Kar Nirdharan Ke Prakar कर निर्धारण के प्रकार

कर निर्धारण के प्रकार



GkExams on 12-05-2019

[निर्धारण



16. 67[(1) जहां धारा 14 या धारा 15 की उपधारा (4) के खंड (i) के अधीन किसी सूचना के उत्तर में विवरणी दी गर्इ है, वहां–



(i) यदि कर या ब्याज के रूप में संदत्त किसी रकम के समायोजन के पश्चात् कोर्इ कर या ब्याज, ऐसी विवरणी के आधार पर देय पाया जाता है, तो उपधारा (2) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निर्धारिती को ऐसे संदेय राशि विनिर्दिष्ट करते हुए संसूचना भेजी जाएगी और ऐसी संसूचना धारा 30 के अधीन जारी की गर्इ मांग की सूचना समझी जाएगी और इस अधिनियम के सभी उपबंध तदनुसार लागू होंगे और



(ii) यदि ऐसी विवरणी के आधार पर कोर्इ प्रतिदाय देय है तो वह निर्धारिती को दे दिया जाएगा और इस बाबत संसूचना निर्धारिती को भेजी जाएगी :



परंतु इस उपधारा में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, विवरणी की अभिस्वीकृति इस उपधारा के अधीन वहां संसूचना समझी जाएगी जहां या तो निर्धारिती द्वारा कोर्इ राशि संदेय नहीं है या उसको कोर्इ प्रतिदाय देय नहीं है :



परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन संसूचना उस निर्धारण वर्ष की समाप्ति से जिसमें शुद्ध धन पहली बार निर्धारणीय था, दो वर्ष के अवसान के पश्चात् नहीं भेजी जाएगी।]



(1क) 68[वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.6.1999 से लोप किया गया।]



(1ख) 69[वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.6.1999 से लोप किया गया।]



(2) 70[जहां धारा 14 या धारा 15 के अधीन या इस धारा की उपधारा (4) के खंड (i) के अधीन किसी सूचना के उत्तर में कोर्इ विवरणी दी गर्इ है वहां यदि निर्धारण अधिकारी] यह सुनिश्चित करना आवश्यक या समीचीन समझता है कि निर्धारिती ने किसी भी रीति से शुद्ध धन का कम उल्लेख नहीं किया है या कर का कम संदाय नहीं किया है तो 71[] निर्धारिती को ऐसी सूचना की तामील करेगा जिसमें उससे उसमें विनिर्दिष्ट तारीख को या तो निर्धारण अधिकारी के कार्यालय में हाजिर होने की या किसी ऐसे साक्ष्य को, जिस पर निर्धारिती विवरणी के समर्थन में निर्भर करे, पेश करने या पेश करवाने की अपेक्षा की जाएगी :



72[परन्तु इस उपधारा के अधीन कोर्इ सूचना उस मास के, जिसमें विवरणी दी जाती है, अंत से बारह मास की समाप्ति के पश्चात् निर्धारिती पर तामील नहीं की जाएगी।]



(3) उपधारा (2) के अधीन जारी की गर्इ सूचना में विनिर्दिष्ट दिन को या ऐसे साक्ष्य की, जो निर्धारिती पेश करे और ऐसे अन्य साक्ष्य की, जो निर्धारण अधिकारी विनिर्दिष्ट विषय बिंदुंओं पर अपेक्षा कर, सुनवार्इ करने के पश्चात् और ऐसी अन्य सभी सुसंगत सामग्री, जो उसने एकत्र की है, पर विचार करने के पश्चात् यथाशीध्र निर्धारण अधिकारी लिखित रूप में आदेश द्वारा, निर्धारिती के शुद्ध धन का निर्धारण करेगा और उसके द्वारा ऐसे निर्धारण के आधार पर संदेय राशि का अवधारण करेगा।



(4) इस अधिनियम के अधीन निर्धारण करने के प्रयोजनों के लिए, निर्धारण अधिकारी, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसने धारा 14 या धारा 15 के अधीन विवरणी दी है या जिसके मामले में धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन विवरणी देने के लिए अनुज्ञात समय समाप्त हो गया है, सूचना की तामील कर सकेगा जिसमें उससे उसमें विनिर्दिष्ट तारीख को निम्नलिखित की अपेक्षा की जाएगी,–



(i) जहां ऐसे व्यक्ति ने 73[धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञात समय के भीतर] विवरणी नहीं दी है, वहां वह मूल्यांकन की तारीख को विहित प्ररूप में और विहित रीति से सत्यापित अपने शुद्ध धन या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति के, जिसकी बाबत वह इस अधिनियम के अधीन निर्धारणीय है, शुद्ध धन की विवरणी, ऐसे शुद्ध धन की विशिष्टियां और ऐसी अन्य विशिष्टियां, जो विहित की जाएं, उपवर्णित करते हुए दे, या



(ii) वह ऐसे लेखे, अभिलेख या अन्य दस्तावेज, जिनकी निर्धारण अधिकारी अपेक्षा करे, पेश करे या करवाए।



(5) यदि कोर्इ व्यक्ति,–



(क) धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित विवरणी देने में असफल रहता है और उसने धारा 15 के अधीन विवरणी या पुनरीक्षित विवरणी नहीं दी है, या



(ख) उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन जारी की गर्इ सूचना के सभी निबंधनों का अनुपालन करने में असफल रहता है,



तो निर्धारण अधिकारी, ऐसी सब सुसंगत सामग्री पर जो उसने एकत्रित की है, विचार करने के पश्चात् और ऐसे व्यक्ति को सुनवार्इ का अवसर देने के पश्चात् अपनी सर्वोत्तम विवेकबुद्धि के अनुसार शुद्ध धन का प्राक्कलन करेगा और उस व्यक्ति द्वारा ऐसे निर्धारण के आधार पर संदेय राशि का अवधारण करेगा:



परन्तु निर्धारण अधिकारी उस व्यक्ति से यह हेतुक कि वह निर्धारण अपनी सर्वोतम विवेक बुद्धि के अनुसार क्यों न पूरा करे, दर्शित करने संबंधी सूचना की, जिसमें तारीख और समय में विनिर्दिष्ट होंगे, तामील करके ऐसा अवसर प्रदान करेगा :



परन्तु यह और कि ऐसा अवसर ऐसा मामले में प्रदान करना आवश्यक नहीें होगा जिसमें उपधारा (4) के अधीन सूचना इस उपधारा के अधीन निर्धारण करने के पूर्व जारी की गर्इ हो।]



74[(6) जहां उपधारा (3) या उपधारा (5) के अधीन कोर्इ नियमित निर्धारण किया जाता है, वहां–



(क) उपधारा (1) के अधीन निर्धारिती द्वारा संदत्त कोर्इ कर या ब्याज ऐसे नियमित निर्धारण के मद्धे संदत्त किया गया समझा जाएगा



(ख) यदि नियमित निर्धारण होने पर कोर्इ प्रतिदाय देय नहीं है या उपधारा (1) के अधीन प्रतिदाय की गर्इ रकम नियमित निर्धारण पर प्रतिदेय रकम से अधिक हो जाती है, तो इस प्रकार प्रतिदाय की गर्इ संपूर्ण या आधिक्य रकम निर्धारिती द्वारा संदेय कर समझी जाएगी और इस अधिनियम के उपबंध तदनुसार लागू होंगे।



(7) 75[वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.6.1999 से लोप किया गया।]



76[ ]







66. प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.4.1989 से प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व, धन कर (संशोधन) अधिनियम, 1964 द्वारा 1.4.1965 से यथासंशोधित, धारा 16 निम्न प्रकार थी :



16. निर्धारण - यदि धन-कर अधिकारी का निर्धारिती की उपस्थिति या उसके द्वारा किसी साक्ष्य की अपेक्षा किए बिना यह समाधान हो जाता है कि धारा 14 या धारा 15 के अधीन दी गर्इ विवरणी ठीक और पूर्ण है तो वह निर्धारिती के शुद्ध धन का निर्धारण करेगा और ऐसी विवरणी के आधार पर उसके द्वारा संदेय धनकर की रकम या उसको प्रतिदेय रकम का अवधारण करेगा।



(2) यदि धन-कर अधिकारी का इस प्रकार यह समाधान नहीं होता है तो वह निर्धारिती पर ऐसी सूचना की तामील करेगा कि वह या तो ऐसी तारीख को, जो सूचना में विनिर्दिष्ट होगी, उसके कार्यालय में स्वयं हाजिर हो या उस तारीख को ऐसा साक्ष्य, जिस पर वह निर्धारिती अपनी विवरणी के समर्थन में निर्भर करता हो, पेश करे या पेश कराए।



(3) धन-कर अधिकारी, ऐसे साक्ष्य को, जैसा वह व्यक्ति पेश करे तथा ऐसा अन्य साक्ष्य को, जिसकी वह किन्हीं विनिर्दिष्ट बातों के संबंध में अपेक्षा करे, सुनने के पश्चात् और ऐसी सभी सुसंगत सामग्री पर, जो धन-कर अधिकारी ने एकत्रित की है, विचार करने के पश्चात् लिखित आदेश द्वारा, निर्धारिती के शुद्ध धन का निर्धारण करेगा और ऐसे निर्धारण के आधार पर उसके द्वारा संदेय धन-कर की रकम या उसको प्रतिदेय रकम का अवधारण करेगा।



(4) इस अधिनियम के अधीन निर्धारण करने के प्रयोजन के लिए धन-कर अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति पर, जिसने धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन विवरणी दी है या जिस पर उस धारा की उपधारा (2) के अधीन सूचना की तामील की गर्इ है, या जिसने धारा 15 के अधीन विवरणी दी है ऐसी सूचना की तामील कर सकेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह सूचना में विनिर्दिष्ट तारीख को ऐसे लेखा, अभिलेख या दस्तावेज पेश करे या पेश कराए, जिनकी धन-कर अधिकारी अपेक्षा करे।



(5) यदि कोर्इ व्यक्ति धारा 14 की उपधारा (2) के अधीन किसी सूचना के प्रत्युत्तर में विवरणी देने में असफल रहता है या उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन दी गर्इ किसी सूचना के निबंधनों का अनुपालन करने में असफल रहता है तो धन-कर अधिकारी ऐसी सभी सुसंगत सामग्री पर, जो उसने एकत्रित की है, विचार करने के पश्चात् अपनी सर्वोत्तम विवेक-बुद्धि के अनुसार शुद्ध धन का प्राक्कलन करेगा और ऐसे निर्धारण के आधार पर उस व्यक्ति द्वारा संदेय धन-कर की रकम या उसको प्रतिदेय रकम का अवधारण करेगा।



67. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.6.1999 से प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व, प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से और प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से यथासंशोधित उपधारा (1) निम्न प्रकार थी :



(1)(क) जहां धारा 14 या धारा 15 की उपधारा (4) के खंड (i) के अधीन किसी सूचना के उत्तर में विवरणी दी गर्इ है, वहां–



(i) यदि कर या ब्याज के रूप में संदत्त किसी रकम के समायोजन के पश्चात् कोर्इ कर या ब्याज ऐसी विवरणी के आधार पर देय पाया जाता है, तो निर्धारिती को ऐसी संदेय रकम को विनिर्दिष्ट करते हुए संसूचना भेजी जाएगी और ऐसी संसूचना धारा 30 के अधीन जारी की गर्इ सूचना समझी जाएगी और इस अधिनियम के उपबंध तदनुसार लागू होंगे और



(ii) यदि ऐसी विवरणी के आधार पर कोर्इ प्रतिदाय देय है, तो वह निर्धारिती को दे दिया जाएगा :



परन्तु निर्धारिती द्वारा देय या उसके प्रतिदेय कर या ब्याज की संगणना करने में विवरणी में घोषित शुद्ध धन में निम्नलिखित समायोजन किए जाएंगे, अर्थात्–



(i) विवरणी, लेखाओं या उसके साथ संलग्न दस्तावेजों में गणितीय किसी गलती को ठीक किया जाएगा



(ii) ऐसी विवरणी लेखाओं या दस्तावेजों में दी गर्इ जानकारी के आधार पर ऐसी छूट या कटौती, जो प्रथम- दृष्ट्या अनुज्ञेय है किन्तु जिसका विवरणी में दावा नहीं किया गया है या जो प्रकट नहीं की गर्इ है, अनुज्ञात की जाएगी



(iii) विवरणी में दावा की गर्इ या प्रकट की गर्इ कोर्इ छूट या कटौती, जो ऐसी विवरणी, लेखाओं या दस्तावेजों में दी गर्इ जानकारी के आधार पर प्रथमदृष्ट्या अनुज्ञेय नहीं है, अनुज्ञात नहीं की जाएगी:



परन्तु यह और कि जहां पहले परन्तुक के अधीन समायोजन किए जाते हैं, वहां निर्धारिती को इस बात के होते हुए भी संसूचना भेजी जाएगी कि कोर्इ कर या ब्याज उक्त समायोजनों को करने के पश्चात् उससे शोध्य नहीं पाया गया है:



परंतु यह और भी कि इस खंड के अधीन शोध्य किसी कर या ब्याज की संसूचना, उस निर्धारण वर्ष के, जिसमें शुद्ध धन प्रथम बार निर्धारणीय था, अंत से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं भेजी जाएगी।



(ख) जहां इस धारा की उपधारा (3) या उपधारा (5) या धारा 17 या धारा 23 या धारा 24 या धारा 25 या धारा 27 या धारा 29 या धारा 35 के अधीन किए गए किसी आदेश अथवा धारा 22घ की उपधारा (4) के अधीन धन-कर समझौता आयोग के किसी आदेश के परिणामस्वरूप, जो किसी पूर्वतर निर्धारण वर्ष से संबंधित है और खंड (क) में निर्दिष्ट विवरणी के फाइल किए जाने के पश्चात् पारित किया गया है, विवरणी में दावा या प्रकट की गर्इ किसी छूट या कटौती में कोर्इ फेरफार हुआ है, और उसके परिणामस्वरूप,–



(i) यदि कोर्इ कर या ब्याज देय पाया जाता है तो इस प्रकार संदेय राशि को विनिर्दिष्ट करते हुए निर्धारिती को एक संसूचना भेजी जाएगी, और ऐसी संसूचना धारा 30 के अधीन जारी की गर्इ मांग की सूचना समझी जाएगी तथा इस अधिनियम के सभी उपबंध तदनुसार लागू होंगे, और



(ii) यदि कोर्इ प्रतिदाय देय है तो वह निर्धारिती को दिया जाएगा:



परन्तु इस खंड के अधीन देय किसी कर या ब्याज के लिए संसूचना उस वित्तीय वर्ष के, जिसमें ऐसा आदेश पारित किया गया था, अंत से चार वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं भेजी जाएगी।



68. लोप किए जाने से पूर्व, उपधारा (1क), जो प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से अंत:स्थापित और बाद में प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से संशोधित की गर्इ थी, निम्न प्रकार थी :



(1क)(क) जहां किसी व्यक्ति की दशा में, उपधारा (1) के खंड (क) के पहले परन्तुक के अधीन किए गए समायोजनों के परिणामस्वरूप शुद्ध धन, विवरणी में घोषित शुद्ध धन किसी भी रकम से अधिक हो जाता है, वहां निर्धारण अधिकारी–



(i) उपधारा (1) के अधीन संदेय कर की रकम को उस अधिक रकम पर संदेय कर के बीस प्रतिशत की दर से संगणित अतिरिक्त धन-कर तक और बढ़ा देगा और उपधारा (1) के खंड (क) के उपखंड (i) के अधीन भेजी जाने वाली संसूचना में अतिरिक्त धन-कर विनिर्दिष्ट करेगा



(ii) जहां उपधारा (1) के अधीन कोर्इ प्रतिदाय शोध्य है, वहां ऐसे प्रतिदाय की रकम उपधारा (1) के अधीन संगणित अतिरिक्त धन-कर समतुल्य रकम घटा देगा।



(ख) जहां धारा 23 या धारा 24 या धारा 25 या धारा 27 या धारा 29 या धारा 35 के अधीन आदेश के परिणामस्वरूप, वह रकम, जिस पर अतिरिक्त धन-कर (क) के अधीन संदेय है, यथास्थिति, बढ़ा या घटा दी गर्इ है, वहां अतिरिक्त धन-कर तद्नुसार बढ़ा या घटा दिया जाएगा, और–



(i) उस दशा में जिसमें अतिरिक्त धन-कर बढ़ा दिया गया है, निर्धारण अधिकारी, निर्धारिती को धारा 30 के अधीन मांग की सूचना तामील करेगा



(ii) उस दशा में जिसमें अतिरिक्त धन-कर घटा दिया गया है, संदत्त अधिक रकम, यदि कोर्इ है, लौटा दी जाएगी।



स्पष्टीकरण.–इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, उस अधिक रकम पर संदेय कर से शुद्ध धन पर कर और उस कर के, जो प्रभार्य होता यदि वह शुद्ध धन को समायोजनों की रकम तक घटा दिया जाता, बीच का अंतर अभिप्रेत है।



69. लोप किए जाने से पूर्व, वित्त अधिनियम, 1990 द्वारा 1.4.1989 से भूतलक्षी प्रभाव से, यथा अंत:स्थापित, उपधारा (1ख) निम्न प्रकार थी :



(1ख) जहां निर्धारिती इस धारा की उपधारा (1) के अधीन संसूचना जारी किए जाने या प्रतिदाय, यदि कोर्इ हो, मंजूर किए जाने के पश्चात्, धारा 15 के अधीन पुनरीक्षित विवरणी देता है वहां उपधारा (1) और उपधारा (1क) के उपबंध ऐसी पुनरीक्षित विवरणी के संबंध में लागू होंगे तथा–



(i) किसी धन-कर, अतिरिक्त धन-कर या ब्याज के लिए पहले भेजी गर्इ संसूचना को उक्त पुनरीक्षित विवरणी के आधार पर संशोधित किया जाएगा और जहां उक्त संसूचना में विनिर्दिष्ट धन-कर, अतिरिक्त धन-कर या ब्याज के रूप में संदेय किसी रकम का निर्धारिती द्वारा पहले ही संदाय कर दिया गया है वहां, यदि ऐसे संशोधन का यह प्रभाव है कि–



(क) पहले संदत्त रकम में वृद्धि हो जाती है, तो इस खंड के अधीन संशोधित संसूचना, निर्धारिती द्वारा संदेय अधिक रकम विनिर्दिष्ट करते हुए उसे भेजी जाएगी और ऐसी संसूचना धारा 30 के अधीन जारी की गर्इ मांग की सूचना समझी जाएगी और इस अधिनियम के सभी उपबंध तदनुसार लागू होंगे



(ख) पहले संदत्त रकम में कमी हो जाती है, तो संदत्त अधिक रकम का निर्धारिती को प्रतिदाय किया जाएगा



(ii) पहले मंजूर की गर्इ प्रतिदाय की रकम में उक्त पुनरीक्षित विवरणी के आधार पर वृद्धि या कमी की जाएगी और जहां पहले मंजूर की गर्इ प्रतिदाय की रकम में–



(क) वृद्धि की जाती है वहां निर्धारिती को शोध्य प्रतिदाय की अधिक रकम ही उसे संदत्त की जाएगी



(ख) कमी की जाती है वहां इस प्रकार प्रतिदत्त अधिक रकम निर्धारिती द्वारा संदेय कर समझी जाएगी और एक संसूचना इस प्रकार संदेय रकम विनिर्दिष्ट करते हुए निर्धारिती को भेजी जाएगी, तथा ऐसी संसूचना धारा 30 के अधीन जारी की गर्इ मांग की सूचना समझी जाएगी और इस अधिनियम के सभी उपबंध तदनुसार लागू होंगे :



परंतु वह निर्धारिती जिसने, इस धारा की उपधारा (1) के अधीन संसूचना की उस पर तामील किए जाने के पश्चात्, धारा 15 के अधीन पुनरीक्षित विवरणी दी है, उपधारा (1) के खंड (क) के पहले परंतुक के अधीन किए गए और उक्त संसूचना में विनिर्दिष्ट समायोजनों के संबंध में अतिरिक्त धन-कर का संदाय करने का दायी होगा चाहे उसने पुनरीक्षित विवरणी में उक्त समायोजन किया है या नहीं।



70. प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी मामले में, यदि निर्धारण अधिकारी शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।



71. यथोक्त द्वारा वह का लोप किया गया।



72. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1991 द्वारा 1.10.1991 से प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व, परंतुक निम्न प्रकार था:



परन्तु इस उपधारा के अधीन किसी सूचना की, उस वित्तीय वर्ष की, जिसमें विवरणी दी जाती है, समाप्ति के या उस मास के, जिसमें विवरणी दी जाती है, अंत से छह मास की समाप्ति के पश्चात्, इनमें से जो भी पश्चात्वर्ती हो, तामील नहीं की जाएगी।



73. वित्त अधिनियम, 1990 द्वारा 1.4.1990 से सुसंगत निर्धारण वर्ष की समाप्ति के पूर्व के स्थान पर प्रतिस्थापित।



74. प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से अंत:स्थापित।



75. लोप किए जाने से पूर्व प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से यथा अंत:स्थापित उपधारा (7) निम्न प्रकार थी :



(7) इस धारा के उपबंध, जैसे वे प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 (1987 का 4) द्वारा उनका संशोधन किए जाने से ठीक पूर्व विद्यमान थे, 1 अप्रैल, 1988 को प्रारंभ होने वाले निर्धारण वर्ष या किसी पूर्वतर निर्धारण वर्ष को और उसके संबंध में लागू होंगे और इस धारा में इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के प्रति निर्देश का अर्थ इस प्रकार लगाया जाएगा कि वे उन उपबंधों के प्रति निर्देश हैं जो तत्समय प्रवृत्त थे और सुसंगत निर्धारण वर्ष के संबंध में लागू होते थे।



76. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.6.1999 से स्पष्टीकरण का लोप किया गया। लोप किए जाने से पूर्व, वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1991 द्वारा 1.10.1991 से यथा अंत:स्थापित स्पष्टीकरण निम्न प्रकार था :



स्पष्टीकरण–उपधारा (1) या उपधारा (1ख) के अधीन निर्धारिती को भेजी गर्इ संसूचना, धारा 25 की उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए आदेश समझी जाएगी।




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