Vidhayika Karyapalika Nyaypalika विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका

विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका



GkExams on 12-05-2019

विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन मुख्य पावाँ होते हैं जिसमें चौथे पावाँ के रूप में पत्रकारिता को पत्रकारिता को स्थान दिया गया है। इन्हीं चारों पावों के सहारे लोकतांत्रिक प्रणाली का संचालन संरक्षण और नियन्त्रण किया जाता है।इस समय कहना गलत नहीं होगा कि लोकतंत्र के चारों पावें पटरी से उतर गये हैं जिससे लोकतंत्र खतरे में पड़ता दिखने लगा है।



पत्रकारिता और न्यायपालिका तमाम विकारों के बावजूद लोकतंत्र को संरक्षित करने का कार्य कर रही हैं।यहीं कारण है कि यहीं दोनों विधायिका और कार्यपालिका के समय समय पर कोपभाजन बनते रहते हैं।कल अभी विधि दिवस पर दिल्ली में आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर एक बार फिर विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका की तनातनी सामने आ गयी। दरअसल असलियत तो यह है इधर जनहित के मामलों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ गया है जो विधायिका और कार्यपालिका दोनों को अखर रहा है।

न्यायिक हस्तक्षेप के चलते अबतक लोकतंत्र को मजबूती देने वाले तमाम ऐतिहासिक फैसले और पर्दाफाश हो चुके हैं। सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष केन्द्रीय कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आदि लोकतंत्र के तीनों अंग वहाँ पर मौजूद थे।इस अवसर बढ़ते अदालती हस्तक्षेप और न्यायिक प्रक्रिया में देरी को लेकर चिंता व्यक्त की गयी जबकि मुख्य न्यायाधीश ने इसका जोरदार खंडन किया गया।

इस सम्मेलन का समापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कर चुके हैं।कुल मिलाकर समाज में आयी गिरावट का असर समाज से जुड़े लोकतंत्र के मुख्य तीनों अंगों पर पड़ना स्वाभाविक है। इसके बावजूद इस समय न्यायपालिका ही एक ऐसी है जिस पर लोकतंत्र का वटवृक्ष टिका हुआ है अन्यथा वतन के लुटेरे अबतक वतन लूट लेते हैं।

लोकतंत्र के सभी पावों में भ्रष्टाचार रूपी दीमक लग गये हैं जो लोकतंत्र के भविष्य के लिए शुभ नही माना जा सकता है। न्यायपालिका एक ऐसी है जिस पर आज भी लोगों का भरोसा टिका हुआ है और जिसे कहीं सहारा नहीं मिलता उसे सहारा न्यायपालिका दे देती है।उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालयों को समाज की विभिन्न विसंगतियो समस्याओं पर संवैधानिक दायरे जनहित में सुनने स्वतः संज्ञान में लेने एवं विवेचना करने का अधिकार है किन्तु भ्रष्टाचार के आगोश में डूबी विधायिका एवं कार्यपालिका इसे बर्दाश्त नहीं पा रही है।अदालती फैसले अक्सर सरकार के मंसूबों पर पानी फेर देते हैं।

वैसे लोकतंत्र में हर अंग को अधिकार दिये हैं और जब उसमें कोई बेजा हस्तक्षेप करता है तो अदालत स्वाभावतः हस्तक्षेप करती है।अधिकार का दुरपयोग करने वाले तीनों अंगों से जुड़े लोग हैं क्योंकि आँधी आती है कोई हवा से अछूता नहीं बचता है।लोकतंत्र से जुड़े तीनों अंग जिस दिन भ्रष्टाचार जोर दबाव स्वार्थ से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन शुरू कर देगें उस तीनों में तनातनी की जगह स्वतः एकरूपता आ जायेगी।




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