Bihar Me 1857 Ke Vidroh Ka Pramukh Neta Kaun Tha बिहार में 1857 के विद्रोह का प्रमुख नेता कौन था

बिहार में 1857 के विद्रोह का प्रमुख नेता कौन था



GkExams on 02-10-2022


सही उत्तर : बाबू कुंवर सिंह


व्याख्या :


1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान कुंवर सिंह एक प्रमुख नेता थे। वह जगदीसपुर के परमार राजपूतों के उज्जैनिया कबीले, जो वर्तमान में भोजपुर जिले, बिहार, भारत का एक हिस्सा है, के एक परिवार से जुड़े थे। 80 वर्ष की आयु में, उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की कमान के तहत सैनिकों के खिलाफ सशस्त्र सैनिकों के एक चुने हुए बैंड का नेतृत्व किया। वह बिहार में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के प्रमुख योगदानकर्ता थे।


कुँवर सिंह के बारें में (kunwar singh biography) :




कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के भोजपुर जिले में जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था। इनके पूर्वज मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे। कुँवर सिंह के पास बड़ी जागीर थी। किन्तु उनकी जागीर ईस्ट इंडिया कम्पनी की गलत नीतियों के कारण छीन गयी थी।


Bihar-Me-1857-Ke-Vidroh-Ka-Pramukh-Neta-Kaun-Tha


गर्व की बात तो यह है की प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय कुँवर सिंह (kunwar singh in hindi) की उम्र 80 वर्ष की थी। वृद्धावस्था में भी उनमे अपूर्व साहस, बल और पराक्रम था। उन्होंने देश को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए दृढ संकल्प के साथ संघर्ष किया।


अंग्रेजो की तुलना में कुँवर सिंह के पास साधन सीमित थे परन्तु वे निराश नहीं हुए। उन्होंने क्रांतकारियों को संगठित किया। अपने साधनों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने छापामार युद्ध की नीति अपनाई और अंग्रेजो को बार – बार हराया। उन्होंने अपनी युद्ध नीति से अंग्रेजो के जन – धन को बहुत हानि पहुंचाई।


कुँवर सिंह (kunwar singh freedom fighter) ने जगदीशपुर से आगे बढ़कर गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ आदि जनपदों में छापामार युद्ध करके अंग्रेजो को खूब छकाया। वे युद्ध अभियान में बांदा, रीवां तथा कानपुर भी गये। इसी बीच अंग्रेजो को इंग्लैंड से नयी सहायता प्राप्त हुई। कुछ रियासतों के शासको ने अंग्रेजो का साथ दिया।


एक साथ एक निश्चित तिथि को युद्ध आरम्भ न होने से अंग्रेजो को विद्रोह के दमन का अवसर मिल गया। अंग्रेजो ने अनेक छावनियो में सेना के भारतीय जवानो को निःशस्त्र कर विद्रोह की आशंका में तोपों से भून दिया। और धीरे – धीरे लखनऊ, झाँसी, दिल्ली में भी विद्रोह का दमन कर दिया गया और वहां अंग्रेजो का पुनः अधिकार हो गया। ऐसी विषम परिस्थिति में भी कुँवर सिंह ने अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए अंग्रेजी सेना से लोहा लिया। उन्हें अंग्रेजो की सैन्य शक्ति का ज्ञान था।


वे एक बार जिस रणनीति से शत्रुओ को पराजित करते थे दूसरी बार उससे अलग रणनीति अपनाते थे। इससे शत्रु सेना कुँवर सिंह की रणनीति का निश्चित अनुमान नहीं लगा पाती थी।


कुंवर सिंह की मृत्यु कैसे हुई?




एक बार आजमगढ़ से 25 मील दूर अतरौलिया के मैदान में अंग्रेजो से जब युद्ध जोरो पर था तभी कुँवर सिंह की सेना सोची समझी रणनीति के अनुसार पीछे हटती चली गयी। अंग्रेजो ने इसे अपनी विजय समझा और खुशियाँ मनाई। अंग्रेजी की थकी सेना आम के बगीचे में ठहरकर भोजन करने लगी। ठीक उसी समय कुँवर सिंह की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया।


शत्रु सेना सावधान नहीं थी। अतः कुँवर सिंह की सेना ने बड़ी संख्या में उनके सैनिको मारा और उनके शस्त्र भी छीन लिए। अंग्रेज सैनिक जान बचाकर भाग खड़े हुए। यह कुँवर सिंह की योजनाबद्ध रणनीति का परिणाम था।


पराजय के इस समाचार से अंग्रेज बहुत चिंतित हुए। इस बार अंग्रेजो ने विचार किया कि कुँवर सिंह की फ़ौज का अंत तक पीछा करके उसे समाप्त कर दिया जाय। पूरे दल बल के साथ अंग्रेजी सैनिको ने पुनः कुँवर सिंह तथा उनके सैनिको पर आक्रमण कर दिया।


युद्ध प्रारंभ होने के कुछ समय बाद ही कुँवर सिंह ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया और उनके सैनिक कई दलों में बँटकर अलग – अलग दिशाओ में भागे। उनकी इस योजना से अंग्रेज सैनिक संशय में पड़ गये और वे भी कई दलों में बँटकर कुँवर सिंह के सैनिको का पीछा करने लगे। जंगली क्षेत्र से परिचित न होने के कारण बहुत से अंग्रेज सैनिक भटक गये और उनमे बहुत सारे मारे गये। इसी प्रकार कुँवर सिंह ने अपनी सोची – समझी रणनीति में परिवर्तन कर अंग्रेज सैनिको को कई बार छकाया।


कुँवर सिंह की इस रणनीति को अंग्रेजो ने धीरे – धीरे अपनाना शुरू कर दिया। एक बार जब कुँवर सिंह सेना के साथ बलिया के पास शिवपुरी घाट से रात्रि के समय किश्तयो में गंगा नदी पर कर रहे थे तभी अंग्रेजी सेना वहां पहुंची और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगी।


अचानक एक गोली कुँवर सिंह की बांह में लगी इसके बावजूद वे अंग्रेज सैनिको के घेरे से सुरक्षित निकलकर अपने गांव जगदीशपुर पहुँच गये। घाव के रक्त स्राव के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और 26 अप्रैल सन 1858 को इस वीर और महान देशभक्त का देहावसान हो गया।


Pradeep Chawla on 30-09-2018

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Comments Adeeb khan on 25-01-2024

Bihar me 1857 ke vidroh neta kaun the

Robin kumar on 15-01-2024

Who was tha leader of revolt of 1857 in Bihar?

M h a Mujahid Ansari on 16-11-2023

kunwar Shine


Rahul Kumar on 01-11-2023

Bihar me 1857 ke bidaroh ka permukh beta kaun tha

Pritam on 02-10-2023

Bihar mein 1857 ke vidroh ka pramukh neta kaun tha

Sushant kumar bhati on 09-05-2023

महाभारत किसने लिखा

Amit Raj on 16-10-2022

1875 ki vidroh mi bihar ka nita kon ta




Bihar me 1857 ke vidro ka neta kon tha on 10-01-2020

Bihar me 1857 ke vidro ka neta kon that

Ashok Kesarwani on 14-04-2020

Bihar 1857 ke vidroh ka neta kaun tha

Naresh murmu on 29-08-2020

1857 ke vidro me bihar ka neta kon tha

Arya on 08-11-2020

Bangal ka pasid sant kon tha

Ajay Munda on 20-06-2022

18 so 57 ke vidroh mein Bihar ka Neta kaun tha


Satendra Singh Rajpoot on 29-08-2022

Kuwar singh



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