1857 की क्रान्ति-1857 की क्रांति के सैनिक कारण Gk ebooks


Rajesh Kumar at  2018-08-27  at 09:30 PM
विषय सूची: History of Modern India >> 1857 की क्रांति विस्तारपूर्वक >> 1857 की क्रांति के मुख्य कारण >>> 1857 की क्रांति के सैनिक कारण

1857 की क्रांति के सैनिक कारण

ब्रितानियों ने भारतीय सेना की सहायता से ही सम्पूर्ण भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। अतः कम्पनी की सेना में कई भारतीय सैनिक थे। वेलेजली द्वारा सहायक सन्धि की प्रथा अपनाने के कारण कम्पनी की सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 1856 ई. में कम्पनी की सेना में 2,38000 भारतीय सैनिक एवं 43,322 ब्रितानी सैनिक थे। अपनी इस विशाल संख्या के कारण भारतीय सैनिक निर्भीक हो गए थे। इसके अलावा ब्रितानी सैनिकों का विभिन्न क्षेत्रों में वितरण भी ठीक नहीं था। कई तो ऐसे क्षेत्र थे, जहाँ सारे देशी सैनिक थे और ब्रितानी सैनिक नाम मात्र के थे। इसके अतिरिक्त योग्य ब्रितानी अधिकारियों को सीमान्त प्रान्तों एवं नवीन विजित प्रान्तों में भेज दिया गया था। अतः ब्रितानियों का अभाव होने लगा। अब भारतीय सैनिकों में यह भावना आने लगी कि यदि वे मिलकर योजनाबद्ध ढंग से ब्रितानियों के विरूद्ध अभियान करें, तो वे ब्रितानियों को भारत से बाहर खदेड़ सकते हैं। अतः उनमें विद्रोह की भावना को बल मिला।

भारतीय सैनिक अनेक कारणों से ब्रितानियों से रुष्ट थे। वेतन, भत्ते, पदोन्नति आदि के संबंध में उनके साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता था। एक साधारण सैनिक का वेतन 7-8 रुपये मासिक होता था, जिसमें खाने तथा वर्दी का पैसा देने के बाद उनके पास एक या डेढ़ रुपया बचता था। भारतीयों के साथ ब्रितानियों की तुलना में पक्षपात किया जाता था। जैसे भारतीय सूबेदार का वेतन 35 रुपये मासिक था, जबकि ब्रितानी सूबेदार का वेतन 195 रुपये मासिक था। भारतीयों को सेना में उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उच्च पदों पर केवल ब्रितानी ही नियुक्त होते थे। डॉ. आर. सी. मजूमदार ने भारतीय सैनिकों के रोष के तीन कारण बतलाए हैं-

(1) बंगाल की सेना में अवध के अनेक सैनिक थे। अतः जब 1856 ई. में अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में लिया गया, तो उनमें असंतोष उत्पन्न हुआ।
(2) ब्रितानियों ने सिक्ख सैनिकों को बाल कटाने के आदेश दिए तथा ऐसा न करने वालों को सेना से बाहर निकाल दिया।
(3) ब्रिटिश सरकार द्वारा ईसाई धर्म का प्रचार करने से भी भारतीय रुष्ट थे।

ब्रितानियों से क्रुद्ध भारतीय सैनिकों ने 1806 से 1855 ई. के मध्य अनेक बार विद्रोह किए, किंतु ब्रितानियों ने इन्हें दबा दिया तथा विद्रोही भारतीय सैनिकों पर अमानवीय अत्याचार किए। इससे भारतीय सैनिकों के मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी, जो 1857 ई. में फूट पड़ी।

इस समय भारतीय सैनिकों में अधिकांश जाट, ब्राह्मण, राजपूत एवं पठान आदि थे। वे रूढ़िवादी थे तथा धर्म को सर्वोपरि मानते थे। ब्रितानियों ने सैनिकों के माला पहनने व तिलक लगाने तथा दाढ़ी रखने पर पाबंदी लगा दी, तो ये सैनिक क्रुद्ध हो उठे एवं उनमें विद्रोह की भावना जन्म लेने लगी।

इस समय विदेश जाने वाले व्यक्ति को धर्म से बहिष्कृत कर दिया जाता था, अतः भारतीय सैनिकों ने विदेश जाने से इनकार कर दिया। इस पर लार्ड कैनिंग ने 1856 ई. में सामान्य सेना भर्ती अधिनियम पारित कर यह व्यवस्था की कि भारतीय सैनिकों को युद्ध हेतु समुद्र पार विदेशों में भेजा जा सकता है। एक अन्य नियम बनाकर यह निश्चित किया गया कि विदेशों में सेवा हेतु अयोग्य समझे गए सैनिकों को अवकाश प्राप्त होने पर पेन्शन के स्थान पर छावनियों में नौकरी दी जाएगी। इससे भारतीय सैनिकों में इस विश्वास को बल मिला की ब्रितानी उनकी संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं एवं ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते हैं। इससे विद्रोह का वातावरण तैयार हो गया।



सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
1857 की क्रांति के राजनीतिक कारण
1857 की क्रांति के प्रशासनिक कारण
1857 की क्रांति के सामाजिक कारण
1857 की क्रांति के धार्मिक कारण
1857 की क्रांति के सैनिक कारण
1857 की क्रांति के तत्कालीन कारण
1857 की क्रांति के आर्थिक कारण

1857 Ki Kranti Ke Sainik Karan Britanian ne Indian Sena Sahayta Se Hee Sampoorn Bhaarat Me Apna Samrajy Sthapit Kiya Tha Atah Company Kai The Velesli Dwara Sahayak Sandhi Pratha Apanane Sainiko Sankhya Apratyashit Vridhi Hui 1856 Ee 2 38000 Aivam 43 322 Britani Apni Is Vishal Nirbhik Ho Gaye Iske ALava Ka Vibhinn Area Vitarann Bhi Theek Nahi To Aise Shetra Jahan Sare Deshi Aur Naam Matra Atirikt Yogya Adhikariyon Ko Simant


Labels,,,