कवि पद्माकर के बारें में : इनका वास्तविक नाम प्यारे लाल था। रीति काल के ब्रजभाषा कवियों में पद्माकर (1753-1833) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में अंतिम चरण के सुप्रसिद्ध और विशेष सम्मानित कवि थे।
मूलतः हिन्दीभाषी न होते हुए भी पद्माकर (Biography of Padmakar in Hindi) जैसे आन्ध्र के अनगिनत तैलंग-ब्राह्मणों ने हिन्दी और संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि में जितना योगदान दिया है वैसा अकादमिक उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है।
औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।
अर्थ : वसंत ऋतु के आते ही लताओं-झांडियो में घूमते विचरते भांरों की गुंजार कुछ और ही प्रकार की हो गई है। आम की मंजरियों के गुच्छों की छटा भी अलग ही प्रकार की हो गई है। कवि का तात्पर्य यह है कि वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति में एक विशेष प्रकार का निखार आ गया है।
कवि पद्माकर कहते है कि गलियों में घूमने वाले वांके, सजीले और सुंदर नवयुवकों पर अलग प्रकार की ही छवि छा गई है। अर्थात् सुंदर युवकों की छवि और भी आकर्षक प्रतीत हो रही है।
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Dohe kiya earth hai
padmakar pat ka hindi art
Padmakar Ji ke teen Kavita ki Vyakhya NCERT course kaksha 11 part 13
Pdmakr ki viyakhiya
Jhoran ke meaning
चितै-चितै चारों ओर चौंकि-चौंकि परै त्योंही, जहाँ-तहाँ जब-तब खटकत पात है।
arth batae
Arth bataye
पद्माकर के पद का अर्थ क्या है
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है.
कहे पद्माकर परागन में पौनहू में
पानन में पीक में पलासन पगंत है
द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में
देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगरयो बसंत है
Meaning
padmakr k doha
Malin kilkant Ka arth
Kya iska arth nhai he plz iska arth de
कुलन में केली मे का अर्थ
चितै-चितै चारों ओर, चौंकि-चौंकि परै, त्यों ही
जहां-तहां, जब-तब, खटकत पात हैं।
भाजन-सो चाहत, गंवार ग्वालिनी के कछू,
डरनि डराने-से, उठाने रोम गात हैं॥
कहै पदमाकर, सु देखि दसा मोहन की,
सेस महेस सुरेस सिहात हैं।
एक पाय भीत, एक पाय मीत-कांधे धरे,
एक हाथ छींको एक हाथ दधि खात हैं॥। का भावार्थ
अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को
औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर,
औरे भांति बौरन के झौरन के ह्वै गए.
कहै ‘पदमाकर’ सु औरे भांति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरे छबि छ्वै गए.
औरे भांति बिहँग समाज में आवाज होति,
अबैं ऋतुराज के न आजु दिन द्वै गए.
औरे रस,औरे रीति औरे राग औरे रंग,
औरे तन औरे मन, औरे बन ह्वै गए.
कूलन में केली में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है । का अर्थ बताएं
Arey yahan to kisi bhi dohe ka arth hi nhi h to padhe kyA hum ismein
द्वावर में दिसान में दुनी में देस देसन में देखौ दीप दीपन दिगंत है
सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि,
तुरंत लुटावत बिलम्ब उर धारै ना.
कहै ‘पदमाकर’ सुहेम हय हाथिन के,
हल्के हजारन के बितऋ बिचारे ना.
दीन्हें गज बकस महीप रघुनाथ राव,
पाय गज धोखे कहूँ काहू देइ डारै ना.
याही डर गिरजा गजानन को गोय रही,
गिरतें गरेतें निज गोद से उतारे ना.
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