Srijanatmak Chintan Ka Pratham Charan सृजनात्मक चिंतन का प्रथम चरण

सृजनात्मक चिंतन का प्रथम चरण



Pradeep Chawla on 16-10-2018


प्रत्येक व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की मानसिक योग्यता होती है। जिसके आधार पर वह लेखक, कलाकार वैज्ञानिक तथा संगीतज्ञ इत्यादि बनता है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति होती है। आज के जटिल समाज में वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों को पाने के लिए सृजनात्मकता व्यक्तियों का होना राष्ट्र की प्रमुख आवश्यकता बन गयी है।

समाज, व्यक्ति व राष्ट्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के बावजूद, सृजनात्मकता की कोर्इ एक सार्वभौमिक परिभाषा उपलब्ध नही है इसका कारण यह है कि अलग-अलग चिन्तक इसे अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। सृजनात्मकता का सबसे लोकप्रिय अर्थ गिलाफोर्ड में बताया गया है। इनक अनुसार चिन्तन दो तरह के होते है।

  1. अभिसारी चिन्तन
  2. अपसरण चिन्तन

    अभिसारी चिन्तन में व्यक्ति रूढ़िवादी तरह से चलता हुआ सही निष्कर्ष पर पहुंचता है। ऐसे चिन्तन में समस्या का एक निश्चित उत्तर होता है। अपसरण चिन्तन में व्यक्ति भिन्न-भिन्न दशाओं में चिन्तन कर किसी भी समस्या के संभावित उत्तरों पर सोचता है और अपनी ओर से कुछ नयी चीजों को जोड़ने का प्रयास करता है। इसमें व्यक्ति किसी निश्चित उत्तर पर नही पहुंचता है। इस प्रकार का चिंतन अंशत तथा अरूढ़िवादी प्रकृति का होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इसी अपसरण चिन्तन को सृजनात्मकता कहा है।

    सृजनात्मकता चिन्तन की अवस्थाएं -

    कोर्इ भी व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान कर रहा हो या सृजनात्मकता चिन्तन कर रहा हो उसे मुख्य रूप से चार अवस्थाओं से गुजरना होता है।
    1. तैयारी- इस अवस्था में व्यक्ति को समस्या के पक्ष व विपक्ष में आवश्यक तथ्य एकत्र करने होते है। जैसे एक चित्रकार को अपनी पेन्टिंग बनाने से पूर्व किसी प्राकृतिक स्थान पर बैठकर रंग, आकार, रोशनी आदि का ज्ञान प्राप्त करना होता है।
    2. उद्भवन - यह चिन्तन की वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति की निष्क्रियता बढ़ जाती है। यह निष्क्रिय अवस्था लम्बी तथा छोटी दोनो प्रकार की हो सकती है। इस अवस्था में व्यक्ति समस्या के समाधान के बारे में चिन्तन छोड़कर विश्राम करने लगता है।
    3. प्रबोधन- इस अवस्था में अचानक व्यक्ति को समस्या का समाधान दिखायी देता है। उद्भवन की अवस्था में व्यक्ति अचेतन रूप से समस्या के भिन्न-भिन्न पहलुओं को पुनसंगठित करता है और उसे अचानक समस्या का समाधान नजर आ जाता है।
    4. प्रमाणीकरण - सृजनात्मकता के लिए परे्रणा अति आवश्यक हाते ी है क्योंकि यह सामग्री की व्यवस्था करती है। कल्पना के द्वारा जो कार्य शुरू किया जाता है उसे बुद्धि एवं निर्णय के द्वारा पूर्ण किया जाता है। इस अवस्था में समस्या के समाधान की जांच होती है कि वह ठीक है अथवा नही।

    सृजनशील व्यक्ति की विशेषताएं -

    मनोवैज्ञानिकों ने सृजनशील व्यक्ति की विशेषताओं को समझने के लिए अनेक अध्ययन किये जिसमें मुख्य रूप से व्यक्तित्व परीक्षणों तथा जीवन के अनुभवों का प्रयोग किया गया। मेकिनन तथा उनके सहयोगियों ने वैज्ञानिकों, आविष्कारकों तथा विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों का अध्ययन करके कुछ गुणों का निर्धारण किया।
    1. कम बुद्धि वाले व्यक्तियों में सृजनात्मकता चिन्तन नही के बराबर होता है।
    2. सृजनशील व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा वातावरण के प्रति संवेदना अधिक पायी जाती है।
    3. सृजनशील व्यक्तियों के विचारों तथा क्रियाओं में स्वंत्रता देखी जाती है।
    4. ये व्यक्ति किसी भी घटना, चीज व वस्तु को गंभीरता से नही होते है वरन् प्रत्येक कार्य को मनोविनोद से करते हैं।
    5. सृजनशील व्यक्ति किसी भी विषय पर अधिक विचार व्यक्त करते है।
    6. सृजनात्मकता व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों ज्यादा लचीलापन पाया जाता है।
    7. सृजनात्मकता विचारको में हमेशा एक नवीन जटिल समस्या का समाधान करते हैं। चिन्तन के आधार पर नयी चीज व घटना की खोज करते है।
    8. सृजनशील व्यक्ति अपनी इच्छाओं का कम से कम दमन करते हैं। ऐसे व्यक्ति इस बात की परवाह नही करते हैं कि दूसरे व्यक्ति क्या सोचेंगे तथा वे अपनी इच्छाओं तथा आवेगों का आदर करते है।
    9. सृजनशील व्यक्ति अपने विचारों को खुलकर अभिव्यक्त करते हैं तथा उन्हें तर्कपूर्ण तरह से प्रस्तुत करते हैं।
    10. सृजनशील व्यक्ति रूढ़िवादी विचारों को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं।
    11. सृजनात्मकता व्यक्ति विभिन्न प्रकार की बाधाओं को दूर करते हुए धैर्यपूर्वक अपना कार्य करते हैं।
    12. सृजनात्मकता व्यक्तियों में अपने कार्य के प्रति आत्मविश्वास पाया जाता है ऐसे व्यक्ति लक्ष्य के प्रति संवेदनशील होते है।

    सृजनात्मकता को बढा़ने के उपाय -

    प्रत्येक व्यक्ति में सृजनशील होने के गुण होते हैं परन्तु अच्छा वातावरण न मिल पाने के कारण इसका विकास नही हो पाता है। सृजनात्मकता को उन्नत बनाने के लिए आसवार्न ने विक्षिप्तकरण विधि को महत्वपूर्ण बताया है। इस विधि में व्यक्ति को अधिक से अधिक संख्या में नये-नये विचारों को देना होता है तथा अन्य लोगों के विचारों को भी संयोजित कर सकते हैं इसमें प्रत्येक व्यक्ति अ




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