Itihas Ka Kaal Vibhajan इतिहास का काल विभाजन

इतिहास का काल विभाजन



Pradeep Chawla on 13-10-2018

पाषाण काल

मध्य भारत में हमें पुरापाषाण काल की मौजूदगी दिखाई देती है। पुरातत्ववेत्ता का भी ऐसा मानना है की वे भारत में 2,00,000 से 5,00,000 साल पहले रहते थे। यह काल ही पूरापाषाण काल के नाम से जाना जाता था। इसके विकास के भुपटन में हमें चार मंच दिखायी देते है और चौथा मंच ही चारो भागो का मंच के नाम से जाना जाता है जिसे और दो भाग प्लीस्टोसन और होलोसेन में बाँटा गया है। इस जगह की सबसे प्राचीन पुरातात्विक जगह पूरापाषाण होमिनिड है, जो सोन नदी घाटी पर स्थित है। सोनियन जगह हमें सिवाल्किक क्षेत्र जैसे भारत, पकिस्तान और नेपाल में दिखाई देते है।

मध्य पाषाण

आधुनिक मानव आज से तक़रीबन 12,000 साल पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हो गया था। उस समय अंतिम हिम युग समाप्ति पर ही था और मौसम भी गर्म और सुखा बन चूका था। भारत में मानवी समाज का पहला समझौता भारत में भोपाल के पास ही की जगह भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल में दिखाई देता है। मध्य पाषाण कालीन लोग शिकार करते, मछली पकड़ते और अनाज को इकठ्ठा करने में लगे रहते।

निओलिथिक

निओलिथिक खेती तक़रीबन 7000 साल पहले इंडस वैली क्षेत्र में फैली हुई थी और निचली गंगेटिक वैली में 5000 साल पहले फैली थी। बाद में, दक्षिण भारत और मालवा में 3800 साल पर आयी थी।

ताम्रपाशान युग

इसमें केवल विदर्भ और तटीय कोकण क्षेत्र को छोड़कर आधुनिक महाराष्ट्र के सभी क्षेत्र शामिल है।

कांस्य युग

भारत में कांस्य युग की शुरुवात तक़रीबन 5300 साल पहले इंडस वैली सभ्यता के साथ ही हुई थी। इंडस नदी के बीच में यह युग था और इसके सहयोगी लगभग घग्गर-हकरा नदी घाटी, गंगा-यमुना डैम, गुजरात और उत्तरी-पूर्वी अफगानिस्तान तक फैले हुए है। यह युग हमें ज्यादातर आधुनिक भारत (गुजरात, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान) और पकिस्तान (सिंध, पंजाब और बलोचिस्तान) में दिखाई देता है।


उस समय उपमहाद्वीप का पहला शहर इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति में ही था। यह दुनिया में सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओ में से एक था। इसके बाद इंडस वैली नदी के किनारे ही हड़प्पा ने भी हस्तकला और नये तंत्रज्ञान में अपनी सभ्यता को विकसित किया और कॉपर, कांस्य, लीड और टिन का उत्पादन करने लगे।


पूरी तरह से विकसित इंडस सभ्यता की समृद्धि आज से तक़रीबन 4600 से 3900 साल पहले ही हो चुकी थी। भारतीय उपमहाद्वीप पर यह शहरी सभ्यता की शुरुवात भर थी। इस सभ्यता में शहरी सेंटर जैसे धोलावीरा, कालीबंगा, रोपर, राखिगढ़ी और लोथल भी शामिल है और वर्तमान पकिस्तान में भी हड़प्पा, गनेरीवाला और मोहेंजोदारो शामिल है। यह सभ्यता ईंटो से बने अपने शहरो, रोड के दोनों तरफ बने जलनिकास यंत्र और बहु-कथात्मक घरो के लिये प्रसिद्ध थी।


इस सभ्यता के समय में ही उनक क्रमशः कम होने के संकेत दिखाई देने लगे थे। 3700 साल पहले ही इनके द्वारा विकसित किये गए बहुत से शहरो को उन्होंने छोड़ दिया था। लेकिन इंडस वल्ली सभ्यता का पतन अचानक नही हुआ था। इनका पतन होने के बाद भी सभ्यता के कुछ लोग छोटे गाँव में अपना गुजरा करते थे।

 इतिहास का काल विभाजनवैदिक सभ्यता

वेद भारत के सबसे प्राचीन शिक्षा स्त्रोतों में से एक है, लेकिन 5 वी शताब्दी तक इसे केवल मौखिक रूप में ही बताया जाता था। धार्मिक रूप से चार वेद है, पहला ऋग्वेद। ऋग्वेद के अनुसार सभी राज्यों में सबसे पहले आर्य भारत में स्थापित हुए थे और जहाँ वे स्थापित हुए थे उस जगह हो 7 नदियों की जगह भी कहा जाता था, उस जगह का नाम सप्तसिंधवा था। चार वेदों में से बाकी तीन वेद सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद है। सभी वेदों में कुछ छंद है जिनमे भगवान और दूसरो की स्तुति की गयी है। वेद में दूसरी बहुमूल्य जानकारियाँ भी है। उस समय में शामरा समाज काफी ग्राम्य था।


ऋग्वेद के बाद, हमारा समाज और कृषि जन्य बन गया। लोग भी चार भागो में विभाजित हो गए थे, ये इन भागो को उनके काम के आधार पर बाँटा गया था। ब्राह्मण पुजारी और शिक्षक होते थे, क्षत्रिय योद्धा होते थे, वैश्य खेती, व्यापार और वाणिज्यिक कार्य करते थे और शुद्र साधारण काम करने वाले लोग थे। एक साधारण भ्रम यह भी था की वैश्य और शुद्र को निचली जाती का माना जाता था और ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग उन्हें बुरी नजर से देखते थे और उनका साथ बुरा व्यवहार करते थे। लेकिन यह बात प्राचीन वैदिक सभ्यता पर लागु नही होती, भले ही बाद में इस बात के कुछ प्रमाण हमें दिखाई देते है। इस प्रकार के सामाजिक भेदभाव को हिन्दुओ में वर्ण प्रथा कहा जाता है। वैदिक सभ्यता के समय, बहुत से आर्य वंशज और आर्य समुदाय के लोग थे। जिनमे से कुछ लोगो ने मिलकर कुछ विशाल स्थापित किया जैसे कुरूस साम्राज्य।

पर्शियन और ग्रीक आक्रमण

5 वी शताब्दी के आस-पास, भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर अचेमेनिद साम्राज्य और एलेग्जेंडर दी ग्रेट की ग्रीक सेना ने आक्रमण किया था। उस समय पर्शियन सोच, शासन प्रणाली और जीवन जीने के तरीको का भारत में आगमन हुआ था। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमें मौर्य साम्राज्य के समय में दिखाई देता है।अचेमेनिद साम्राज्य के शासक दरिउस प्रथम भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन कर रहे थे। बाद में एलेग्जेंडर ने उनके भू-भाग को जीत लिया।


उस समय का एक इतिहासकार हेरोडोतस, ने लिखा था की जीता हुआ यह हिस्सा एलेग्जेंडर के साम्राज्य का सबसे समृद्ध हिस्सा था। अचेमेनिद ने तक़रीबन 186 सालो तक शासन किया थम और इसीलिए आज भी उत्तरी भारत में हमें ग्रीक सभ्यता के कुछ लक्षण दिखाई देते है। ग्रेको-बुद्धिज़्म ही ग्रीस और बुद्धिज़्म की संस्कृतियों का मिलाप है। इस प्रकार संस्कृतियों का मिलाप चौथी शताब्दी से 5 वी शताब्दी तक तक़रीबन 800 सालो तक चलता रहा। इस भाग को हम वर्तमान अफगानिस्तान और पकिस्तान के नाम से जानते है। संस्कृतियों के मिलाप ने महायान बुद्ध लोगो को काफी प्रभावित किया और साथ ही चीन, कोरिया, जापान और इबेत में भी हमें इसका प्रभाव दिखाई देता है।

मगध साम्राज्य

मगध प्राचीन भारत के 16 साम्राज्यों में से एक है। इस साम्राज्य का मुख्य भाग गंगा के दक्षिण में बसा बिहार था। इसकी पहली राजधानी राजगृह (वर्तमान राजगीर) और पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी। मगध के साम्राज्य में ज्यादातर बिहार और बंगाल का भाग ही शामिल था जिनमे थोडा बहुत उत्तर प्रदेश और ओडिशा भी हमें दिखाई देता है। प्राचीन मगध साम्राज्य की जानकारी हमें जैन और बुद्ध लेखो में मिलती है। इसके साथ ही रामायण, महाभारत और पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है। मगध राज्य और साम्राज्य को वैदिक ग्रंथो में 600 BC से पहले ही लिखा गया था। जैन और बुद्ध धर्म के विकास में मगध ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और साथ ही भारत के दो महान साम्राज्य मौर्य साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन साम्राज्यों ने ही प्राचीन भारत में विज्ञान, गणित, धर्म, दर्शनशास्त्र और खगोलशास्त्र के विकास पर जोर दिया। इन साम्राज्यों का शासनकाल भारत में “स्वर्ण युग” के नाम से भी जाना जाता है।







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Comments Deepiks on 15-09-2023

Bharat par sikandar ka aakramad ttha uska prabhav

Panku yadav Panku yadav on 15-09-2022

Etihas laal vibajan keetane parkaar se keeyaa gaya he

Deepika on 21-08-2021

Satvahan vansh


Deepiks on 08-07-2020

Etihas ke kal bibhajan

Anurag rai on 08-01-2020

I history ka Kal vibajan





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