Delhi Saltnat Ka Prashasan दिल्ली सल्तनत का प्रशासन

दिल्ली सल्तनत का प्रशासन



GkExams on 07-02-2019

सल्तनत काल में भारत में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई, जो मुख्य रूप से अरबी-फ़ारसी पद्धति पर आधारित थी। सल्तनत काल में प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म पर आधारित थी। प्रशासन में उलेमाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। ‘ख़लीफ़ा’ इस्लामिक संसार का पैगम्बर के बाद का सर्वोच्च नेता होता था। प्रत्येक सुल्तान के लिए आवश्यक होता था कि, ख़लीफ़ा उसे मान्यता दे, फिर भी दिल्ली सल्तनत के तुर्क सुल्तानों ने ख़लीफ़ा को नाममात्र का ही प्रधान माना। इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने 1229 ई में बग़दाद के ख़लीफ़ा को ‘नाइब’ (सहायक) कहा। अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने को ख़लीफ़ा का नाइब नहीं माना। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी पहला ऐसा सुल्तान था, जिसने ख़िलाफ़त के मिथक को तोड़कर स्वयं को ख़लीफ़ा घोषित किया। मुहम्मद तुग़लक़ ने अपने शासक काल के प्रारम्भ में ख़लीफ़ा को मान्यता नहीं दी, किन्तु शासन के अन्तिम चरण में उसने ख़लीफ़ा को मान्यता प्रदान कर दी। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने अपने सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम उत्कीर्ण करवाया था।

सुल्तान

सुल्तान की उपाधि तुर्की शासकों द्वारा प्रारम्भ की गयी। महमूद ग़ज़नवी ऐसा पहला शासक था, जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की। दिल्ली में अधिकांश ने अपने को ख़लीफ़ा का नायक पुकारा, परन्तु कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने स्वयं को ख़लीफ़ा घोषित किया। ख़िज़्र ख़ाँ ने तैमूर के पुत्र शाहरुख का प्रभुत्व स्वीकार किया और 'रैय्यत-ए-आला' की उपधि धारण की। उसके पुत्र और उत्तराधिकारी मुबारक शाह ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया और शाह सुल्तान की उपाधि ग्रहण की। सुल्तान केन्द्रीय प्रशासन का मुखिया होता था। सल्तनत काल में उत्तराधिकार का कोई निश्चत नियम नहीं था, किन्तु सुल्तान को यह अधिकार होता था कि, वह अपने बच्चों में किसी एक को भी अपना उत्तराधिकारी चुन सकता था। सुल्तान द्वारा चुना गया उत्तराधिकारी यदि अयोग्य है तो, ऐसी स्थिति में सरदार नये सुल्तान का चुनाव करते थे। कभी-कभी शक्ति के प्रयोग से सिंहासन पर अधिकारी किया जाता था। दिल्ली सल्तनत में सुल्तान पूर्ण रूप से निरंकुश होता था। उसकी सम्पूर्ण शक्ति सैनिक बल पर निर्भर करती थी। सुल्तान सेना का सर्वोच्च सेनापति एवं न्यायालय का सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। सुल्तान ‘शरीयत’ के अधीन ही कार्य करता था।

व्यापारिक केन्द्र

सल्तनत काल के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र के रूप में दिल्ली, थट्टा, देवल, सरसुती, अन्हिलवाड़, सतगाँव, सोनार गांव, आगरा, वाराणसी, लाहौर आदि प्रसिद्ध थे। देवल सल्तनत काल में अन्तर्राष्ट्रीय बन्दगाह के रूप में प्रसिद्ध था। सरसुती अच्छे क़िस्म के चावल के लिए, अन्हिलवाड़ व्यापारियों के तीर्थस्थल में रूप में सतगांव रेशमी रजाइयों के लिए, आगरा नील उत्पादन के लिए, एवं बनारस सोने, चाँदी एवं जरी के काम के लिए प्रसिद्ध था। आवागमन के साधन के रूप में बैलगाड़ी, खच्चर, ऊंट, रथ तथा नौकाओं का प्रयोग किया जाता था।







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