सृजनात्मकता या सृजन शील का अर्थ :
“ सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओं या विचारों का उत्पादन करता है जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो । जो व्यक्ति इस प्रकार का नवीन कार्य करते हैं उन्हें सृजनशील या सृजनकर्ता कहा जाता है और जिस प्रातिभा के आधार पर वह नई कृति, नवीन रचना या नवीन आविष्कार करते हैं उसे सृजनात्मकता कहा जाता है। विख्यात विद्वानों ने ‘ सृजनात्मकता ‘ की परिभाषाएं प्रस्तुत करके इसके अर्थ को स्पष्ट करने की कोशिश की है –
परिभाषाए :
स्टेगनर एवं कावौस्की के अनुसार – किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन सृजनात्मकता कहलता है। “
ड्रेवगहल के अनुसार – सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओँ के विचारों का उत्पादन करता है और जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो। “
स्किनर के अनुसार – ‘ सृजनात्मक चिन्तन वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है, नए परीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियां करता है और नए निष्कर्ष निकालता है। “
क्रो व क्रो – “ सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने का मानासिक प्रक्रिया है। “
गिलफोर्ड के अनुसार – “ सृजनात्मकता बालकों में प्रायः सामान्य गुण होते हैं, उनमें न केवल मौलिकता का गुण होता है, वरन उनमें लचीलापन, प्रवाहमयता , प्रेरण, एवं संयमता की योग्यता भी पाई जाती है।
स्टेन के अनुसार – “ सृजनात्मकता वह कार्य है जिसका परिणाम नवीन हो और किसी समय, किसी समूह द्वारा उपयोगी एवं संतोषजनक रूप मे स्वीकार किया जाए ।
बैरन के अनुसार – “ सृजनात्मक बालक पहले से विध्यमान वस्तुओं एवं तत्वों को संयुक्त कर नवीन रचना करता हैै। “
निष्कर्ष रूप से सृजनात्मकता से अभिप्राय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन दृष्टिकोण अपनाना है। इस प्रकार सृजनशील व्यक्ति सदा नए द्वाष्टिकोण, विचार और व्यवहार अपनाने के लिए सदा तत्पर रहता है जिससे वह समस्या के नवीन समाधान खोजने में सफल रहता हैै।
सृजनात्मक की प्रकृति :
सर्वव्यापकता – सृजनात्मकता सर्वव्यापक है। प्रत्येक व्यक्ति में कुध सीमा तक सृजनात्मकता अवश्य होती है।
नवीनता – सृजनात्मकता में पूर्ण अथवा आंशिक रूप में नई पहचान की उत्पति मौजूद होती है।
प्रक्रिया और फल – सृजनात्मकता में प्रक्रिया तथा फल दोनों ही शामिल होती है।
परीक्षण द्वारा पोषित – सृजनात्मक योग्यताएँ प्राकृतिक देन हैं किन्तु उन्हे प्रशिक्षण अथवा शिक्षा द्वारा भी पोषित किया जा सकता है।
अनुपम – सृजनात्मकता एक अनोखी मानसिक प्रक्रिया है जिसके साथ कई तरह की मानसिक योग्यताएं और व्यक्तित्व की विशेषताएं जुड़ी होती हैं।
मौलिकता – सृजनात्मकता का परिणाम मौलिक तथा लाभदायक फल देता है।
प्रान्नता तथा संतोष का स्रोत – कोई भी नई सृजनात्मक आभिव्यक्ति सृजनकर्ता के लिए खुशी और संतोष पैदा करती है।
लोचशीलता – चिंतन तथा व्यवहार में लोचशीलता सृजनशीलता की महत्वपूर्ण विशेषता है। सृजनशीलता व्यक्ति हमेशा नए दृष्टिकोण , व्यवहार और विचार अपनाने के लिए तैयार रहता है। अतः वह समस्या के नवीन हल ढूंढने में सफल रहता है।
प्रतिक्रियाओं की बहुलता – सृजनात्मक चिंतन में बहुल प्रतिक्रियाओं, चयन तथा कियाओं की दिशाओं की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
विस्तृत क्षेत्र – सृजनात्मक व्याख्या का क्षेत्र विशाल होता है। कोई भी विचार अथवा अभिव्यक्ति जो कि सृजनकर्ता के लिए मौलिक होती है वह सृजनात्मकता की उदाहरण है। इस में मानव दक्षताओं के सभी पक्ष शामिल हैं जैसे कहानी, नाटक, कविता, गीत लिखना, चित्रकला, संजीत, नृत्य, मूर्तिकला के क्षेत्र में कार्य सामाजिक और राजनीतिक सम्बन्ध, व्यापार, शिक्षण तथा अन्य व्यवसाय।
पुनः व्याख्या – किसी समस्या अथवा उसके अंश की पुनः व्याख्या सृजनात्मकता की विशेषता है। जे . सी . शा, एलन नेविल, हरबर्ट साईमन ने किसी समस्या के सृजनात्मक समाधान में निम्न को महत्वपूर्ण समझा है –
1)चिंतन का विषय नवीन तथा मूल्यवान होना चाहिए।
2)चिंतन बहु – विधि होना चाहिए।
12.सृजनात्मक व्यकितत्व – सृजनात्मक व्यक्तित्व में सबसे महत्वपूर्ण गुण मौलिक चिंतन, परिणाम पर पहुंचने की स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, स्वायत्तता, हास्य, आत्म विश्वास को समझने तथा संगठन बनाने की योग्यता वाले गुण होते हैं।
13.असामान्य तथा प्रासंगिक चिंतन की अनुरूपता – सृजनात्मक बालक तर्क, चिंतन, कल्पना का द्वारा प्रासंगिक मगर असामान्य चिंतन से समझौता करते हैं व चुनौती को स्वीकार करते हैं और इस चुनौती का सृजनात्मक उत्तर देते हैं।
सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक : –
सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखत हैं –
उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके ( Creating an encourage climate ) – रचनात्मका का विकास करने के लिए खोज के अवसर प्रदान करने चाहिएं और ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिसमें बच्चा आने आपकों स्वतन्त्र समझें।
बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना ( Encourage Creative in many medias ) -अध्यापक विधार्थियों को इस बात के लिए उत्साहित करे कि जितने भी क्षेत्रों में सम्भव हो सके, अपने विचारों तथा भावनओं को प्रकट करे । प्रायः अध्यापक यह समझता है कि रचनात्मकता कविताएं, कहानियां, उपन्यास या जीवनियां लिखने तक ही सीमित है। वास्तव में और भी क्षेत्र हैं जैसा कि कला, चित्रकारी, शिल्प, संगीत या नाटक आदि जिसमें नए ढंग से बच्चों को अपने विचार प्रकट करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है।
विविधिता की प्रेरणा (Encouraging variety of approach ) – अध्यापक को विविध उत्तरों को प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चों के कार्य तथा प्रयत्न में किसी परिवर्तन या विविधता के चिन्ह का स्वागत करना चाहिए और उसे प्रेरणा देनी चाहिए।
लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना ( Encouraging activeness and flexibility ) – अध्यापक को चाहिए कि वह सक्रियता तथा लचीलता को उत्साहित करे और बढ़ावा दे। बुद्धिमान बच्चे पढ़ाई की बहुत सी प्रभावी तथा कुश
सृजनात्मकता के सिद्धांत