radheshyaam on 08-10-2022

Gedhar gotra ke kuldevi name



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