Shung Vansh Ka Antim Shashak शुंग वंश का अंतिम शासक

शुंग वंश का अंतिम शासक



Pradeep Chawla on 12-05-2019

शुंग वंश का एक शासकीय वंश था जिसने के बाद शासन किया। इसका शासन उत्तर भारत में 187 ई.पू. से 75 ई.पू. तक यानि 112 वर्षों तक रहा था। इस राजवंश का प्रथम शासक था।







अनुक्रम











वंशावली

इस वंश के शासकों की सूची इस प्रकार है -



  • (185 - 149 BCE)
  • (149 - 141 BCE)
  • (141 - 131 BCE)
  • (131 - 124 BCE)
  • (124 - 122 BCE)
  • (122 - 119 BCE)
  • (83 - 73 BCE)


पुष्यमित्र शुंग

मुख्य लेख :


कहा जाता है कि , जो

की सेना का सेनापति था, ने सेना का निरीक्षण करते वक्त बृहद्रथ मौर्य को

मार दिया था और सत्ता पर अधिकार कर बैठा था। पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक

शासन किया और उसके बाद उसका पुत्र अग्निमित्र सत्तासीन हुआ। आठ वर्षों तक

शासन करने के बाद 140 ईसापूर्व के पास उसका पुत्र जेठमित्र (ज्येष्ठमित्र)

शासक बना।



पुष्यमित्र के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना थी, पश्चिम से यवनों (यूनानियों) का आक्रमण। वैयाकरण , जो कि पुष्यमित्र का समकालीन थे, ने इस आक्रमण का उल्लेख किया है। ने भी अपने नाटक

में वसुदेव का यवनों के साथ युद्ध का ज़िक्र किया है। भरहुत स्पूत का

निर्माण पुष्यमित्र ने करवाया था शुंग शासकों ने अपनी राजधानी विदिशा में

स्थापित किया था



पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी

अग्निमित्र

पुष्यमित्र

की मृत्यु (148इ.पू.) के पश्‍चात उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा

हुआ। वह विदिशा का उपराजा था। उसने कुल 8 वर्षों तक शासन किया।



वसुज्येष्ठ या सुज्येष्ठ

अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ राजा हुआ।



वसुमित्र

शुंग

वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ। उसने यवनों को पराजित किया था। एक दिन

नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव नामक व्यक्‍ति ने उसकी हत्या कर दी। उसने

10 वर्षों तक शासन किया। वसुमित्र के बाद भद्रक, पुलिंदक, घोष तथा फिर

वज्रमित्र क्रमशः राजा हुए। इसके शाशन के 14वें वर्ष में तक्षशिला के यवन

नरेश एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोंडोरस उसके विदिशा स्थित दरबार में

उपस्थित हुआ था। वह अत्यन्त विलासी शाशक था। उसके अमात्य वसुदेव ने उसकी

हत्या कर दी। इस प्रकार शुंग वंश का अन्त हो गया।



महत्व

इस

वंश के राजाओं ने मगध साम्रज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की

तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यव्स्था की स्थापना कर विकेन्द्रीकरण की

प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर

उन्होंने वैदिक संस्कृति के आदर्शों की प्रतिष्ठा की। यही कारण है कि उसका

शासनकाल वैदिक पुनर्जागरण का काल माना जाता है।



विदर्भ युद्ध

मालविकामित्रम

के अनुसार पुष्यमित्र के काल में लगभग 184इ.पू.में विदर्भ युद्ध में

पुष्यमित्र की विजय हुई और राज्य दो भागों में बांट दिया गया। वर्षा नदी

दोनों राज्यों कीं सीमा मान ली गई। दोनो भागों के नरेश ने पुष्यमित्र को

अपना सम्राट मान लिया तथा इस राज्य का एक भाग माधवसेन को प्राप्त हुआ।

पुष्यमित्र का प्रभाव क्षेत्र नर्मदा नदी के दक्षिण तक विस्तृत हो गया।



यवनों का आक्रमण

यवनों

को मध्य देश से निकालकर सिन्धु के किनारे तक खदेङ दिया और पुष्यमित्र के

हाथों सेनापति एवं राजा के रूप में उन्हें पराजित होना पङा। यह पुष्यमित्र

के काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी।




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Comments RAGHUNATH on 14-12-2021

Sabse badha rajy





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